श्रुति कहती हैं “हर कोई एक विचार का नहीं हो सकता है। मान लीजिए, सास-ससुर भगवान में एक अटूट विश्वास (Believe) रखते हैं लेकिन, बहू भगवान को सच नहीं मानती, जिसके लिए वे एक-दूसरे पर अपने विचार का दबाव भी नहीं डाल सकते हैं। अगर ऐसी स्थिति आ जाए, तो बहू को समझदारी से काम लेना चाहिए। जरूरी नहीं की बहू हर दिन घर में पूजा-पाठ से जुड़ा काम करे या उसमें शामिल हो। लेकिन, जब घर में पूजा-पाठ से जुड़ा कोई बड़ा कार्यक्रम हो रहा हो, तो उसमें बहू को भी साथ देना चाहिए। बाकी घरवालों की तरह उसे भी उस पूजा का हिस्सा बनना चाहिए। इससे सास-ससुर को भी अच्छा लगेगा और आप दोनों के विचार कैसे हैं, इसके बारे में दूसरों को भनक भी नहीं लगेगी।”
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क्या पति बीवी के पल्लू से बंधकर रहते हैं या वो सिर्फ अपनी मां की ही बात मानते हैं?
यह एक ऐसा सवाल है, जो हर सास और बहू (Daughter in law) अपने बेटे (Son) और पति के लिए तंज कसती रहती हैं। यह कितना सच है, इसके बारे में कहना मुश्किल है। श्रुति कहती हैं “ऐसा तभी हो सकता है, जब पति पत्नी या मां की हर छोटी-छोटी परेशानियों या बहस के बारे में एक-दूसरे पर आरोप लगाएं। अगर पति अपनी पत्नी (Wife) की परेशानी के लिए मां को दोष दे, तो सास को लग सकता है कि उसका बेटा बहू के पल्लू से बंध चुका है। लेकिन, वहीं जब पति मां के बारे में पत्नी से बहस करे, तो पत्नी को भी लग सकता है कि उसका पति सिर्फ सास की ही सुनता है। इसलिए, पतियों को ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें दोनों की परेशानियों को सुनना और समझना चाहिए। फिर आपस में उस पर सुलह करने के रास्ते निकालने चाहिए।”
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