परिचय
बवासीर को पाइल्स या हेमोरॉयड्स भी कहा जाता है। पाइल्स होने पर मलाशय और गुदा की नसों में सूजन आ जाती है। यह दो तरह की होती है-बाहरी पाइल्स (External piles) और अंदरूनी पाइल्स (Internal piles)। आयुर्वेद में पाइल्स को अर्श ARSHA कहा जाता है। आयुर्वेद में भोजन सामग्री को उचित गति और समय के साथ पचाने में असमर्थता को बवासीर की वजह माना गया है। यह एक तरह का पाचन विकार है।
अगर आप सोच रहे हैं कि बवासीर को जड़ से खत्म कैसे करें? तो इसके लिए आयुर्वेदिक इलाज प्रभावी माना जाता है। आइए जानते हैं बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for piles) क्या है, आयुर्वेद के अनुसार बवासीर हो जाए तो क्या करना चाहिए।
आयुर्वेद में बवासीर (Piles) क्या है?
आयुर्वेद में पाइल्स को “श्रीवत् प्राण श्रींति हीनस्ति इति अर्श’ के रूप में परिभाषित किया गया है। मतलब यह एक ऐसी बीमारी है जो रोगी की महत्वपूर्ण शक्ति (प्राण) को प्रभावित करता है।
अनुचित आहार और खराब जीवन शैली की आदतों से शरीर की डाइजेस्टिव फायर (अग्नि) कम होने लगती है। इसका मतलब है कि भोजन सामग्री समय के साथ पचने में असमर्थ हो जाती है जिसके कारण स्टूल के अंदर आधी पची हुई खाद्य सामग्री (अमा यानी विषाक्त पदार्थ) का संचय या ठहराव हो जाता है। जो एनोरेक्टल क्षेत्र में दोष को विकृत करता है।
अर्श (बवासीर) एक ऐसी स्थिति है जिसमें एनस में द्रव्यमान (नसों के वैरिकोसेटी के कारण) सा दिखाई देता है। बवासीर को आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, अर्श को दो समूहों में बांटा जा सकता है। शुष्कर्ष (Dried Piles) और श्रावी अर्श (Exudating piles)। इस आर्टिकल में बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज (Ayurvedic treatment for piles) और बवासीर से जुड़े कई अन्य बातों को समझेंगे।
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प्रकार
बवासीर के प्रकार (Types of Piles)
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज समझने से पहले इसके टाइप को समझने की कोशिश करते हैं। बवासीर दो प्रकार की होती है। जिसमें से एक गंभीर होता है, तो दूसरा अपने आप ठीक होने वाला।
बादी बवासीर और खूनी बवासीर
बादी बवासीर एक ऐसी समस्या है, जो सबसे अधिक मामलों में देखी जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति के पेट में खराबी आने लगती है। इसका मुख्य कारण कब्ज और गैस को माना जाता है। इसके कारण होने वाले मस्सों के जरिए रक्तस्राव नहीं हो पाता है।
इसके अलावा खूनी बवासीर (Piels) एक गंभीर स्थिति होती है, जिसमें मल त्याग करते समय खून आता है। इस स्थिति में गुदा के अंदर मस्से हो जाते हैं, जो मल त्याग करते समय खून की पिचकारी छोड़ते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को तुरंत चिकित्सीय इलाज करवाने की जरूरत होती है।
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लक्षण
आयुर्वेद के अनुसार बवासीर के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Piles)
गुदा में मांसल सूजन (मनसंकुरा) की उपस्थिति, गैस पास करने में परेशानी, विशेष रूप से शौच के समय दर्द, कम भूख और कब्ज (Constipation), अर्श के सामान्य लक्षण हैं। इसके अतिरिक्त, शुष्कर (सूखी बवासीर) और श्रावी अर्श के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं।
शुष्कर्षा (Shushkarsha) : इस तरह के बवासीर में आमतौर पर खून नहीं निकलता है, उसे शुष्कर्षा के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार के पाइल्स में वायु और कफ की अधिकता होती है।
श्रवी अर्श (Raktarsha) : श्रावी अर्श पित्त है जो पित्त और रक्त की अधिकता के कारण होता है। इस स्थिति में रोगी में स्टूल के साथ अचानक लाल रक्त का प्रवाह होता है। कभी-कभी यह एनीमिया (Anemia) जैसी जटिलताओं का कारण बन सकता है।
ये हैं पाईल्स के लक्षण, जिन्हें समझना बेहद जरूरी है। क्योंकि लक्षणों को समझकर ही बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज जल्द से जल्द किया जा सकता है।
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कारण
बवासीर के कारण क्या हैं? (Cause of Piles)
निचले मलाशय में बढ़ते दबाव के कारण पाइल्स होता है। एनस और रेक्टम में मौजूद रक्त वाहिकाओं में दबाव की वजह से पैदा हुआ खिंचाव बवासीर का कारण बन सकती हैं। इसकी वजह हो सकती है:
- पुराना कब्ज (Chronic constipation)
- क्रोनिक डायरिया (Chronic Diarrhea)
- भारी वजन उठाना
- गर्भावस्था (Pregnancy)
- स्टूल पास करते समय दर्द होना
पाइल्स की वजह जेनेटिक भी हो सकती है और उम्र के साथ बढ़ जाती है।
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आयुर्वेदिक इलाज
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज क्या है? (Ayurvedic treatment for piles)
बवासीर का आयुर्वेदिक उपचार कई तरीकों से किया जाता है। जैसे-
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज : थेरिपी
अभ्यंग
बवासीर के आयुर्वेदिक इलाज में इस आयुर्वेदिक थेरेपी के अंतर्गत औषधीय तेल से शरीर का उपचार किया जाता है। इसमें बवासीर का कारण बने वात को बैलेंस किया जाता है।
