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रिलैक्टेशन के दौरान आपको आ सकती हैं इस तरह की दिक्कतें, जानें क्या करें

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 04/03/2021

    रिलैक्टेशन के दौरान आपको आ सकती हैं इस तरह की दिक्कतें, जानें क्या करें

    शिशु के अच्छे स्वास्थ्य में मां के दूध की क्या भूमिका है। यह सभी जानते हैं, लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से ऐसे कारण होते हैं, जिसके चलते कई बार मां शिशु को अपना ब्रेस्टफीड नहीं करा पाती हैं, जैसे कि कोई हेल्थ प्रॉब्लम या हार्ड एंटीबॉयोटिक दवाओं के सेवन के कारण, उन्हें स्तनपान रोकना पड़ता है। इसके अलावा कई वर्किंग मॉम्स भी कुछ कारणों के चलते शिशु को ब्रेस्टफीड की जगह बॉटल फीड कराने का निणर्य लेती हैं। ऐसे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अगर कुछ दिनों या महीनों के अंतराल के बाद दोबारा शिशु को ब्रेस्टफीड कराने का प्लान करती हैं, तो उसे रिलैक्टेशन कहते हैं। यानि कि जब एक अंतराल के बाद मां शिशु को फिर से स्तनपान कराने का सोचती हैं, तो उसे रिलैक्टेशन (Relactation) कहते हैं। पांच से छ महीने के अंतराल के बाद दोबारा ब्रेस्फीड कराने पर मां कोई तरह की दिक्कतें भी आ सकती हैं। अगर आप भी रिलैक्टेश का प्लान कर रही हैं, तो जानें किन बातों का रखें ध्यान।

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    रिलैक्टेशन (Relactation) शुरु करने में कितना समय लगता है?

    रिलैक्टेशन, यानि कि जब आप दोबारा ब्रेस्टफीड शुरू कर रही हैं, तो आप शिशु को कितने सुविधापूवर्क स्तनपान करावा पा रही हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको स्पनपान बंद किए हुए कितना सयम हो गया है। दोबारा स्तनपानके दौरान आपको कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं, जैसे कि दूध का सूख जाना, दूध का कम मात्रा में बनना, बच्चे का लैचिंग न कर पाना या शिशु को बॉटलफीड की आदत लग जाना आदि। ब्रेस्टफीड से केवल शिशु का ही नहीं बल्कि मां का स्वास्थ्य जुड़ा होता है। जानें इन समस्याओं का उपाय, जिससे आप आराम से शिशु को लैक्टेशन करवा सकते हैं।

    “दोबारा से स्तनपान शुरु करवाने में 2 सप्ताह का समय लगभग लग जाता है। क्याेंकि अधिकतर केसेज में मां का दूध सूख चुका होता है और शरीर में दूध का बनना भी कम हो गया होता है। तो ऐसे में मां को सबसे पहले अपने खानपान की तरफ ध्यान देना चाहिए। ताकि मां दूध की अच्छी मात्रा का उत्पादन हो। इसके अलावा, पहले एक बार डॉक्टर से भी मिलना जरूरी है। एक बार ब्रेस्टचेकर करवाना भी जरूरी है।’- शहानी नर्सिंग होम की डायरेक्ट एंड ग्यानेकोलॉजिस्ट, डॉक्टर संतोष सहानी के अनुसार। 

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    दाेबारा स्तनपान के दौरान आने वाली प्रॉब्लम

    रिलैक्टेशन करवाने वाली माओं को अक्सर कई तरह की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है सबसे बड़ी समस्या तो यह आती है कि लंबे गैप के कारण स्तनों में दूध सूख जाता है। इसक अलावा, कई और भी बहुत सारी समस्याएं आती हैं। जानें उन समस्याओं के बारे में जिनका पहले समाधान होना बहुत जरूरी है।

    क्लॉग्ड मिल्क (Clogged Milk)

    कई माओं को रिलैक्टेशन के समय क्लॉग्ड मिल्क की दिक्कत होती है, यानि कि थक्का जम जाना। वैसे तोइसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन रिलैक्टेशन के समय इसकी खास समस्या देखी जाती है। काफी समय से स्तनपान न कराने के कारण स्तनों में दूध जम चुका होता है। कई बार इस कारण महिलाओं को दूध ब्रेस्ट में पेन भी होने लगता है।

