क्या प्रेग्नेंसी में रोना गर्भवती महिला को परेशानी में डाल सकता है?
शरीर में हो रहे फिजिकल चेंज और इमोशनल बदलाव की वजह से गर्भवस्था में रोना आना सामान्य है लेकिन, ज्यादातर वक्त रोना गर्भवती महिला को मेंटली तौर से और ज्यादा परेशानी में डाल सकता है। कुछ महिलाएं तो रोने की वजह से प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन की शिकार भी हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पूरे विश्व में 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और 13 प्रतिशत महिलाएं शिशु को जन्म के बाद महिलाएं मेंटल डिसऑर्डर की समस्या से पीड़ित हो जाती हैं। इन्हीं आंकड़ों में अगर डेवलपिंग कंट्रीज की बात करें तो 15 से 16 प्रतिशत गर्भवती महिला और 19 से 20 प्रतिशत महिला शिशु को जन्म के बाद मेंटल डिसऑर्डर के अंतर्गत आने वाली सबसे पहली परेशानी डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार डिप्रेशन की वजह से कुछ महिलाएं अपने नवजात का भी देखभाल करने में असमर्थ हो जाती हैं।
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अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी में ज्यादा रोना आता है, तो उन्हें निम्नलिखित परेशानी हो सकती है। इन परेशानियों में शामिल है:-
- किसी भी काम पर कॉन्संट्रेट (ध्यान केंद्रित) करने में परेशानी हो सकती है
- भूख नहीं लगना
- पसंदीदा कामों को करने में इंट्रेस्ट न लेना
- बिना किसी बात के भी चिंतित रहना
- अपने आपको दोषी समझना
- जरूरत से ज्यादा सोना या नींद न आना
- खुद को नुकसान पहुंचाना या दूसरों को नुकसान पहुंचाना
अगर प्रेग्नेंसी में रोना या ऊपर बताई गई स्थिति एक या दो हफ्ते तक रहना कोई खास परेशानी का कारण नहीं है लेकिन, अगर यही परेशानी लगातार बनी रहे तो समस्या बढ़ सकती है।
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क्या प्रेग्नेंसी में रोना या डिप्रेशन की समस्या गर्भ में पल रहे शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकती है?
प्रेग्नेंसी के दौरान कभी-कभार रोना गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है लेकिन, गर्भावस्था के दौरान अधिक ज्यादा रोना या डिप्रेस्ड रहना जन्म लेने वाले शिशु की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
रिसर्च के अनुसार प्रेग्नेंसी में रोना, एंग्जाइटी या डिप्रेशन की वजह से समय से पहले शिशु के जन्म का कारण बन सकती है। ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि गर्भावस्था में रोना, एंग्जाइटी या डिप्रेशन की वजह से गर्भवती महिला अपना ठीक तरह से ध्यान रखने में सक्षम नहीं रह सकती हैं। अब ऐसी स्थिति होने पर गर्भवती महिला फिजकल तौर एक्टीव नहीं रह पाती हैं, पौष्टिक आहार का सेवन नहीं कर पाती हैं और अपने आपको खुश भी नहीं रख पाती हैं। इन सबका का असर उनकी सेहत के साथ-साथ जन्म लेने वाले नवजात पर भी पड़ना तय होता है।
प्रेग्नेंसी में रोना या डिप्रेस्ड रहने से जुड़ी जानकारी के लिए जब हमने पुणे की रहने वाली 33 वर्षीय प्रियम शेखर से जानना चाहा तो प्रियम कहती हैं की ‘ मैं खुद ढ़ाई साल की एक बच्ची की मां हूं और मां बनने वाली हर महिला यह समझती हैं की उन्हें फिट रहना प्रेग्नेंसी में या शिशु के जन्म के बाद भी बेहद जरूरी है। क्योंकि मां फिट तो बच्चा भी फिट रहेगा। लेकिन, कई बार न चाहते हुए भी गर्भवती महिला इस दौरान परेशान हो जाती हैं अब चाहे वह उनकी पारिवारिक स्थिति हो, फाइनेंशियल स्थिति हो या कोई अन्य कारण। अब ऐसे में गर्भवती महिला की परेशानी तो बढ़ ही जाती है।’
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार अगर प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला डिप्रेशन का शिकार किसी भी वजह से हो जाती है और अगर उसे वक्त रहते न संभाला गया तो उन महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन (PPD) की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए अगर किसी भी महिला को प्रेग्नेंसी में रोना आता है या वो डिप्रेस्ड रहती है तो उनके परिवार वालों को इस परेशानी को समझना बेहद जरूरी होता और इसे नजरअंदाज न करते हुए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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प्रेग्नेंसी में रोना आता है, तो इस परेशानी को दूर करने के लिए क्या करें?