अगर माता या पिता में से कोई एक या दोनों ही डिप्रेशन (Depression) का शिकार होते हैं, तो उनका डिप्रेशन भी बच्चों (Depression in child) के डर का कारण बन सकता है। डिप्रेशन के शिकार माता-पिता कई बार बच्चों को खुश रहने के लिए उन पर प्रेशर डाल सकते हैं, इसका असर बच्चों पर पड़ता है। बच्चे बातों को समझते हैं और बड़े होने पर अपनी पर्सनल बातों को माता-पिता के साथ शेयर नहीं करते हैं।
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बच्चों के डर को दूर करने के लिए उपाय
बच्चों के डर को दूर करने के लिए माता-पिता या उनके करीबियों को बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्थिति का ख्याल रखना चाहिए। एक बात ध्यान में रखें कि बच्चे का विकास (Child development) धीरे-धीरे उसकी उम्र के अनुसार होते है, इसलिए हर उम्र में बच्चों के साथ-साथ व्यवहार का खास ध्यान रखना चाहिए।
जन्म से लेकर 6 साल के बच्चे
जन्म से लेकर लगभग 6 साल का शिशु और छोटे बच्चे माता-पिता की किसी भी परेशानी या बात को बहुत ही कम समझते हैं। इस उम्र में बच्चे बहुत उपद्रवी होते हैं। छोटी-छोटी बातों पर बहुत ज्यादा रोना, हर बात मनवाने के लिए जिद्द (Sturben) करना इस उम्र के बच्चों की खास आदत हो सकती है। इसलिए उम्र के बच्चों के साथ उनके माता-पिता को पूरा समय देना चाहिए। अगर दोनों साथी के बीच कभी कोई मन-मुटाव या किसी भी तरह की बहस होती है, तो बच्चे के सामन न करें।
7 से 10 साल के बच्चे
7 से 10 साल की उम्र में बच्चों के दिमाग बहुत ज्यादा एक्टिव रहता है। इस उम्र में वो हर बात को बहुत जल्दी समझते और सीखते हैं। ऐसे में माता-पिता कोई भी गलती बच्चों में डर का कारण बन सकती है।
8 से 11 साल के बच्चे
आमतौर पर इस उम्र के बच्चे हर तरह की स्थिति को बड़े अच्छे से समझ सकते हैं। इसके अलावा, बच्चे के आसा-पास का सामाजिक (Social) और पारिवारिक व्यवहार भी बच्चे के लिए कई तरह से मायने रखता है। इसलिए बच्चों के डर को समझने के लिए उनसे खुलकर बात भी किया जा सकता है। इस उम्र में माता-पिता अपने बच्चों के बहुत करीब आ सकते हैं। इसके लिए वो बच्चों के साथ उनके होमवर्क कर सकते हैं, उनके साथ थोड़ी देर तक कोई खेल खेल सकते हैं या फिर चाहें तो उन्हें अपने साथ घर के किसी छोटे-मोटे कामों में हाथ बटाने के लिए भी कह सकते हैं।