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बधिर लोग (Deaf people) बोलना कैसे सीखते हैं?
ऐसे लोग जिनकी सुनने की क्षमता बचपन में तो थी, लेकिन बाद में किसी कारण बधिर हो गए, उनके लिए बोलना सीखना जन्मजात बधिर लोगों (Deaf people) से आसान होता है, क्योंकि वे आवाजों और बोलने के कौशल से परिचित होते हैं। ऐसे लोगों को स्पीच थेरेपी से मदद मिलती है, जिसमें पहले से सीखी हुई भाषा और भाषा कौशल के विकास पर फोकस किया जाता है। साथ ही अलग-अलग ध्वनि (Sound) को पहचानना, अपनी आवाज और टोन को नियंत्रित (Control) करना सिखाया जाता है।
जन्मजात बधिर लोग (Deaf people) कैसे बोलना सीखते हैं?
जन्म से बहरे लोगों के लिए बोलना सीखना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है, लेकिन स्पीच थेरेपी और कान में लगाई जानी वाली मशीनों की मदद से बधिर लोग (Deaf people) भी सुनने और बोलने लगते हैं। बधिर लोगों को इन तरीकों से न सिर्फ संवाद करने में मदद मिलती है, बल्कि सामने वाला क्या कह रहा है, वह यह भी समझने लगते हैं।
स्पीच ट्रेनिंग- यह एक तरह का मौखिक प्रशिक्षण होता है, जिसमें व्यक्ति को अलग-अलग तरह की आवाज निकालने के बारे में और उन आवाजों से वाक्य, शब्द बनाना सिखाया जाता है। इसके अलावा व्यक्ति अपनी आवाज और टोन को कैसे कंट्रोल कर सकता है इस बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाता है। बधिर लोगों के लिए स्पीच ट्रेनिंग (Speech training) बहुत कारगर मानी जाती है।
असिस्टिव डिवाइस- कुछ सहयोगी यंत्र यानी मशीनों की मदद से बधिर लोग (Deaf people) बाहरी आवाज को सुन और समझ पाते हैं और उनके लिए बोलना सीखना आसान हो जाता है। श्रवण यंत्र और ऑपरेशन के जरिए कॉकलियर इंप्लांट किया जाता है, जिसकी मदद से बधिर लोग आवाज सुन पाते हैं और बोलना सीखना उनके लिए आसान हो जाता है।
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लिप रीडिंग- बधिर लोग इस तकनीके जरिए दूसरों से संवाद करते हैं। इसमें वह सामने वाले के होंठों, जीभ और चेहरे के हावभाव को देखकर वह क्या बोल रहा है इस बात का अनुमान लगाते हैं। बधिर लोगों के लिए तकनीक (Techniques for Deaf people) बहुत ही कारगर होती है। लिप रीडिंग सीखने के लिए बधिर व्यक्ति क्लासेस जॉइन कर सकता है और धीरे-धीरे प्रैक्टिस करने पर उसके लिए लिप रीड करना आसान हो जाता है, लेकिन इसके लिए बहुत धैर्य की जरूरत होती है, क्योंकि इस स्किल को सीखने में थोड़ा समय लगता है।