    ब्रेस्ट में दूध जमना के लक्षण:

    • ब्रेस्ट में दर्द होना
    • स्तनों में गांठ और सूजन होना
    • दूध का रिसाव
    • दूध आने में दिक्कत होना

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    बॉटल फीडिंग(Bottle Feeding) की आदत

    रिलैक्टेशन के समय कई बच्चे दोबारा मां का दूध पीने के तैयार नहीं होते हैं, कयोकि उन्हें बॉटलफीड की आदत लग गई होती है। तो ऐसे में मां को कई तरह की दिक्ते आती हैं। दोबारा से बच्चे को तैयार करना इतना आसान नहीं होता है। लेकिन यह सभी जानते है कि मां का दूध बच्चे के लिए कितना जरूरी होता है। आप कोशिश करें कि धीरे-धीरे  बच्चे को फिर से ब्रेस्टफीड की आदत डालें। अगर उसके बाद भी वो तैयार नहीं है, इसके लिए तो आप कोशिश करें कि ब्रेस्ट पंप की सहायता से दूध निकालर, उसे बॉटल फीड करवाएं। इससे आपको काफी आसानी होगी।

    मैस्टाइटिस (Mastitis)

    मैस्टाइटिस, भी एक ऐसी समस्या है, जिसके कारण भी कई बार मां को रिलैक्टेशन के समय दिक्कत आती है। जब मां बच्चे को स्तनपान कराना रोक देती हैं, तो उस समय स्तन में गांठ और जमे हुए दूध के कारण कई तरह के इंफेक्शन के होने का खतरा रहता है। यह एक प्रकार का इंफेक्शन है। इसमें स्तन के ऊतकों में सूजन आ जाती है और बैक्टीरिया भी उत्पन्न होने लगते हैं।  इसलिए मां को स्तनपान रोकने से पहले एक बार डॉक्टर से मिलना जरूरी है। रिलैक्टेशन के दौरान यह समस्या तब भी हो सकती है, जब शिशु के लैच की आदत छूट गई होती है और ब्रेस्टमिल्क मिल्क अधिक मात्रा में बन रहा हो, लेकिन शिशु फीड नहीं कर रहा हो। तो ऐसे में मैस्टाइटिस का खतरा बढ़ जाता है।

    मैस्टाइटिस स्तन के ऊत्तकों में होने वाली सूजन है। यह कभी भी गंभीर इंफेक्श का रूप ले सकती है। जिसका समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। नहीं तो यह इंफेक्शन ब्रेस्फीड के दौरा शिशु को भी हाे सकता है।

    मैस्टाइटिस के लक्षण

    • स्तनों का हेवी महसूस होना
    • स्तनों में दर्द महसूस होना
    • स्तनों में सूजन होना

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    दूध कम मात्रा में बनना

    रिलैक्टेशन के समय कई मांओं को यह समस्या आती है कि उनमें दूध की सही मात्रा नहीं बन पाती है। जिस कारण भी शिश अच्छे से फीड नहीं कर पाता है। कुछ महिलाओं में पर्याप्त दूध न बन पाने का कारण हॉर्मोनल प्रॉब्लम होता है। कुछ ऐसी भी मां होती हैं, जिन्होंने कुछ कारणों से प्रेग्नेंसी के बाद स्तनपान करवाया ही न हो और उनमें मिल्क डक्ट्स डेवलप ही नहीं हए हों। इसलिए उन महिलाओं के स्तनों से कम मात्रा में दूध बनता है। वैसे स्तनों से दूध कम आना कोई गंभीर समस्या या बीमारी का संकेत नहीं है। रिलैक्शन के समय यह परेशानी आती ही है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि एक अंतराल में स्तनपान रुका हुआ है। इसके मां के कम दूध बनने का एक कारण यह है कि उन्हें उचित मात्रा में दूध पोषक युक्त आहार नहीं लेना। मां के शरीर में किसी मात्रा में दूध बन रहा है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनकी डायट कैसी है।

    ब्रेस्टफीडिंग के टिप्स (Breastfeeding Tips)

