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डे ऑफ द डेफ: क्या आप जानते हैं बधिर लोग कैसे बोलना सीखते हैं?

डे ऑफ द डेफ: क्या आप जानते हैं बधिर लोग कैसे बोलना सीखते हैं?

आमतौर पर बच्चे 1 साल की उम्र से थोड़ा-थोड़ा बोलना सीखने लगते हैं और वह आसपास की आवाज पर प्रतिक्रिया भी देते हैं, लेकिन ऐसे बच्चे जो सुन नहीं सकते या जन्म से ही बधिर हैं, उनके लिए बोलना सीखना आसान नहीं होता है। उनके लिए बोलना सीखना (Talking) किसी चुनौती से कम नहीं होता। बधिर लोग (Deaf people) आमतौर पर दो तरह से संवाद करते हैं, पहला लिप रीडिंग और दूसरा है साइन लैंग्वेज, यानी सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल। बधिर लोगों के संवाद के तरीकों और बधिर लोग बोलना कैसे सीखते हैं, इस बारे में जानिए इस आर्टिकल में।

बहरापन (Deafness) क्या होता है?

जो लोग जन्म से बिल्कुल सुन नहीं पाते या बहुत कम सुन पाते हैं, उन्हें बधिर कहते हैं। जबकि कुछ किसी दुर्घटना की वजह से सुनने की क्षमता खो देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 466 मिलियन लोग किसी न किसी रूप में बहरेपन (Deafness) से जुड़ी समस्या के शिकार है, जिसमें से 34 मिलियन बच्चे हैं। कुछ लोग कान में लगी मशीन की मदद से बाहरी आवाज को सुनते हैं और उसी के अनुसार बात करते हैं।

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बधिर होने के कारण (Cause of Deafness)

जन्मजात बहरेपन के कारणों में आमतौर पर शामिल है –

कुछ लोग जन्म से बहरे नहीं होते, मगर कुछ कारणों से बाद में बधिर हो जाते हैं। ऐसा निम्न कारणों से हो सकता है –

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बधिर लोग (Deaf people) बोलना कैसे सीखते हैं?

ऐसे लोग जिनकी सुनने की क्षमता बचपन में तो थी, लेकिन बाद में किसी कारण बधिर हो गए, उनके लिए बोलना सीखना जन्मजात बधिर लोगों (Deaf people) से आसान होता है, क्योंकि वे आवाजों और बोलने के कौशल से परिचित होते हैं। ऐसे लोगों को स्पीच थेरेपी से मदद मिलती है, जिसमें पहले से सीखी हुई भाषा और भाषा कौशल के विकास पर फोकस किया जाता है। साथ ही अलग-अलग ध्वनि (Sound) को पहचानना, अपनी आवाज और टोन को नियंत्रित (Control) करना सिखाया जाता है।

जन्मजात बधिर लोग (Deaf people) कैसे बोलना सीखते हैं?

जन्म से बहरे लोगों के लिए बोलना सीखना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है, लेकिन स्पीच थेरेपी और कान में लगाई जानी वाली मशीनों की मदद से बधिर लोग (Deaf people) भी सुनने और बोलने लगते हैं। बधिर लोगों को इन तरीकों से न सिर्फ संवाद करने में मदद मिलती है, बल्कि सामने वाला क्या कह रहा है, वह यह भी समझने लगते हैं।

स्पीच ट्रेनिंग- यह एक तरह का मौखिक प्रशिक्षण होता है, जिसमें व्यक्ति को अलग-अलग तरह की आवाज निकालने के बारे में और उन आवाजों से वाक्य, शब्द बनाना सिखाया जाता है। इसके अलावा व्यक्ति अपनी आवाज और टोन को कैसे कंट्रोल कर सकता है इस बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाता है। बधिर लोगों के लिए स्पीच ट्रेनिंग (Speech training) बहुत कारगर मानी जाती है।

असिस्टिव डिवाइस- कुछ सहयोगी यंत्र यानी मशीनों की मदद से बधिर लोग (Deaf people) बाहरी आवाज को सुन और समझ पाते हैं और उनके लिए बोलना सीखना आसान हो जाता है। श्रवण यंत्र और ऑपरेशन के जरिए कॉकलियर इंप्लांट किया जाता है, जिसकी मदद से बधिर लोग आवाज सुन पाते हैं और बोलना सीखना उनके लिए आसान हो जाता है।