सिट्ज बाथ
सिट्ज बाथ से बवासीर के लक्षण जैसे-दर्द, खुजली और अन्य गुदा से संबंधित लक्षणों में राहत मिलती है। ये गुदा और जननांग के हिस्से को साफ करता है और आराम देता है और इस हिस्से में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है। इस आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट में 10 से 20 मिनट का समय लगता है।
बस्ती
इस आयुर्वेदिक थेरिपी में हर्बल सस्पेंशन को एनस के जरिए डाला जाता है। यह आयुर्वेदिक थेरिपी बवासीर के इलाज में बेहद प्रभावी है। बवासीर का यह आयुर्वेदिक उपचार हर उम्र के व्यक्ति के लिए सेफ है।
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बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज : जड़ी बूटी
हरीद्रा
हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल, एन्थेलमिंटिक (Anthelmintic), घाव को भरने वाले गुण होते हैं। बवासीर के आयुर्वेदिक इलाज के रूप में हल्दी को काढ़े या दूध में मिलाकर ले सकते हैं।
बिल्व चूर्ण
बेल फल के गुदे का सूखा चूर्ण 1 से 2 ग्राम और सूखी अदरक एक ग्राम को 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार लेना चाहिए।
हरीतकी
पाचन तंत्र के विकारों के आयुर्वेदिक उपचार में हरीतकी का इस्तेमाल किया जाता है। कब्ज और दस्त के इलाज में डाइजेशन में सुधार करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। खूनी और ब्लीडिंग फ्री पाइल्स के इलाज में भी मदद करती है।
अनार का जूस
अनार का ताजा रस 14 मिलीलीटर, 5 से 10 ग्राम शुगर के साथ दिन में दो बार लिया जाना चाहिए। इससे बवासीर में लाभ मिलती है।
मंजिष्ठा
आयुर्वेदिक हर्ब मंजिष्ठा ब्लड प्यूरीफाई करता है। पेचिश, बवासीर और दस्त के आयुर्वेदिक इलाज में मंजिष्ठा का सेवन किया जाता है।
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पाइल्स का आयुर्वेदिक इलाज : दवा (Ayurvedic medicine for piles)
नित्योदिता रस
250 मिलीग्राम नित्योदिता रस को पांच से दस ग्राम घी के साथ दिन में दो बार लिया जाना चाहिए। पुरानी बवासीर का इलाज करने के लिए इसका सेवन किया जाता है। यह बवासीर का अचूक इलाज है।
अर्शकुटार रस
एक से दो गोली, 50 मिली पानी के साथ दिन में दो बार लिया जाना चाहिए। यह बवासीर की आयुर्वेदिक दवा बेहद प्रभावी है।
त्रिफला गुग्गल टैबलेट
आंवला, पिप्पली, हरीतकी, विभीतकी और गुग्गल जैसी हर्ब्स से मिलकर बनी यह टैबलेट पाचन तंत्र को बेहतर करती है। त्रिफला खूनी बवासीर की बेहतरीन आयुर्वेदिक दवा है।
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बवासीर की आयुर्वेदिक दवा के नुकसान क्या हैं? (Side effects of Piles ayurvedic medicine)
वैसे तो ज्यादातर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और दवाओं का कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। फिर भी व्यक्ति को हमेशा डॉक्टर के परामर्श से ही आयुर्वेदिक दवाओं और हर्बल प्रोडक्ट्स (Herbal products) का सेवन किया जाना चाहिए। किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह एवं निर्देशन पर ही दवा, हर्बल और उपचार कराना चाहिए।
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जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज के दौरान जीवनशैली में बदलाव
क्या करें?
- गेहूं, जौ, कुलथी, हरे चने आदि को अपने आहार में शामिल करें।
- हरी सब्जियां जैसे-करेले, लौकी, पालक का ज्यादा इस्तेमाल करें ।
- फलों में ककड़ी, पपीता, सेब, अंगूर और आम खाएं।
- नियमित व्यायाम करें।
क्या न करें?
- डायट में छोले और काले चने सीमित करें।
- लगातार बैठने से परहेज करें।
- मसाले और अचार न खाएं।
- एक बार में अधिक खाना ना खाएं और खाने के बीच में पर्याप्त गैप रखें।
- दिन में सोने से बचें।
बवासीर के लिए योगासन
- वज्रासन (वज्र मुद्रा)
- बालासना (बाल मुद्रा)
- शीर्षासना (Sirsasana)
- पवनमुक्तासन (Pavanamuktasana)
- अश्विनी मुद्रा आदि।
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घरेलू उपाय
बवासीर के घरेलू उपाय (Home remedies for piles)
- रात को सौ ग्राम किशमिश पानी में भिगो दें। सुबह उठकर पानी में ही किशमिश मसल डालें और रोज इस पानी का सेवन करें। बवासीर रोग में यह बेहद फायदेमंद घरेलू रेमेडी है
- रोजाना पर्याप्त पानी (Water) और दूसरे लिक्विड लें।
- हॉट वॉटर बाथ लेने से पाइल्स (Piels) में राहत मिलती है। इससे सूजन और खुजली कम हो जाती है।
- नारियल का तेल (Coconut oil) प्रभावित हिस्से पर लगाने से पाइल्स में होने वाली सूजन और खुजली कम हो जाती है।
- फाइबर (Fiber) से भरपूर खाना खाएं।
बवासीर एक ऐसी समस्या है, जो काफी कष्टकारी हो सकती है। इसलिए, पाइल्स के कारण को समझकर समय रहते उसका इलाज कराएं। इसके साथ ही एक स्वस्थ जीवनशैली और हेल्दी डायट (Healthy diet) अपनाकर पाइल्स से बचाव किया जा सकता है। आप चाहें तो इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता है।
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