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Microbiome Testing at Home: होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग कैसे की जाती है, जानिए अधिक जानकारी!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/03/2022

    Microbiome Testing at Home: होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग कैसे की जाती है, जानिए अधिक जानकारी!

    हमारा स्वास्थ्य कैसा होगा, यह काफी हद तक हमारे पाचन तंत्र पर निर्भर करता है। हम जो भी खाना खाते हैं, वह पाचन तंत्र के माध्यम से शरीर में एनर्जी यानी कि ऊर्जा पैदा करने का काम करता है। हमारे शरीर में इंटेस्टाइन या आंत अहम भूमिका निभाती है। यहां पर फूड का डायजेशन होता है। पाचन तंत्र में बैक्टीरिया भी अहम भूमिका निभाने का काम करते हैं। शरीर में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। कुछ लक्षण जैसे कि खाना ना पचने की समस्या, पेट में दर्द, स्किन संबंधी समस्या होना, यह सभी चीजें गट इंबैलेंस की ओर इशारा करते हैं। ऐसे में माइक्रोबायोम टेस्टिंग बहुत जरूरी हो जाती है। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिरकार माइक्रोबायोम टेस्टिंग क्या होती है? माइक्रोबायोम टेस्टिंग के माध्यम से गट में वायरस या बैक्टीरिया के बारे में जानकारी मिलती है। आइए जानते हैं होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home) क्या सही रिजल्ट देती है और इसे कैसे किया जा सकता है।

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    होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home)

    होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग

    गट माइक्रोब्स में इम्बैलेंस के कारण स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। इस कारण से इंटेस्टाइन या आंतों में समस्या पैदा हो सकती है, जिसके कारण सूजन, स्टूल में चेंज और हार्टबर्न आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गट माइक्रोबायोम इम्बैलेंस के कुछ प्रभाव जैसे कि मूड स्विंग या मेंटल हेल्थ संबंधी समस्या जैसे कि डिप्रेशन की समस्या, मोटापा, एंग्जायटी, स्किन डिसऑर्डर जैसे कि एक्जिमा, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज, सूजन की समस्या, डायबिटीज, कैंसर, लिवर डिजीज, मुंह संबंधित समस्याएं जैसे कि दांतों में सड़न होना आदि का सामना करना पड़ता है।

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    अगर आपको इस बात का एहसास हो रहा है कि आपको गट इम्बैलेंस की समस्या के कारण पूरी हेल्थ पर प्रभाव पड़ रहा है, तो ऐसे में माइक्रोबायोम टेस्टिंग बहुत जरूरी हो जाती है। आपको डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए। माइक्रोबायोम टेस्ट डॉक्टर के यहां पर जाकर आप करवा सकते हैं। इस दौरान डॉक्टर स्टूल सैंपल लेते हैं और उसकी जांच करते हैं, जबकि घर में टेस्ट करने के लिए किट का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस टेस्ट का मतलब जी आई सिस्टम (GI system) में माइक्रोब्स के बारे में जानकारी प्राप्त करना होती है। स्टूल टेस्ट के दौरान ऑटोइम्यून डिजीज जैसे कि आईबीडी (IBD) और  के बारे में भी जानकारी मिल जाती है।

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    होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग और बाहर से टेस्टिंग कराने में क्या है फर्क?

    होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग के माध्यम से मिलने वाली जानकारी सीमित है। यानी कि अगर आपको अधिक जानकारी चाहिए, तो आपको डॉक्टर के यहां पर जाकर टेस्टिंग करानी चाहिए। होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home) के दौरान आपको ऑनलाइन टेस्टिंग किट मंगानी पड़ती है। फिर सैंपल को टेस्ट किट को लैब या फिर प्रयोगशाला में भेजना होता है। रिजल्ट के माध्यम से माइक्रोब्स के टाइप्स के बारे में जानकारी मिलती है।

