सरोगेसी प्रॉसेस उन महिलाओं के लिए वरदान है जो नैचुरल तरीकों से मां नहीं बन पाती। ऐसे में वे सरोगेट मदर की हेल्प लेती हैं। सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) समझ पाना मुश्किल काम है। बच्चे को नौ महीने तक पेट में रखने के बाद किसी दूसरे को बच्चा सौंपना सेरोगेट मां के लिए कठिन भी हो सकता है। सरोगेसी के पहले कुछ नियम के तहत सरोगेट मां को कानूनी तौर रजामंद होना पड़ता है। साथ ही सरोगेट मां का साइकोलॉजिकल टेस्ट भी लिया जाता है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि सरोगेट मां की फीलिंग क्या होती हैं और किस तरह से वो अपनी मानसिक सेहत का ख्याल रखती है।
जब घर में ही चुनी जाती है सरोगेट मदर
नैचुरली कंसीव न कर पाने वाले कपल्स के लिए सरोगेसी एकमात्र सहारा होती है। कपल्स या तो हेल्थ सेंटर से या फिर अपने परिवार से ही किसी महिला को सरोगेसी के लिए राजी कर सकते हैं। सरोगेट मदर का चुनाव हो जाने के बाद मेडिकल प्रॉसेस से सरोगेट मदर कंसीव करती है। ऐसे में बायोलॉजिकल कपल और सरोगेट मां एक ही घर में रहते हैं। इस तरह की सरोगेसी में बायोलॉजिकल मां और सरोगेट मदर का होने वाले बच्चे से लगातार संपर्क रहता है। बॉयोलॉजिकल मदर अपने सामने ही किसी दूसरी महिला के पेट में पल रहे बच्चे के प्रत्येक पल को महसूस करती है। इस दौरान बच्चे के मूवमेंट से लेकर उससे बातें करना भी शामिल होता है। सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) को समझना जरूरी होता है क्योंकि उसके शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं।
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सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling)
जब सरोगेट मदर बायोलॉजिकल मदर के साथ रहती है तो उसके मन में कई तरह के ख्याल आ सकते हैं। भले ही कानूनी तौर पर बच्चा बायोलॉजिकल कपल का हो, लेकिन सरोगेट मदर बच्चे से अपनापन महसूस कर सकती है। जब सरोगेट मदर के ब्रेस्ट से मिल्क निकलना शुरू हो जाता है तो वह भावानात्मक रूप से जुड़ाव महसूस कर सकती है। जब बच्चा पैदा हो जाता है और वो सरोगेट मदर को मां नहीं बोलता है तो ये भी सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) को हर्ट कर सकता है। इस तरह की फीलिंग आना आम बात है। एक ओर ये बात भी मन को परेशान कर सकती है कि पेट में नौ माह पालने के बावजूद बच्चा सरोगेट मदर को मां नहीं बोलता है। जबकि साथ में भी रहने वाली बायोलॉजिकल मदर से वो अपनापन महसूस करने लगता है।
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जब नहीं होती है जान-पहचान
सरोगेसी के दौरान कई बार ऐसा भी होता है कि बायोलॉजिकल कपल्स को सरोगेट मदर से नहीं मिलने दिया जाता है। बच्चा पैदा होने के बाद डॉक्टर्स सरोगेट मदर को उसका चेहरा नहीं दिखाते हैं। ये ऐसा पल होता है जब सरोगेट मदर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाती। प्रेग्नेंसी से लेकर डिलिवरी के वक्त तक सरोगेट मदर और बायोलॉजिकल पेरेंट्स के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं होती है। डिलिवरी के बाद सरोगेट मदर के मन में बच्चे को लेकर कई बार ख्याल आ सकता है। लेकिन कुछ नियम और मजबूरी के चलते सरोगेट मदर को अपनी भावनाओं के साथ कॉम्प्रोमाइज करना पड़ता है। सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) डिलिवरी के बाद भी खत्म नहीं होती बस उसे अपने फीलिंग को दबाना पड़ता है।
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सेरोगेट मां की फीलिंग
जब सरोगेट मदर को बायोलॉजिकल माता-पिता के बारे में जानकारी नहीं होती है तो उसके मन में बहुत से ख्याल आ सकते हैं। कुछ विचार जैसे, ‘होने वाले मां-बाप कौन है? मेरा बच्चे के साथ नौ महीने तक लगाव बहुत बढ़ गया है। पैदा होने के बाद मुझे मिलने नहीं दिया जाएगा। भविष्य में भी मुझे बच्चे से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी जाएगी। ये सब बातें सरोगेट मदर के मन में आ सकती हैं। हालांकि सरोगेसी में भाग लेने वाली महिला को रुपए दिए जाते हैं। भावनात्मक लगाव पैसों से बढ़कर होता है। इस तरह का एहसास मां बनने वाली किसी भी औरत में आ सकता है। सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) को पैसों से ना तौले। उनके अंदर भी मां जैसी फीलिंग होती है।
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एग डोनर की साइकोलॉजिकल स्क्रीनिंग क्यों की जाती है?
एग डोनर की साइकोलॉजिकल स्क्रीनिंग उसके जीवन के पहले की किसी खास घटना को जानने के लिए की जाती है। साथ ही मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल आगे की परिस्थितियों से निपटने के लिए सरोगेट मां से बातचीत करते हैं। सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) को जानने के लिए एक्सपर्ट उनसे कई सवाल कर सकते हैं। सरोगेट मदर की शारीरिक जांच भी की जाती है। जिस तरह से फिजिकल हेल्थ चेकअप जरूरी है, ठीक उसी प्रकार से मेंटल हेल्थ चेकअप भी जरूरी है। सरोगेट मदर के लिए सपोर्टिव एनवायरमेंट के साथ ही पॉजिटिव एक्सपीरियंस भी जरूरी है। सरोगेट मां की फीलिंग को समझने के लिए कई बार उन्हें डॉक्टर को दिखाना पड़ता है।
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मजबूरी हो सकती है
सरोगेट मदर को पेट में पल रहे बच्चे से लगाव हो जाता है। अपनी मानसिक स्थिति को संतुलन में करने के लिए सरोगेट मदर कई तरह के प्रयास करती है। जब बच्चा पैदा हो जाता है तो न चाहते हुए भी सरोगेट मदर को उसे भुलाना पड़ता है। कई बार हालात ज्यादा बुरे नहीं होते हैं। हो सकता है कि सरोगेट मां बच्चा पैदा होने के बाद उसके बारे में न पूछें। कम्पनसेशन के लिए सरोगेट मां बनने के लिए तैयार हुई महिला को न चाहते हुए भी अपनी भावनाओं में संतुलित करना पड़ता है। ऐसे में कोई व्यक्ति सरोगेट मां की फीलिंग (Surrogate motherhood feeling) को नहीं समझ सकता है।
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सेरोगेट मां की फीलिंग एक मां जैसी ही होती है। भले ही बच्चा बायोलॉजिकल किसी और का हो, लेकिन नौ महीने तक पेट में पालने के बाद बच्चे के लिए मां का प्यार उमड़ सकता है। ये बात किसी भी कपल्स के लिए परेशान होने वाला मुद्दा नहीं है।
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