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क्या प्रेग्नेंसी में रोना गर्भ में पल रहे शिशु के लिए हो सकता है खतरनाक?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 12/03/2021

    क्या प्रेग्नेंसी में रोना गर्भ में पल रहे शिशु के लिए हो सकता है खतरनाक?

    नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार रोना सेहत के लिए फायदेमंद होता है। ऐसा हमसभी अपने निजी जिंदगी में भी महसूस करते हैं। क्योंकि रोने के बाद मन हल्का हो जाता है लेकिन, क्या आप जानते हैं प्रेग्नेंसी में रोना नुकसानदायक हो सकता है? गर्भावस्था में रोना गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी खतरनाक हो सकता है? वैसे देखा जाए तो रोना किसी को भी आ सकता है लेकिन, प्रेग्नेंसी में रोना वो भी बार-बार तो गर्भवती महिला को इस परेशानी से बचना होगा।

    प्रेग्नेंसी में रोना क्यों आता है?

    अगर किसी महिला का स्वभाव पहले से ही इमोशनल है या वो बहुत जल्द किसी भी बात पर भावुक हो जाती हैं, तो ऐसी स्थिति में महिला रो भी सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा इमोशनल होना नॉर्मल है। हालांकि प्रेग्नेंसी में रोना जरूरत से ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है।

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    प्रेग्नेंसी में रोना, क्या हैं इसके कारण?

    गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाएं अपने आपको अकेला समझने लगती हैं। अकेलेपन का ख्याल कई नकारात्मक विचारों को पैदा कर सकता हैऔर प्रेग्नेंसी के दौरान तो गर्भवती महिला को कभी भी किसी की भी आवश्यकता पड़ सकती है। इस तरह के ख्याल गर्भवती महिला को बार-बार रोने पर मजबूर कर देते हैं। इसके साथ ही प्रेग्नेंसी में रोने के कई कारण हो सकते हैं। इन कारणों में शामिल है:

    प्रेग्नेंसी में रोना: कारण 1- तनाव

    गर्भधारण की प्लानिंग करने के बाद भी गर्भावस्था के दौरान तनाव या टेंशन में आना आम परेशानी हो सकती है। क्योंकि प्रेग्नेंसी के नौ महीने तक शरीर में कई अलग-अलग तरह के बदलाव आने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य में भी इसका बदलाव देखा जा सकता है। प्रेग्नेंट लेडी पारिवारिक स्थिति, जॉब से संबंधित परेशानी या कोई अन्य परेशानी होने पर गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान रोने लगती हैं।

    प्रेग्नेंसी में रोना: कारण 2- हॉर्मोन में बदलाव

    गर्भावस्था की शुरुआत के साथ जिस तरह से कई शारीरिक बदलाव देखे जाते हैं। इन्हीं बदलाव में से एक है हॉर्मोनल बदलाव। प्रेग्नेंसी के दौरान एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्ट्रोन और ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) हॉर्मोन लेवल बढ़ते हैं। हॉर्मोन्स में हो रहे बदलाव की वजह से भी प्रायः गर्भवती महिला बार-बार रोने लगती हैं।   

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    प्रेग्नेंसी में रोना: कारण 3- लेबर पेन

    मां बनने वाली महिला प्रेग्नेंसी के दौरान कई बातों को लेकर परेशान रहती हैं। उन्हें विशेषकर जन्म लेने वाला शिशु कैसा होगा?  सिजेरियन डिलिवरी न करनी पड़े! मुझे कुछ होगा तो नहीं! लेबर पेन के दौरान कितनी परेशानी होगी? ऐसे ही कई अलग-अलग तरह के विचार आने लगते हैं। ऐसी स्थिति या मन में उठ रहे कई तरह के सवाल गर्भावस्था में रोने का कारण बनने लगते हैं।

    प्रेग्नेंसी में रोना: कारण 4- प्रेग्नेंसी के अलग-अलग ट्राइमेस्टर

    प्रेग्नेंसी के दौरान अलग-अलग समय पर किये जाने वाले अल्ट्रासाउंड में बच्चे को गर्भ में बढ़ते हुए देखना, उसकी धड़कने सुनना गर्भवती महिला को भावुक करने वाला पल होता है। ये पल बनने वाली मां के आंखों में आंसू ला देता है। हालांकि इससे कोई परेशानी तो नहीं होती है।

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    प्रेग्नेंसी में रोना: कारण 5- कपड़े

