हम सभी अपने माता-पिता को देखते हुए बढ़े होते हैं। वो कैसे बात करते हैं या फिर हमे किस तरह से समझाते हैं, इन बातों का असर बच्चों के व्यवहार में पड़ता है। जब पेरेंट्स शालीन व्यवहार करते हैं, तो बच्चा भी वही सब बातें सीखता है। पेरेंट्स का व्यवहार सही नहीं है तो इसका असर बच्चे में भी साफ देखने को मिलता है। कई बार माता-पिता का यही व्यवहार बच्चों के डर का कारण भी बन सकते हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको उन घरेलू समस्याओं के बारे में बताएंगे जो बच्चों के डर का कारण बन सकते हैं।
माता-पिता की आदतें जो बन सकती हैं बच्चों के डर का कारण
इमोशनल एब्यूज
अक्सर पेरेंट्स किसी न किसी स्ट्रेस की वजह से इमोशनल एब्यूज (Emotional abuse) करने लगते हैं, जो भी बच्चों के डर का कारण बन सकता है।
अपमानजनक व्यवहार
माता-पिता का अपमानजनक व्यवहार भी बच्चों पर बुरा असर डालता है। जो एज रिलेटेड प्रॉब्लम का कारण बन सकता है।
ओवर-पेरेंटिंग
ओवर पेरेंटिंग की समस्याएं अक्सर सिंगल चाइल्ड (Signal child) में ज्यादा देखी जाती है। सिंगल चाइल्ड होने के कारण माता-पिता बच्चे का ख्याल जरूरत से ज्यादा रखने लगते हैं, जिसके कारण बच्चे का मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है और यह भी बच्चों में डर का कारण बन सकता है।
बच्चों के डर पर क्या कहती है स्टडी?
कुछ अध्ययनों और साइकोलॉजिकल रिसर्च में ये बात सामने आई है कि पेरेंट्स का व्यवहार बच्चों में पॉजिटिव या निगेटिव इफेक्ट डाल सकता है। यूनीवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में हुई एक स्टडी के मुताबिक, एब्युसिव पैरेंट्स के कारण बच्चों को एज रिलेटेड डिसीज, जैसे कि, कार्डियोवेस्कुलर बीमारी हो सकती है। साथ ही, 756 सब्जेक्ट में रिसर्च के अकॉर्डिंग, ऐसे में जब बच्चे बड़े (एडल्ट) हो जाते हैं तो, उन्हें हाय कोलेस्ट्राल (High Cholesterol), हाय ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) और डायबिटीज (Diabetes) का खतरा भी बना रहता है।
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बुरे व्यवहार के दौरान दिखते हैं ये लक्षण
जब बच्चे अपने आस-पास अनुकूल वातावरण नहीं पाते हैं, तो वो कुछ अलग तरह का व्यवहार करने लगते हैं। उनमे कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जैसे,
- बच्चा बड़ों की बातों को अनसुना करता है।
- बच्चा ज्यादा शैतानी करता है।
- बच्चे का व्यवहार दूसरों के प्रति ठीक नहीं है।
- बच्चा पढ़ाई में पिछड़ने लगता है।
- बच्चा बीमारी के बहाने बताता है।
- बच्चा गुस्सा दिखाता है।
- बच्चा अपने से बड़ों की इज्जत नहीं करता है।
- बच्चा अपने पेरेंट्स या किसी दूसरे पर हाथ उठाता है।
- बच्चा असभ्य भाषा का इस्तेमाल करता है।
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माता-पिता की बुरी आदतें भी बन सकती हैं बच्चों के डर का कारण
रिसर्च में ये बात भी सामने आई है कि बचपन में किसी भी समस्या के कारण लिया गया स्ट्रेस बच्चों को लाइफटाइम किसी न किसी बीमारी के रूप में परेशान करता है। साथ ही, अगर माता-पिता ड्रग्स के लती हैं, तो बच्चों के अंदर असुरक्षा का भाव आ जाता है जो बच्चों के डर का कारण भी बना सकता है और आगे चलकर बच्चे के अंदर माता-पिता के लिए सेवाभाव खत्म हो सकता है।
डिप्रेशन भी हो सकता है बच्चों के डर का कारण