    घर में किया जाने वाला परिक्षण जानकारी मात्र के लिए होता है। ऐसा जरूरी नहीं है कि उससे आपको सभी जानकारी मिल जाए। इस तरह से टेस्ट को सेल्फ डायग्नोज के लिए या फिर ट्रीटमेंट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जब डॉक्टर के पास जांच के लिए जाया जाता है, तो डॉक्टर बीमारी को डायग्नोज करने के साथ रही शारीरिक परिक्षण भी करते हैं। अगर आप होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home) करते हैं, तो रिजल्ट आने के बाद आप ये तय कर सकते हैं कि आपको किस डॉक्टर से जांच करानी है या फिर किस तरह की सावधानी रखनी है।

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    होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग क्या आखिरी विकल्प होता है?

    जब आप घर पर टेस्टिंग करते हैं, तो आपको कई चीजों के बारे में जानकारी मिल जाती है। कुछ जानकारी जैसे कि संक्रमण या फिर गैस्ट्रिक संबंधित समस्याओं के बारे में पता चल जाता है। उसके बाद आप डॉक्टर से सुझाव लेने के बाद स्टूल टेस्ट के बारे में भी कह सकते हैं। इससे आपको गट फ्लोरा के बारे में अधिक जानकारी मिल जाती है। कुछ डॉक्टर आपको माइक्रोबायोम टेस्ट करने के लिए किट की हेल्प लेने की सलाह दें सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आप आराम से घर पर टेस्ट कर सकते हैं, जिसका रिजल्ट कुछ हफ्तों में आपको मिल जाता है। यह टेस्ट रिजल्ट आपको डिजिटल रूप में प्राप्त होता है। कुछ कंपनियां होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग ऑफर करते हैं। आपको इस बारे में डॉक्टर को जानकारी देनी चाहिए और उसके बाद ही इस तरह का टेस्ट करना चाहिए। अगर आप किसी बीमारी के बारे में जानना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप घर पर टेस्ट ना करके डॉक्टर को तुरंत दिखाएं।

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    फूड सेंसिटिविटी टेस्ट कर सकता है पेट की समस्याओं को कम!

    आपको फूड सेंसिटिविटी टेस्ट (Food sensitivity tests) के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिए चुंकि यह गट इम्बैलेंस से जुड़ा हुआ है। अगर आपको फूड सेंसिटिविटी पर संदेह है, तो ऐसे में उस फूड्स पर ध्यान देना है, जिनका सेवन आप कर रहे हैं। एक बात का ध्यान रखें कि आप जो भी खा रहे हैं, वो उस पर ध्यान दें कि कहीं उसके सेवन से आपको शरीर में विभिन्न प्रकार के लक्षण तो दिखाई नहीं दे रहे हैं। अगर आपको कुछ खाद्य पदार्थ खाने के बाद विभिन्न प्रकार के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो ऐसे में आप फूड सेंसिटिविटी टेस्ट को कर सकते हैं। इसके लिए आपको ब्लड सैंपल की मदद से यह टेस्ट करना होगा। टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर आप अपने खानपान में बदलाव कर सकते हैं। साथ ही डॉक्टर से भी इस संबंध में सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर टेस्ट के बाद आपको कुछ खाद्य पदार्थों से दूर रहने की सलाह दे सकते हैं।

    जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home) की मदद से काफी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं। अगर आपको पेट से संबंधित बीमारी का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करना है, तो आप इसमें डॉक्टर की मदद भी ले सकते हैं। डॉक्टर ब्लड टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर सूजन की समस्या और पेट संबंधी समस्या या फिर अन्य क्रॉनिक कंडीशन के बारे में पता लगाते हैं और उसके बाद से ट्रीटमेंट करते हैं। जरूरत पड़े तो डॉक्टर एंडोस्कोपी  के साथ सीटी स्कैन आदि कराने की सलाह दे सकते हैं। जिन लोगों को गंभीर समस्या होती है, उन्हें गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट से मिलने की जा सकती है।

    इस आर्टिकल में हमने आपको होम माइक्रोबायोम टेस्टिंग (Microbiome Testing at Home) से संबंधित जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की ओर से दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

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