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जन्म के दौरान चोट लगना
वैसे तो सी-सेक्शन की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित मानी जाती है, हालांकि, कुछ स्थितियों में कई बार बच्चे ऑपरेशन के दौरान घायल हो जाते हैं। जिसके घाव भी जन्म के बाद बहुत जल्दी ही भर जाते हैं। इसके अलावा, कई बार नॉर्मल डिलिवरी के दौरान भी वॉक्यूम का इस्तेमाल करने से बच्चे के सिर की त्वचा में सूजन आ जाती है, लेकिन अगर ये घाव उपचार के बाद भी ठीक नहीं होते या इनकी वजह से बच्चे को किसी तरह की शारीरिक परेशानी होती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ध्यान रखें कि, नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) भले ही कोई हो, लेकिन कभी भी उनके लिए घरेलू तरीके नहीं अपनाने चाहिए।
जन्म के समय कुछ नवजात शिशुओं के ऊपरी कंधे के हिस्से में चोट लग जाती है। इसे ब्रेकियल प्लेक्सस नर्व इंजरी कहते हैं। इसका पता गले और कन्धों का X-ray या फिर MRI स्कैन या CT SCAN करके लगाया जा सकता है।
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नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) में डायरिया है कॉमन
नवजात बच्चों की बीमारी में डायरिया के लक्षण भी काफी आम होते हैं। डायरिया होने पर शिशु को पतले दस्त होने लगते हैं। इससे शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है। आमतौर पर शिशु को डायरिया बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होता है। बता दें कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की गणना के मुताबिक, भारत की जनसंख्या का 40 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम के छोटे बच्चों का है। जिसमें हर 100 बच्चों में से 12 बच्चों की उम्र 5 साल है। इसके अलावा प्रति 100 जवित पैदा होने वाले बच्चों में से 5 की मृत्यु जन्म के एक साल के अंदर हो जाती है। इसके अलावा, अगर भारतीय बच्चों की लंबाई और वजन के अनुसार उनके स्वास्थ्य का आंकलन किया जाए, तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। करीब 40 फीसदी भारतीय बच्चों को उचित वृद्धि करने के लिए उचित और स्वस्थ आहार नहीं मिलता है।
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नवजात बच्चों की बीमारी पीलिया
पीलिया की समस्या भी नवजात शिशुओं में काफी आम होता है। पीलिया होने पर बच्चे की त्वचा और आंख पीली हो जाती है। कुछ शिशुओं में, पीलिया जन्म के तुरंत बाद ही हो जाता है, जो कुछ ही दिनों में अपने आप ठीक भी हो जाता है। हालांकि, अगर इसकी स्थिति चार से पांच दिनों बाद भी बनी रहती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, अधिकांश बच्चों में पीलिया का कारण मां का दूध उचित मात्रा में न पीना भी हो सकता है। इसलिए मां को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शिशु कितनी मात्रा में दिन भर में कितना दूध पीता है। कोशिश करें कि हर दो से तीन घंटे में शिशु को थोड़ी-थोड़ी देर में ब्रेस्टफीडिंग कराते रहें।