    महिलाएं कपड़ों और अपने लुक्स को लेकर हमेशा ही सचेत रहती हैं और इस दौरान ऐसे भी वजन बढ़ने की वजह से कपड़ों को लेकर परेशानी होने की वजह से भी प्रेग्नेंसी में रोना आना सामान्य हो जाता है। हालांकि इस बारे में जब हैलो स्वास्थ्य की टीम मुंबई की रहने वाली माधवी कुलकर्णी से बात की तो नेहा कहतीं है कि “जब मैं प्रेग्नेंट थी तो शुरुआती समय में मुझे थोड़ी परेशानी होती थी कपड़ों को लेकर लेकिन, मेरी मम्मी ने मुझे बताया की ऐसे वक्त में आरामदायक और ढीले कपड़े पहनने चाहिए। हालांकि जब जिस तरह से आसानी से मैटरनिटी कपड़े मिलते हैं आज से 10-15 साल पहले मैटरनिटी ऑउटफिट का ट्रेंड नहीं था।’

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    क्या प्रेग्नेंसी में रोना गर्भवती महिला को परेशानी में डाल सकता है?

    शरीर में हो रहे फिजिकल चेंज और इमोशनल बदलाव की वजह से गर्भवस्था में रोना आना सामान्य है लेकिन, ज्यादातर वक्त रोना गर्भवती महिला को मेंटली तौर से और ज्यादा परेशानी में डाल सकता है। कुछ महिलाएं तो रोने की वजह से प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन की शिकार भी हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पूरे विश्व में 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और 13 प्रतिशत महिलाएं शिशु को जन्म के बाद महिलाएं मेंटल डिसऑर्डर की समस्या से पीड़ित हो जाती हैं। इन्हीं आंकड़ों में अगर डेवलपिंग कंट्रीज की बात करें तो 15 से 16 प्रतिशत गर्भवती महिला और 19 से 20 प्रतिशत महिला शिशु को जन्म के बाद मेंटल डिसऑर्डर के अंतर्गत आने वाली सबसे पहली परेशानी डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार डिप्रेशन की वजह से कुछ महिलाएं अपने नवजात का भी देखभाल करने में असमर्थ हो जाती हैं।

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    अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी में ज्यादा रोना आता है, तो उन्हें निम्नलिखित परेशानी हो सकती है। इन परेशानियों में शामिल है:-

    •  किसी भी काम पर कॉन्संट्रेट (ध्यान केंद्रित) करने में परेशानी हो सकती है
    • भूख नहीं लगना
    • पसंदीदा कामों को करने में इंट्रेस्ट न लेना
    • बिना किसी बात के भी चिंतित रहना
    • अपने आपको दोषी समझना
    • जरूरत से ज्यादा सोना या नींद न आना
    • खुद को नुकसान पहुंचाना या दूसरों को नुकसान पहुंचाना

    अगर प्रेग्नेंसी में रोना या ऊपर बताई गई स्थिति एक या दो हफ्ते तक रहना कोई खास परेशानी का कारण नहीं है लेकिन, अगर यही परेशानी लगातार बनी रहे तो समस्या बढ़ सकती है।

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    क्या प्रेग्नेंसी में रोना या डिप्रेशन की समस्या गर्भ में पल रहे शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकती है?

    प्रेग्नेंसी के दौरान कभी-कभार रोना गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है लेकिन, गर्भावस्था के दौरान अधिक ज्यादा रोना या डिप्रेस्ड रहना जन्म लेने वाले शिशु की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। 

    रिसर्च के अनुसार प्रेग्नेंसी में रोना, एंग्जाइटी या डिप्रेशन की वजह से समय से पहले शिशु के जन्म का कारण बन सकती है। ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि गर्भावस्था में रोना, एंग्जाइटी या डिप्रेशन की वजह से गर्भवती महिला अपना ठीक तरह से ध्यान रखने में सक्षम नहीं रह सकती हैं। अब ऐसी स्थिति होने पर गर्भवती महिला फिजकल तौर एक्टीव नहीं रह पाती हैं, पौष्टिक आहार का सेवन नहीं कर पाती हैं और अपने आपको खुश भी नहीं रख पाती हैं। इन सबका का असर उनकी सेहत के साथ-साथ जन्म लेने वाले नवजात पर भी पड़ना तय होता है।