अगर माता या पिता में से कोई एक या दोनों ही डिप्रेशन (Depression) का शिकार होते हैं, तो उनका डिप्रेशन भी बच्चों (Depression in child) के डर का कारण बन सकता है। डिप्रेशन के शिकार माता-पिता कई बार बच्चों को खुश रहने के लिए उन पर प्रेशर डाल सकते हैं, इसका असर बच्चों पर पड़ता है। बच्चे बातों को समझते हैं और बड़े होने पर अपनी पर्सनल बातों को माता-पिता के साथ शेयर नहीं करते हैं।
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बच्चों के डर को दूर करने के लिए उपाय
बच्चों के डर को दूर करने के लिए माता-पिता या उनके करीबियों को बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्थिति का ख्याल रखना चाहिए। एक बात ध्यान में रखें कि बच्चे का विकास (Child development) धीरे-धीरे उसकी उम्र के अनुसार होते है, इसलिए हर उम्र में बच्चों के साथ-साथ व्यवहार का खास ध्यान रखना चाहिए।
जन्म से लेकर 6 साल के बच्चे
जन्म से लेकर लगभग 6 साल का शिशु और छोटे बच्चे माता-पिता की किसी भी परेशानी या बात को बहुत ही कम समझते हैं। इस उम्र में बच्चे बहुत उपद्रवी होते हैं। छोटी-छोटी बातों पर बहुत ज्यादा रोना, हर बात मनवाने के लिए जिद्द (Sturben) करना इस उम्र के बच्चों की खास आदत हो सकती है। इसलिए उम्र के बच्चों के साथ उनके माता-पिता को पूरा समय देना चाहिए। अगर दोनों साथी के बीच कभी कोई मन-मुटाव या किसी भी तरह की बहस होती है, तो बच्चे के सामन न करें।
7 से 10 साल के बच्चे
7 से 10 साल की उम्र में बच्चों के दिमाग बहुत ज्यादा एक्टिव रहता है। इस उम्र में वो हर बात को बहुत जल्दी समझते और सीखते हैं। ऐसे में माता-पिता कोई भी गलती बच्चों में डर का कारण बन सकती है।
8 से 11 साल के बच्चे
आमतौर पर इस उम्र के बच्चे हर तरह की स्थिति को बड़े अच्छे से समझ सकते हैं। इसके अलावा, बच्चे के आसा-पास का सामाजिक (Social) और पारिवारिक व्यवहार भी बच्चे के लिए कई तरह से मायने रखता है। इसलिए बच्चों के डर को समझने के लिए उनसे खुलकर बात भी किया जा सकता है। इस उम्र में माता-पिता अपने बच्चों के बहुत करीब आ सकते हैं। इसके लिए वो बच्चों के साथ उनके होमवर्क कर सकते हैं, उनके साथ थोड़ी देर तक कोई खेल खेल सकते हैं या फिर चाहें तो उन्हें अपने साथ घर के किसी छोटे-मोटे कामों में हाथ बटाने के लिए भी कह सकते हैं।
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अगर माता-पिता बनें बच्चों में डर का कारण, तो क्या करें?
लगभग 12 से 14 साल के बच्चे पारिवारिक और सामाजित स्तर के अलग-अलग व्यवहारों को समझने लगते हैं। ऐसे में अगर घर के अंदर उनके माता-पिता झगड़ते हैं, तो बच्चों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसेः
- अगर दो बड़े लोग आपस में झगड़ रहे हैं या कोई बहस कर रहे हैं, तो उनके बीच मामले को रोकने के लिए न आएं।
- जब भी लगे कि माता-पिता के बीच झगड़ा शुरू होने वाले है या शुरू हो गया है, तो आपको चाहिए आप खुद ही उस स्थान से किसी शांत स्थान में चलें जाएं।
- अगर ऐसे लगे कि उनके बीच का बहस ज्यादा बढ़ रहा है, तो घर के किसी अन्य वयस्क को इसके बारे में बचाएं या पड़ोसियों की मदद लें।
ये बात ध्यान देने वाली है कि जैसा व्यवहार माता-पिता बच्चों के साथ करते हैं, ठीक वैसा ही व्यवहार आगे चलकर बच्चे करते हैं। जब माता-पिता बूढ़े हो जाते हैं तो कई बार चाहकर भी बच्चों के लिए उचित करना मुश्किल हो जाता है।
ऊपर दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सक द्वारा प्रदान नहीं की जाती। इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए कृपया अपने डॉक्टर से बात करें।
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