सरोगेसी एक तरह की तकनीक है, जिसमें एक महिला और कपल (हसबैंड और वाइफ) के बीच अग्रीमेंट होता है। दरअसल इसमें ऐसी महिलाएं मां बन पाती हैं, जो गर्भ न ठहरने या IVF सक्सेसफुल नहीं होने के कारण बच्चों को जन्म दे पाने में असफल होती हैं। सरोगेसी में पुरूष के स्पर्म (शुक्राणु) को सरोगेट मदर के ओवम (अंडाणु) के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। इसके अलावा सरोगेसी फैक्ट के अनुसार जेस्टेशनल सरोगेसी में माता और पिता दोनों के अंडाणु और शुक्राणु को टेस्ट ट्यूब प्रॉसेस से फर्टिलाइज करवा कर भ्रूण (Embryo) को यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है।
इसमें बच्चे का जैनेटिक संबंध माता-पिता दोनों से होता है। जन्म के बाद बच्चे पर उस महिला का अधिकार नहीं होता है जो गर्भ में शिशु को रखती हैं। सरोगेसी के फैक्ट ये हैं कि इसे ‘किराय की कोख’ भी कहते हैं क्योंकि सरोगेट मदर भ्रूण (शिशु) का विकास अपने गर्भाशय में करती हैं और इसके बदले उन्हें पैसे दिए जाते हैं। सरगेसी से जुड़ी ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो अक्सर लोगों को पता नहीं होकी है। आप इस आर्टिकल के माध्यम से सरोगेसी से जुड़ी कई बातों की जानकारी ले सकते हैं।
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सरोगेसी फैक्ट
सरोगेसी फैक्ट 1. सरोगेसी दो तरह की होती है
सरोगेसी में पुरूष के स्पर्म (शुक्राणु) को सरोगेट मदर के ओवम (अंडाणु) के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। इसके अलावा, जेस्टेशनल सरोगेसी में माता और पिता दोनों के अंडाणु और शुक्राणु को टेस्ट ट्यूब प्रॉसेस से फर्टिलाइज करवा कर भ्रूण (Embryo) को यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है।
सरोगेसी फैक्ट 2. सरोगेसी सिर्फ अमीर लोगों के लिए है
सरोगेसी से शिशु का जन्म के बारे में ज्यादातर सिर्फ धनी लोगों या सेलेब्रिटी के बारे में सुनते हैं। हेल्थकेयर वेबसाइट इएलावीमन आईवीएफआईयूआई सरोगेसी (ElaWoman IVF.IUI Surrogacy) के अनुसार सरोगेसी की प्रॉसेस में 10 लाख से 17 लाख रुपए तक खर्च हो सकते हैं। ये सरोगेसी फी स्ट्रक्चर भारत का है। वैसे सरोगेसी से बेबी डिलिवरी के लिए इंश्योरेंस प्लान जैसे अन्य प्रावधान भी हैं। हाल ही में भारत में सरोगेसी से जुड़े नए नियम भी आ चुके हैं।
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सरोगेसी फैक्ट 3. सरोगेसी से पैदा हुए शिशु के साथ बॉन्डिंग पर पड़ता है असर
कई लोगों और कपल्स को ऐसा लगता है कि गर्भावस्था के दौरान से शिशु के साथ बॉन्डिंग नहीं हो पाती है। ऐसे में सरोगेट मदर के संपर्क में रहें। कपल अपनी आवाज रिकॉर्ड कर या अपना वीडियो रिकॉर्ड कर सरोगेट मदर को दे सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान म्यूजिक सुनना लाभदायक होता है। अगर आप इस तरह के विकल्प नहीं अपना सकते तो शिशु के जन्म के बाद पैरेंट्स की बॉन्डिंग शिशु के साथ बनने लगती है। इसलिए शिशु के साथ बॉन्डिंग को लेकर परेशान न हो।
सरोगेसी फैक्ट 4. भारत और अमेरिका हैं सरोगेसी-फ्रेंडली देश
भारत में सरोगेट मदर की मदद से बेबी प्लानिंग की जाती है और हाल ही में भारत में सरोगेसी के नए नियम भी आ चुके हैं। वहीं विदेशों की बात करें तो यूनाइटेड स्टेटस विश्व में सबसे ज्यादा सरोगेसी-फ्रेंडली देश माना जाता है। सरोगेसी के नए नियम की जानकारी उन लोगों के लिए जरूरी है, जो इस का सहारा लेना चाहते हैं।
सरोगेसी फैक्ट 5. सरोगेट मदर का एक बच्चे की मां होना अनिवार्य
सरोगेट मदर के चयन से पहले कुछ बातों को ध्यान जरूर रखना चाहिए जैसे महिला की उम्र 21 से 40 वर्ष होनी चाहिए, महिला स्मोकिंग या एल्कोहॉल का सेवन नहीं करती हो और उसने पहले शिशु को जन्म दिया हो या उसका खुद का बच्चा हो।
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सरोगेसी फैक्ट के साथ-साथ सरोगेसी से बेबी प्लान करने से पहले कपल को किन-किन बातों का ध्यान रखें?
