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Diphtheria : डिप्थीरिया (गलाघोंटू) क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड डॉ. पूजा दाफळ · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 14/12/2021

Diphtheria : डिप्थीरिया (गलाघोंटू) क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

परिचय

डिप्थीरिया (Diphtheria) क्या है?

डिप्थीरिया (Diphtheria) एक गंभीर बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial infection) होता है, जिसे रोहिणी और गलाघोंटू की बीमारी भी कहा जाता है। यह कोराइन बैक्टीरियम डिप्थीरिया (Diphtheria) के कारण होता है। सामान्य तौर पर, यह 2 साल से लेकर 10 साल तक की आयु के बच्चों को अधिक प्रभावित कर सकता है। हालांकि, इसके होने का जोखिम बड़ी उम्र के लोगों और वयस्क लोगों में भी हो सकता है। इसके लक्षण दो से चार दिनों में पूरी तरह से दिखाई दे सकते हैं। डिप्थीरिया (Diphtheria) गले में होने वाला एक रोग है जो नाक और गले की श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, डिप्थीरिया (Diphtheria) उन बैक्टीरियल इंफेक्शन में गिना जाता है, जो एक संक्रमित व्यक्ति से किसी भी स्वस्थ अन्य व्यक्ति को आसानी से बीमार कर सकता है।

अगर उचित समय पर गलाघोंटू का उपचार कराया जाए, तो इसका उपचार आसानी से किया जा सकता है। लेकिन, अगर इसके उपचार में देरी की जाए, तो यह शरीर के दूसरों अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। आंकड़ों पर गौर करें, तो इसके कारण हार्ट फेलियर (Heart failure) का खतरा सबसे अधिक हो सकता है। डिप्थीरिया (Diphtheria) की समस्या होने पर सामान्य सर्दी-जुकाम (Cold & cough) जैसे लक्षण ही दिखाई देते हैं। लेकिन, इसके कारण गले में गहरे ग्रे रंग का एक पदार्थ जमने लगता है जिससे इसकी पहचान की जा सकती है। यह मोटा तरल पदार्थ सांस लेने वाली नलिकाओं को अवरुद्ध करने लगता है, जिससे सांस लेने में परेशानी होने लगती है। यह सामान्यत: उष्णकटिबंधीय में अधिक हो सकता हैं यानी ऐसे स्थान जहां बारहों महीने का औसत तापमान कम से कम 18 °C रहता हो।

डिप्थीरिया के कारण छोटे बच्चों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। हर साल छोटे बच्चों जिनकी उम्र 15 साल तक या उससे कम होती है, लगभग 10 फीसदी बच्चों की मृत्यु का गलाघोंटू कारण होता है।

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डिप्थीरिया या गलाघोंटू (Diphtheria) शरीर के इन अंगों को करता है प्रभावित

गलाघोंटू दिल को पहुंचा सकता है नुकसान

डिपथीरिया (गलाघोंटू) के बैक्टीरिया दिल की मांसपेशियों के टिश्यू जिसे मायोकार्डियम (Myocardium) कहते हैं, को गंभीर तरह से प्रभावित कर सकते हैं। जिससे हृदय (Heart) कमजोर होने लगता है और उसकी नसें सिकुड़ने लगती हैं। इससे शरीर का रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) कम होने लगता है और रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

नर्वस सिस्टम को प्रभावित करे गलाघोंटू

यह नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है। 10 से 12वें दिन इसका इंफेक्शन साधी तौर पर नर्वस सिस्टम को प्रभावित करना शुरू कर सकता है। पहले ये गले की नलियों को प्रभावित करता है, जिससे बोलने की क्षमता प्रभावित (Speaking power) होती है। साथ ही, कुछ भी खाने पीने पर वो नाक की नलियों के माध्यम से शरीर के बाहर आ सकते हैं।

