आप दुनिया के किसी भी कोने में रहते हो आपके कानों तक दिल्ली (Delhi) की पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ( Public Health Emergency) की खबर पहुंच ही गई होगी। दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) को स्मॉग (Smog) की मोटी परत ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है और यह बात अब यहीं तक सीमित नहीं है। दिल्ली- एनसीआर (Delhi-NCR) में रहने वालों को आंखों में जलन, गले में खराश और घुटन महसूस होने लगी है। वायु प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर पिछले तीन साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है, साथ ही यह गंभीर स्थिति में है। हेल्थ इमरजेंसी दिल्ली में पहली बार नहीं है। हर कोई दिल्ली की इस हेल्थ इमरजेंसी को लेकर परेशान है। सेहत खराब होने के साथ-साथ हेल्थ इमरजेंसी की वजह से लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है।
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मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के खतरे
दिल्ली की हेल्थ इमरजेंसी का कारण वायु प्रदूषण है। वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है। इसके कारण दिल और दिमाग से लेकर सांस की बीमारी के होने का खतरा रहता है। एयर पॉल्यूशन का गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। दूषित हवा के कणों में मौजूद टॉक्सिक पदार्थ के कारण कई बड़ी परेशानियों का कारण माना जाता है। सांस संबंधित परेशानियों और हृदय को प्रभावित करने वाले वायु प्रदूषक मानसिक स्वास्थ्य को भी खराब कर सकते हैं। हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने के पीछे सरकार का कारण यह है कि लोग अपने स्वास्थ को लेकर ज्यादा सावधान रहें।
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दमघोटु हवा का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
हेल्थ इमरजेंसी लागू करने के पीछे दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण था जिसकी वजह से लोगों को अलग-अलग तरह की स्वास्थ संबंधित परेशानियां हो सकती है। वायु प्रदूषण का लगातर बढ़ता स्तर बच्चों के दिमाग के विकास को प्रभावित कर रहा है। विशेषज्ञों ने एयर पॉल्यूशन को लोगं में हो रही मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बिगड़ने का कारण बताया है। ताजा शोध के अनुसार, यह शारीरिक विकास से कई गुना ज्यादा मानसिक विकास को प्रभावित कर रहा है।
वॉल्टर्स क्लूवर द्वारा लिपिपकॉट पोर्टफोलियो में प्रकाशित एक पत्रिका के अनुसार, किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य में हवा के कणों से होने वाले नुकसान की अधिक आशंका है। शोधकर्ताओं के अनुसार, जैसे जैसे वायू प्रदूषण का स्तर बढ़ा, उसी के साथ डिप्रेशन की चपेट में आने वाले लोगों और खुदकुशी करने वाले लोगों की तादाद में भी उछाल देखने को मिला है। प्रदूषित हवा में मौजूद ये कण नाक से होते हुए हमारे दिमाग तक पहुंच सकते हैं। ये टेंशन वाले हॉर्मोन को बढ़ाने के साथ दिमाग में सूजन, नर्व सेल्स को नुकसान आदि का कारण बन सकता है। ग्लोबल डेटा के अनुसार, जो लोग ज्यादा प्रदूषित हवा वाली जगहों पर रहते हैं उनके डिप्रेशन में होने के और खुदकुशी करने की संभावना अधिक होती है। शोधकर्ताओं की मानें तो, वायु प्रदूषण को कम कर लाखों लोगों को डिप्रेशन में जाने से बचाया जा सकता है।
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क्या है स्टडी
इस अध्ययन के दौरान 144 किशोरों को एक सोशल स्ट्रेस टेस्ट दिया गया, जिसमें पांच मिनट का भाषण और एक गणित टेस्ट शामिल था। किशोरों की हृदय गति और अन्य शारीरिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के बाद यह पाया गया कि तनाव के लिए एक हाई ऑटोनॉमिक रेस्पांस के साथ किशोरों में उनके घर के पास पीएम का स्तर 2.5 तक बढ़ गया था।
