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आमतौर पर दिल में छेद होने की स्थिति को आइसनमेंजर सिंड्रोम (Eisenmenger Syndrome) कहा जाता है। यह शिशु में होने वाला जन्मजात रोग है। बच्चों में आइसनमेंजर सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी है। यह हृदय में एक संरचनात्मक त्रुटि के कारण होता है, जो वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट होता है। इसके कारण दिल में खून का प्रवाह आसामान्य रूप से होता है, जिसके परिणामस्वरूप पल्मनेरी आर्टरी (Pulmonary Artery) के अंदर हाई प्रेशर पड़ता है। इस छेद के कारण हृदय और फेफड़ों में असामान्य रूप से रक्त प्रवाहित होता है। जिसके कारण रक्त का प्रवाह शरीर के बाकी हिस्सों में जाने के बजाय फेफड़ों में लौट जाता है।
आइसनमेंजर सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी होती है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
आइसनमेंडर सिंड्रोम होने के सामान्य लक्षण हैंः
इसके सभी लक्षण ऊपर नहीं बताएं गए हैं। अगर इससे जुड़े किसी भी संभावित लक्षणों के बारे में आपका कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से बात करें।
अगर ऊपर बताए गए किसी भी तरह के लक्षण आपमें या आपके किसी करीबी में दिखाई देते हैं या इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें। हर किसी का शरीर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया करता है।
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आइसनमेंजर सिंड्रोम तब होता है जब फेफड़ों (Lungs) में रक्त प्रवाह (Blood flow) का बढ़ने के कारण दबाव इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि दिल में हुए छेद के माध्यम से खून के बहाव का रास्त बदल जाता है। आइसनमेंजर सिंड्रोम तब होता है जब खून आगे की तरफ प्रवाह करने की बजाय पीछे की ओर बहता है, जिससे खून में ऑक्सीजन की अच्छी और खराब मात्रा मिक्स होती है। इससे खून (सायनोसिस) में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए लाल रक्त कोशिका की मात्रा भी बढ़ने लगती है।
इसके अलावा दिल के दोषों का पारिवारिक इतिहास भी बच्चे में जन्मजात हृदय (Heart) दोष के जोखिम बढ़ा सकता है।
पारिवारिक इतिहास जन्मजात रोगों को सबसे ज्यादा बढ़ावा देता है। दिल में छेद होने का यह सबसे बड़ा कारण हो सकता है। अगर किसी बच्चे में इसकी समस्या है, तो उसके परिवार के सभी सदस्यों को अपने दिल की स्थिति की जांच करवानी चाहिए। अधिक जानकारी के लिए कृपया अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप में ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
आइसनमेंजर सिंड्रोम का निदान करने के लिए, आपका डॉक्टर आपके मेडिकल इतिहास पर चर्चा करेंगे, शारीरिक परीक्षण करेंगे और उपयुक्त नैदानिक परीक्षण का आदेश देंगे। इन परीक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
अगर ऊपर बताए गए टेस्ट में आइसनमेंडर सिंड्रोम के लक्षण पाए जाते हैं, तो आपका डॉक्टर आपसे इसके उपचार के बारे में बात करेंगे। इस दौरान डॉक्टर आपके उस धमनी में ब्लड प्रेशर को कम करने की कोशिश करेंगे जो फेफड़ों को रक्त पहुंचाता है और शरीर को अधिक ऑक्सीजन प्राप्त करने में मदद करता है। इसके लिए डॉक्टर सर्जरी और दवाओं की मदद भी ले सकते हैं।
आमतौर पर आइसनमेंजर सिंड्रोम के इलाज के लिए डॉक्टर सर्जरी की सलाह आखिरी विक्लप के तौर पर देतें हैं। क्योंकि, यह जोखिम भरी हो सकती है। इसके उपचार के लिए आपके डॉक्टर निम्न तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैंः
स्थिति की निगरानी करना- हृदय रोग विशेषज्ञ नियमित रूप से आपके स्थिति कि निगरानी कर सकते हैं। आपके शरीर में हो रहें बदलाओं और दिखाई देने वाले लक्षणों का समय-समय पर आंकलन करेंगे।
दवाओं का इस्तेमाल- दवाएं इस स्थिति के लिए प्राथमिक उपचार के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। इस दौरान आपको आयरन सप्लीमेंट (Iron supplement) और एंटीबायोटिक्स (Antibiotic) जैसी दवाओं के खुराक दी जा सकती है।
ब्लड ड्राइंग (फेलोबोटॉमी) Blood drawing (phlebotomy)- आपके रक्त कोशिका की गिनती को कम करने में मदद करने के लिए ब्लड ड्राइंग का उपचार किया जा सकता है।
हृदय-फेफड़े का प्रत्यारोपण- जरूरत पड़ने पर दिल या फेफड़े का प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है।
जन्म नियंत्रण और गर्भावस्था- इस स्थितियों का सामना कर रहीं महिलाओं को प्रेग्नेंट होने पर जान का जोखिम हो सकता है। साथ ही, यह बच्चे के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
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निम्नलिखित जीवनशैली में बदलाव लाने और घरेलू उपायों से आप आइसनमेंजर सिंड्रोम के खतरे को कम कर सकते हैंः
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अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो उसकी बेहतर समझ के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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