    प्रेग्नेंसी में रोना या डिप्रेस्ड रहने से जुड़ी जानकारी के लिए जब हमने पुणे की रहने वाली 33 वर्षीय प्रियम शेखर से जानना चाहा तो प्रियम कहती हैं की ‘ मैं खुद ढ़ाई साल की एक बच्ची की मां हूं और मां बनने वाली हर महिला यह समझती हैं की उन्हें फिट रहना प्रेग्नेंसी में या शिशु के जन्म के बाद भी बेहद जरूरी है। क्योंकि मां फिट तो बच्चा भी फिट रहेगा। लेकिन, कई बार न चाहते हुए भी गर्भवती महिला इस दौरान परेशान हो जाती हैं अब चाहे वह उनकी पारिवारिक स्थिति हो, फाइनेंशियल स्थिति हो या कोई अन्य कारण। अब ऐसे में गर्भवती महिला की परेशानी तो बढ़ ही जाती है।’

    कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार अगर प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला डिप्रेशन का शिकार किसी भी वजह से हो जाती है और अगर उसे वक्त रहते न संभाला गया तो उन महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन (PPD) की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए अगर किसी भी महिला को प्रेग्नेंसी में रोना आता है या वो डिप्रेस्ड रहती है तो उनके परिवार वालों को इस परेशानी को समझना बेहद जरूरी होता और इसे नजरअंदाज न करते हुए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

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    प्रेग्नेंसी में रोना आता है, तो इस परेशानी को दूर करने के लिए क्या करें?

    गर्भावस्था के दौरान शरीर में हो रहे हॉर्मोनल बदलाव या मूड स्विंग की समस्या को दरकिनार नहीं किया जा सकता है लेकिन, कुछ बातों को ध्यान में रखकर गर्भावस्था में रोना, डिप्रेशन या एंग्जाइटी की समस्या से बचा सकता है। ऐसी किसी भी परेशानी से बचने के लिए गर्भवती महिला को निम्नलिखित टिप्स फॉलो करना चाहिए। इन टिप्स में शामिल है:

    अच्छी नींद लें- जरूरत से ज्यादा सोना या जरूरत से कम सोना दोनों ही नुकसानदायक होता है। इसलिए 7 से 9 घंटे की साउंड स्लीप रोजाना लें। समय पर सोने की आदत डालें और समय पर जागने की।

    एक्टिव रहें- प्रेग्नेंसी कोई बीमारी नहीं जबतक डॉक्टर आपको कंप्लीट बेड रेस्ट की सलाह न दें तब तक सिर्फ आराम ही न करें। इसलिए बेहतर होगा की गर्भवती महिला फिजिकली एक्टिव अपने आपको रखें।

    आहार- प्रेग्नेंट लेडी को अपने डायट में पौष्टिक आहार शामिल करना चाहिए। वैसे खाद्य पदार्थों को शामिल नहीं करना चाहिए जिससे एलर्जी हो या उनके लिए नुकसानदायक हो।

    एक्सरसाइज- प्रेग्नेंसी के दौरान आसान एक्सरसाइज किये जा सकते हैं। सिर्फ गर्भवती महिला को अपने गायनोकोलॉजिस्ट की सलाह लेकर वर्कआउट करना चाहिए। वर्कआउट हमेशा फिटनेस एक्सपर्ट की देखरेख में करें। अगर आप वर्कआउट नहीं कर पा रहीं हैं, वो सावधानी पूर्वक वॉक करें। आप चाहें तो इस दौरान योग भी कर सकती हैं।

    लोगों से बात करें- अगर आप अपनी प्रेग्नेंसी की वजह से चिंतित रहती हैं, तो दूसरी गर्भवती महिला से बात करें। उन महिलाओं से भी बात करें जो मां बन चुकी हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान आप या आपके लाइफ पार्टनर दोनों ही पेरेंटिंग क्लास भी जॉइन कर सकती हैं। पेरेंटिंग क्लास में प्रेग्नेंसी से लेकर बेबी डिलिवरी और उसके बाद शिशु की देखभाल की पूरी जानकारी दी जाती है। अगर आप इस बात को लेकर भी परेशान रहती हैं की आप शिशु की देखभाल कैसे करेंगी तो इस बारे में इतना न सोचें। इससे आपका तनाव बढ़ेगा। अच्छी बातें सोचें, पॉजिटिव रहें और खुश रहें क्योंकि शिशु को  हेल्दी रखने के साथ-साथ अच्छी परवरिश के लिए उसे आपकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी।

    इन ऊपर बताई गई बातों के साथ-साथ गर्भवती महिला को निम्नलिखित टिप्स फॉलो करना चाहिए। जैसे:-