हालांकि इस स्टडी में प्रदूषित हवा और अधिक तनाव के बीच किसी तरह का कोई कनेक्शन नहीं बताया गया है। लेकिन यह आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जहरीली हवा न्यूरोडेवलपमेंट और कॉग्नेटिव डेवलेपमेंट को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
दिल्ली में लागू कि गई हेल्थ इमरजेंसी के पीछे का एक और सच यह है कि प्रदूषण सीधे मानसिक स्वास्थ से जुड़ा हुआ है।
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वायु प्रदूषण हमें स्ट्रैस में डाल रहा
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने कौन सा न्यूज चैनल लगा रहे या कौन सा अखबार आप पढ़ने के लिए उठाते हैं, वे सारे ही इस वक्त वायु प्रदूषण के घातक स्तरों के प्रभाव से भरे हुए हैं। इसके अलावा, डॉक्टरों ने सलाह दी है कि जब तक बहुत ज्यादा जरूरत न हो, घर से बाहर जाने से बचें। दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी लागू करने के बाद लोगों को घर से ज्यादा बाहर निकलने के लिए मना किया गया है।
लोगों को बाहर काम करना बंद करने और एक्सरसाइज से बचने के लिए भी कहा गया है, जो सांस की बीमारियों का कारण हो सकता है। सर्दियों के छोटे दिन, धुंए से भरा आसमान और हर जगह दमघोटू हवा की उपस्थिति किसी को भी तनाव में डालने और मूड खराब करने का कारण बन सकती है। दिल्ली में लागू हेल्थ इमरजेंसी के बाद खुली हवा में एक्सरसाइज करने के लिए भी मना किया गया जिससे लोग कम से कम हवा को महसूस करें। वायु प्रदूषण जहां स्ट्रेैस बढ़ा रहा वहीं हमारे आसपास का मीडिया इस पर अधिक फोकस कर रहा जिससे लोगों के दिमाग में केवल प्रदूषण और हेल्थ इमरजेंसी घूम रहा।
क्या वायु प्रदूषण आपको डिप्रेशन में डाल सकता है
2018 में प्रकाशित चीन के आंकड़ों के लिए ओशनेर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट है। उस डेटा के अनुसार PM2.5 से अधिक बढ़ने से 6.67 प्रतिशत मानसिक बीमारी (अवसाद सहित) होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए प्रदूषित हवा न केवल आपके फेफड़ों का दम घोट रही है, बल्कि यह आपके सोचने के तरीके को भी प्रभावित करती है। वायु प्रदूषण हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, यह निर्धारित करने के लिए गहराई से शोध करने की सख्त जरूरत है। दिल्ली की हेल्थ इमरजेंसी सीधे आपके दिमाग से कैसे जुड़ी है इसके बारे में बताने के लिए यह शोध काफी है कि प्रदूषण का स्तर बढ़ने से मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
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क्या करें, क्या ना करें
अभी के लिए, प्रदूषित हवा और AQI अपडेट्स पर घबराने के बजाय, इस पर ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण है कि क्या किया जाना चाहिए। कारपूलिंग से आप अपनी कार का उपयोग कम करने, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने, अधिक से अधिक पेड़ लगाने के साथ ही कचरा जलाने से बचने की जरूरत है। ऐसा बहुत कुछ है जो व्यक्तिगत स्तर पर किया जा सकता है। आप अपने स्तर पर प्रदूषण को रोकने के लिए बहुत सी चीजें कर सकते हैं। अलग-अलग जगहों पर कचरा फेंकने से बचें और कचरे को जलाने से भी बचें। कोशिश करें कि कम दूरी के लिए कार या दोपहिया वाहन का प्रयोग ना करें और इसके बजाय पैदल चलकर अपना काम निपटाएं। कार पूलिंग के जरिए भी आप वातावरण को स्वच्छ बनाने में योगदान दे सकता हैं। जब लाइट, पंखे या अन्य उपकरण उपयोग में न हो तो उन्हें बंद कर देना चाहिए। उन चीजों को कम से कम खरीदे जिनका उत्पादन के लिए फॉसिल फ्यूल का उपयोग किया जाता हो। एनर्जी सेविंग लाइट और उपकरणों का इस्तेमाल करें। दफ्तर जाने के लिए बस, मेट्रो आदि का इस्तेमाल करें। इसलिए दिल्ली की हेल्थ इमरजेंसी में घबराने से बेहतर है अपनी तरफ से प्रदूषण कम करने की कोशिश कर सकते हैं।
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