आंखों के लि्ए घातक है गलाघोंटू

डिपथीरिया (गलाघोंटू) आंखों की नसों को भी प्रभावित कर सकता है जिससे देखने की क्षमता (Weak eyesight) कम होने लगती है। दो या तीन हफ्तों के बाद पालीन्युअराइटिस (Polyneuritis) के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।

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लक्षण

डिप्थीरिया (गलाघोंटू) के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Diphtheria)

डिप्थीरिया के लक्षण (Symptoms of Diphtheria) निम्नलिखित हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

  • सामान्य सर्दी-जुकाम के लक्षण, जैसेः गला खराब होना, खांसी आना
  • बुखार (Fever) होना
  • ग्रंथियों में सूजन की समस्या
  • कमजोरी महसूस करना
  • नाक का बहना
  • गले में दर्द होना
  • बीमार महसूस करना
  • शरीर का तापमान 100°F से 102°F तक जाना
  • सिरदर्द (Headache)
  • कब्ज (Constipation)
  • अल्सर (Ulcer) होना

इसकी लक्षणों के गंभीर होने पर फेफड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है।

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कारण

डिप्थीरिया (गलाघोंटू) के क्या कारण हो सकते हैं? (Cause of Diphtheria)

डिप्थीरिया (Diphtheria) रोग का कारण कोराइन बैक्टीरियम डिपथीरी (Corynebacterium diphtheriae) नामक जीवाणु होता है। जो छोटे बच्चों के खिलौने, पेंसिल जैसें वस्तुओं से एक-दूसरे बच्चों में आसानी से फैल सकता है। क्योंकि, छोटे बच्चे अक्सर एक-दूसरे बच्चों की इस तरह की वस्तुएं शेयर करते हैं, जिन्हें अक्सर वे मुंह में डालने की कोशिश भी कर सकते हैं। मुंह में इस तरह की चीजें रखने से गले की श्लेष्म झिल्ली में डिप्थीरिया (Diphtheria) रोग उत्पन्न हो सकता है।

डिप्थीरिया (Diphtheria) के जीवाणु तीन प्रकार के होते हैंः

  • ग्रेविस (gravis), यानी तेजी से बढ़ने वाले
  • मध्यम (intermedians)
  • मृदु (mitis)

इसके अलावा, निम्न स्थितियां भी डिप्थीरिया (Diphtheria) का कारण बन सकते हैं, जैसेः

  • इससे संक्रमित व्यक्ति या बच्चे द्वारा खांसने या छींकने के दौरान उसके आस-पास होना
  • दूषित व्यक्तिगत या घरेलू सामानों का इस्तेमाल करना, जैसे रोगी द्वारा इस्तेमाल किए गए किसी भी वस्तु, खाद्य पदार्थ, बिस्तर या कपड़े।
  • डिप्थीरिया (Diphtheria) द्वारा बीमार व्यक्ति को हुए बाहरी रूप से किसी तरह के घाव के संपर्क में आना

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डिप्थीरिया (Diphtheria) रोग का खतरा कब बढ़ जाता है?

निम्नलिखित स्थितियों में डिप्थीरिया (Diphtheria) रोग होने का जोखिम अधिक हो सकता हैः

  • ऐसे बच्चे या बड़े जिन्हें डिप्थीरिया (Diphtheria) का टीका नहीं लगा हो
  • भीड़ वाले या अस्वच्छ इलाकों में रहना
  • ऐसे क्षेत्रों में जाना जहां डिप्थीरिया (Diphtheria) के मरीजों की संख्या हो
  • एड्स (AIDS)
  • प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) से जुड़ी बीमारियां होना, आदि।
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    निदान

    डिप्थीरिया (गलाघोंटू) के बारे में पता कैसे लगाएं? (Diagnosis of Diphtheria)

    डिप्थीरिया (गलाघोंटू) के बारे में पता लगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि, कुछ स्थितियों में गले में बनने वाला मोटा तरल पदार्थ स्पष्ट नहीं हो पाता है।

    इसका पता लगाने के लिएआपके डॉक्टर निम्न टेस्ट कर सकते हैं, जिसमें शामिल हो सकते हैंः