    Normalising pain while breastfeeding

    ब्रेस्टफीडिंग के दौरान मांओं को कुछ बाताें का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे कि:

    रिलैक्टेशन के लिए आप तैयार हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि आपका बच्चा भी तैयार हो। तो एकदम से उससे यह उम्मीद न रखें कि वो बॉटल फीड छोड़कर ब्रेस्टफीड करने लगेगा। उसे धीरे-धीरे तैयार करें।

    ब्रेस्टफीड कराने से पहले हाइजीन का पूरा ध्यान रखें।

    मां अपने डायट में उन सभी फूड्स को शामिल करें। जिसके सेवन से आपके शरीर में दूध अच्छी मात्रा में बनें और शिशु को सभी जरूरी पोषक तत्व भी मिले।

    • मां से दूध से शिशु के लिए कई हेल्थ बेनेफिट्स हैं, जैसे कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है। इसके अलावा ब्रोंकाइटिस,एक्जिमा और निमोनिया जैसी बीमारी से बचाव होता है।
    • मां के दूध में पाया जाने वाला पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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    ब्रेस्ट पम्प (Breast Pump)की सहायता लें

    अगर मां दोबारा से रिलैक्टेशन यानी कि ब्रेस्टफीड शुरू करना चाहती हैं और आपका शिशु इसके लिए नहीं तैयार है, तो आप ब्रेस्ट पम्प (Breat Pump) की सहायता ले सकती हैं। ब्रेस्ट पम्प से दबाव यानी कि वैक्यूम की साहयता से ब्रेस्ट मिल्क को एकत्रित कर के बाॅटल फीड कराया जा सकता है। ब्रेस्ट पम्प, दो प्रकार के होते हैं, मैन्युअल और इलैक्ट्रीक ब्रेस्ट पम्प। अगर आपके पास समय की कमी है, तो आप इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पम्प का चुनाव करें।

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    ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने वाले फूड्स ( Foods to Increase Breast Milk Supply)

    हेल्दी फूड वेस्ट

    अगर मां के शरीर में पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं बन पा रहा है, तो आप इन फूड्स काे अपने डायट में शामिल करें। इससे आपको काफी मदद मिलेंगी।

    ओटमील: ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए ओट्स का सेवन काफी लाभकारी माना जाता है। इसमें फाइबर की उच्च मात्रा पायी जाती है। इसी के साथ ही शरीर मे एनर्जी भी बनी रहती है।

    बींस: बींस का सेवन भी ब्रेस्ट मिल्क को बढ़ाने के लिए काफी अच्छा है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फाइबर और फाइटोएस्ट्रोजेन की उच्च मात्रा पायी जाती है। इससे शरीर में दूध भी अच्छी मात्रा में बनेगा और उसमें सभी पोषक तत्व भी मिलेंगे।

    पालक: पालक में आयरन की उच्च मात्रा पायी जाती है। इससे शरीर में दूध बनने में भी मदद मिलती है। इसमें पाया जाने वाला फोलिक एसिड और कैल्शियम बच्चे के लिए भी फायदेमंद है। हो सके तो इसका सेवन रोज सूप के रूप में करें।

    शकरकंद: शकरकंद में पाये जाने वाले पोषक तत्वाें में शामिल हैं, विटामिन बी, बिटामिन सी, कार्बोहायड्रेट उच्च मात्रा पायी जाती है। जो मां  के शरीर में दूध को बनाने में मददगार है। आप शकरकंद को अपने डायट में शामिल करें।

    ड्राय फ्रूट्स: अगर ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने वाले फूड की बात करें, तो ड्राय फ्रूट्स का सवेन काफी लाभदायक है। इसके सेवन से बहुत सारी मां के शरीर में अधिक मात्रा में दूध का निमार्ण होता है। यह मां और शिशु, दोनो की हेल्थ के लिए अच्छा है।

    रिलैक्टेशन यानि की आप दोबारा ब्रेस्टफीडिंग शुरु करना चाह रही हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। हो सके तो सबसे पहले अपने डॉक्टर से मिलें और उसके द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार की रिलैक्टेश को शुरु करें। इससे आप कई तरह की परेशानियों से बच पाएंगी।

    डिस्क्लेमर

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