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लिप रीडिंग- बधिर लोग इस तकनीके जरिए दूसरों से संवाद करते हैं। इसमें वह सामने वाले के होंठों, जीभ और चेहरे के हावभाव को देखकर वह क्या बोल रहा है इस बात का अनुमान लगाते हैं। बधिर लोगों के लिए तकनीक (Techniques for Deaf people) बहुत ही कारगर होती है। लिप रीडिंग सीखने के लिए बधिर व्यक्ति क्लासेस जॉइन कर सकता है और धीरे-धीरे प्रैक्टिस करने पर उसके लिए लिप रीड करना आसान हो जाता है, लेकिन इसके लिए बहुत धैर्य की जरूरत होती है, क्योंकि इस स्किल को सीखने में थोड़ा समय लगता है।

सभी बधिर लोग भाषा (Language of Deaf people) का इस्तेमाल नहीं करते

सभी बहरे लोग बोलते नहीं है, कुछ संवाद के लिए सांकेतिक भाषा का भी इस्तेमाल करते, जो हर देश में अलग-अलग होती है। यूनाइटेड किंगडम में ब्रिटिश साइन लैंग्वेज (BSL) और अमेरिका में अमेरिकन साइन लैंग्वेज (ASL) का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि भारत में भारतीय सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल लोगों द्वारा किया जाता है।

  • जन्म से बहरे लोगों द्वारा और जो डेफ कम्युनिटी के सदस्य है उनके द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।।
  • यह विजुअल लैंग्वेज है जिसमें हाथ, चेहरे के हावभाव और बॉडी लैंग्वेज की मदद से संवाद किया जाता है।
  • यह अंग्रेजी से खुद को अलग रखती है और इसकी खुद की व्याकरण संरचना है और इसमें स्थानीय संकेतों का इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसमें दो हाथ वाले फिगर स्पेलिंग अल्फाबेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से लोगों, जगह आदि का नाम लिया जाता है। लिप रीडिंग (Reading) करने वाले भी शब्दों को स्पष्ट करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।

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कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी क्या है?

बधिर लोगों (Deaf people) की सुनने की क्षमता बढ़ाने के लिए की जाने वाली यह एक सर्जरी है। जब अन्य तरीकों से किसी बधिर की सुनने की क्षमता बेहतर नहीं होती है, तो डॉक्टर इस सर्जरी की सलाह देता है, यानी इसे अंतिम विकल्प कहा जा सकता है। इस सर्जरी में एक इलेक्ट्रिकल डिवाइस (Electronic device) ऑपरेशन करके कान के अंदर वाले हिस्से में डाली जाती है और एक डिवाइस बाहर लगी होती है जिसकी मदद से इसे ऑपरेट किया जाता है।

कॉकलियर इंप्लांट (Cochlear implant) कैसे काम करता है?

यह निम्न तरीकों से काम करता हैः

  • डिवाइस का बाहरी हिस्सा जिसे माइक्रोफोन (Microphone) कहते हैं बाहरी आवाज को सुनकर उसे स्पीच प्रोसेसर के पास भेजता है।
  • उसके बाद स्पीच प्रोसेसर उस आवाज को डिजिटल सिग्नल में बदलकर इसे ट्रांसमीटर (Transmitter) में भेजता है।
  • ट्रांसमीटर कान के अंदर लगी कॉकलियर डिवाइस, जिसे रिसीवर कहते हैं, उसके पास सिग्नल भेजता है।
  • उसके बाद इलेट्रोडस रिसीवर से सिंग्नल प्राप्त करने के बाद कॉक्लिया (कान के अंदर का हिस्सा) में मौजूद ऑडिटरी नर्व (Ordinary nerve) को ट्रिगर करता है, जो सिंग्नल को मस्तिष्क (Brain) तक पहुंचाता है और आवाज व्यक्ति को समझ आती है।

बहरे लोगों के लिए सामान्य लोगों की तरह बात करना संभव हो गया है, क्योंकि अब कई हियरिंग डिवाइस और स्पीच ट्रेनिंग से उन्हें मदद मिलती है। आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ बधिर लोग (Deaf people) आसानी से बोलना सीख जाते हैं, जबकि कुछ ऐसा नहीं कर पाते। दरअसल, इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे किसी व्यक्ति ने अपने सुनने की क्षमता कब खोई। बधिर लोगों को बोलना सीखने के लिए बहुत धैर्य और प्रैक्टिस की जरूरत होती है।

कुछ बधिर लोग (Deaf people) बोलना सीखने की बजाय सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करके संवाद करने में सहज महसूस करते हैं। यह व्यक्ति की अपनी पसंद और क्षमता पर निर्भर है कि वह किस तरह से संवाद करना चाहता है।

उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और बधिर लोगों (Deaf people) के बोलने से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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Language acquisition for deaf children: Reducing the harms of zero tolerance to the use of alternative approaches/https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3384464/

Current Version

08/07/2021

Manjari Khare द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Nidhi Sinha


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Manjari Khare द्वारा लिखित · अपडेटेड 08/07/2021

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