    • गले की स्थिति की जांच करना
    • ग्रसनी शोथ (Pharyngitis) यानी भोजन नली में किसी तरह के रोग की जांच करना
    • टॉन्सिल शोथ (Tonsillitis)
    • लसीका ग्रंथियों (Lymph nodes) में सूजन की जांच करनेना, जिसके लिए शारीरिक परीक्षण किया जा सकता है
    • नाक और गले से सैंपल की जांच करना

    अगर व्यक्ति के टेस्ट में डिप्थीरिया (Diphtheria) की पुष्टि होती है, तो आपके डॉक्टर परिवार के अन्य सदस्यों या जिनके साथ वे रहते हैं, उनके भी स्वास्थ्य की जांच करने की सलाह दे सकते हैं।

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    रोकथाम और नियंत्रण

    डिप्थीरिया (गलाघोंटू) को कैसे रोका जा सकता है? (How to prevent Diphtheria)

    डिप्थीरिया (Diphtheria) से बचाव करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं व टीके की खुराक दी जा सकती है जिसे आमतौर पर बचपन में ही लगवाया जा सकता है। डिप्थीरिया (Diphtheria) के टीके को डीटीएपी (DTAP) कहा जाता है और यह आमतौर पर काली खांसी और टेटनस के टीके के साथ दिया जाता है जिसे पांच खुराकों में उम्र के अनुसार दिया जाता हैः

    • जब शिशु की उम्र दो माह की हो जाती है
    • जब शिशु की उम्र चार माह की हो जाती है
    • जब शिशु की उम्र छह माह की हो जाती है
    • जब शिशु की उम्र 15 से 18 माह की हो जाती है
    • जब शिशु की उम्र 4 से 6 साल की हो जाती है

    इसके अलावा, इस टीके का असर अगले 10 सालों तक रह सकता है। कुछ स्थितियों में आपको बच्चे की उम्र 12 साल होने पर भी इस टीके को लगवाना जरूरी हो सकता है जिसे बूस्टर शॉट कहा जा सकता है।

    इसी तरह छोटे बच्चों को डीटी (DT) वैक्सीन भी लगवानी चाहिए, जो डिप्थीरिया (Diphtheria) और टेटनस से बचाता है।

    इसी तरह वयस्क लोगों को गलाघोंटू रोग से बचाव करने के लिए टीडीएपी (TDAP) का वैक्सीन लगावाना चाहिए। यह टेटनस, डिप्थीरिया (Diphtheria) और पर्टुसिस (काली खांसी) से बचाता है।

    वहीं, वयस्कों में टेट (TD) का टीका टेटनस और डिप्थीरिया (Diphtheria) से बचाता है।

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    उपचार

    डिप्थीरिया (गलाघोंटू) का उपचार कैसे किया जाता है? (Treatment for Diphtheria)

    डिप्थीरिया (गलाघोंटू) एक गंभीर बीमारी है। डिप्थीरिया (Diphtheria) का उपचार करने के लिए आपके डॉक्टर निम्नलिखित दवाओं के सेवन की सलाह दे सकते हैंः

    एंटी-टॉक्सिन्‍स (Antitoxin)

    एंटी-टॉक्सिन्‍स दवा टीके के रूप में दी जा सकती है जिसे नस या मांसपेशी में लगाया जाता है। इस टीके के लगाने से शरीर में मौजूद डिप्थीरिया (Diphtheria) के विषाक्त पदार्थों का प्रभाव बेअसर होने लगता है। इस टीके की खुराक रोगी को कई चरणों में लगाई जा सकती है। हालांकि, इसकी खुराक देने से पहले डॉक्टर इसकी पुष्टी करते हैं कि रोगी को एंटी-टॉक्सिन्‍स से किसी तरह की कोई एलर्जी न हो।

    एंटीबायोटिक दवाएं (Antibiotics)

    एंटीबायोटिक्स दवाएं, जैसेः

    अगर आपका इससे जुड़ा किसी तरह का कोई सवाल है, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।

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