    • प्रेग्नेंसी में खुश रहने के उपाय में पॉजिटिव सोचें मन में नकारात्मक विचार न आने दें।
    • प्रेग्नेंसी में खुश रहने के उपाय में आपको आराम करना है जरूरी।
    • गर्भ में पल रहे शिशु से बात करें उससे बॉन्डिंग बनायें
    • गर्भावस्था के दौरान फन एक्टिविटी भी करें जैसे फोटो शूट कराएं। ये आपका यादगार पल है।
    • नॉर्मल डेज में जिस तरह से आप पार्लर जाती हैं और अपने लुक्स को मेंटेन रखती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान इसे स्किप न करें।
    • शॉपिंग पर जाएं।
    • अपने लाइफ पार्टनर के साथ डेट पर जाएं
    • नवजात से जुड़ी किताबे पढ़ें (गर्भ संस्कार)
    • आजकल बेबी बंप आउटफिट पहनें का ट्रेंड भी खूब है। आपभी ऐसे ऑउटफिट पहनें।

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    प्रेग्नेंसी में रोना या डिप्रेशन जैसी परेशानी होने पर डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?

    निम्नलिखित स्थिति समझ आने पर डॉक्टर से मिलना आवश्यक होता है। जैसे:

    1. गर्भवती महिला का अत्यधिक सुस्त होना
    2. गर्भवती महिला का एक या दो हफ्ते से ज्यादा रोते रहना
    3. प्रेग्नेंट लेडी का हमेशा सोते रहना या नींद नहीं आना
    4. अत्यधिक चिड़चिड़ा स्वभाव होना
    5. किसी भी काम को करने की इच्छा न होना
    6. सेहत के प्रति लापरवाह होना

    अगर गर्भवती महिला में इन ऊपर बताये गए कोई भी लक्षण नजर आते हैं, तो यह परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होनी चाहिए की इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इसलिए गर्भवती महिला को जल्द से जल्द डॉक्टर के संपर्क में लाएं और उनकी परेशानी बताएं।

    गर्भावस्था में रोना या डिप्रेशन जैसी स्थिति में परिवार के सदस्य कैसे रखें शिशु को जन्म देने वाली महिला का ध्यान?

    प्रेग्नेंसी में खुश रहना एक नहीं बल्कि कई बातों पर निर्भर करता है। जैसे:-

    • परिवार का साथ- प्रेग्नेंसी की शुरुआत से ही गर्भवती महिला में कई तरह के बदलाव आते हैं। ऐसे में उन्हें भावनात्मक सहारे (emotional support) की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि शुरुआत के तीन महीने किसी भी गर्भवती महिला के लिए थोड़ा कठिन होता है। ऐसे में घर के सदस्यों को गर्भवती महिला की मदद करनी चाहिए। उन्हें अकेला महसूस नहीं होने देना चाहिए।

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    • पति का साथ- प्रेग्नेंसी के दौरान पति की जिम्मेदारी कई तरह से बढ़ जाती है। उन्हीं में से एक है कि गर्भावस्था के दौरान प्रेग्नेंट लाइफ पार्टनर से क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं। जन्म लेने वाले बच्चे के होने वाले पिता को इस बारे में सोचना होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान ऐसी बातें बिलकुल न बोले जिससे पत्नी के मन को ठेस पहुंचे। आखिर प्रेग्नेंसी में पति की जिम्मेदारी है कि पत्नी को खुश रखें। ऐसी कोई बात मजाक में भी न बोलें कि गर्भवती महिला को बुरा लगे और वो दुखी हो जाएं। इसके साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं बहुत इमोशनल हो जाती हैं। उन्हें छोटी-छोटी सी बात पर भी रोना आ सकता है। ऐसी स्थिति में तुम क्यों रो रही हो? जैसा सवाल न करें। अपनी प्रेग्नेंट पत्नी से समय-समय पर उनसे जुड़ी समस्याएं पूछनी चाहिए। अगर वो रो भी दें तो उन्हें प्यार से समझाना चाहिए और एहसास दिलाना चाहिए कि आप हर पल उनके साथ हैं। प्रेग्नेंसी में पति की जिम्मेदारी होती है कि पत्नी के इमोशनल लेवल में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझे।

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    प्रेग्नेंसी में रोना नुकसानदायक हो सकता है। अगर आपभी प्रेग्नेंसी के दौरान रोती थीं या आपकी कोई करीबी इन परिस्थितयों का सामना कर रहीं हैं, तो इससे जुड़े किसी तरह के सवाल का जवाब जानना चाहती हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।

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