सरोगेसी फैक्ट के साथ-साथ सरोगेसी से बेबी प्लान करने या चयन से पहले निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। इनमें शामिल हैं।
- सरोगेसी फैक्ट यह है की शिशु का लुक पेरेंट्स के लुक से अलग भी हो सकता है।
- सरोगेसी फैक्ट ये भी है की अगर कपल के ओवम और स्पर्म को फर्टिलाइज करवाकर सरोगेट मदर के यूट्रस में इम्प्लांट किया गया है या इम्प्लांट किया जाता है या फिर कोई और विकल्प अपनाया गया है।
- ब्रेस्टफीडिंग या फीडिंग की प्लानिंग करें। क्योंकि डिलिवरी के बाद नवजात आपके पास रहेगा। इसलिए फीडिंग से जुड़ी जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह लें। दरअसल जिस तरह से आप बेबी प्लानिंग या प्रेग्नेंसी प्लानिंग की योजना बना रहे हैं ठीक वैसे ही मिल्क फीडिंग के बारे में भी प्लानिंग करें।
- कपल अपना स्वभाव नैचुरल रखें। बच्चे के जन्म के बाद भी अपना स्वभाव अच्छा बनाये रखें।
- सरोगेसी प्लानिंग के साथ ही यह भी निर्णय लेना भी जरूरी होता है कि आपका स्वभाव सरोगेट मदर के साथ कैसा रहना चाहिए। उनके साथ कपल को बैलेंस्ड स्वभाव को बनाए रखना जरूरी होता है।
अगर आप सरोगेसी फैक्ट या सरोगेसी से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।
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सरोगेसी के नए नियम: एक अहम सरोगेसी फैक्ट
सरोगेसी यानी किराए की कोख। इसकी मदद से कपल जो बच्चे की चाहत रखने के बाद भी बेबी प्लानिंग नहीं कर पाते हैं उनके लिए बेहतर विकल्प माना जाता है। वैसे सरोगेसी की जरूरत तब ज्यादा पड़ जाती है जब महिला गर्भधारण करने में असमर्थ हो जाती है। कई उपाय जैसे IUI या IVF जैसी तकनीक से भी कुछ महिलाएं गर्भधारण में सफल नहीं हो पाती हैं, उनके लिए यह बेहतर विकल्प माना जाता है।
हालांकि इस विकल्प को अपनाने से पहले अब भारत में इसके नियम में बदलाव किये गए हैं। अब नय कानून को समझकर ही भारतीय कपल सरोगेट मदर की सहायता ले सकते हैं। यही नहीं कपल के अलावा सिगल व्यक्ति, सिंगल पेरेंट बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति को भी इस विकल्प कोअपनाना चाहते हैं, तो अब ये उनके लिए भी मुश्किल हो चुका है। वहीं होमोसेक्शुअल कपल, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति और सिंगल व्यक्ति भी सरोगेसी की मदद से पेरेंट या सिंगल पेरेंट बनने में असमर्थ रह सकते हैं।
जिन दंपति के शादी को पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं और ऐसे कपल को किसी मेडिकल कारण से बेबी प्लानिंग नहीं कर पा रहें हैं सिर्फ वही अब सरोगेट मदर की सहायता ले सकते हैं। हालांकि सरकार के इस नय कानून को कुछ लोग आलोचना कर रहे हैं, तो वहीं कई लोग इसे सरोगेसी और एडॉप्शन के हो रहे दुरूपयोग को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं।अगर आप सरोगेट मदर की मदद से अपने परिवार को आगे बढ़ाना चाह रहें हैं, तो इस बारे में अच्छी तरह समझें। बेहतर होगा कि आप ऐसे हॉस्पिटल में जानकारी लें, जहां सरोगेसी की सुविधा दी जाती हो। उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है।
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