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बीएचयू में आंदोलनः सेक्शुअल हैरेसमेंट कैसे बन सकता है मानसिक रोग का कारण

बीएचयू में आंदोलनः सेक्शुअल हैरेसमेंट कैसे बन सकता है मानसिक रोग का कारण

शिक्षा की राजधानी कहे जाने वाले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्राओं ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसके चौबे पर अश्लीलता के आरोपो के सिद्ध होने के बाद भी उन्हें निलंबित नहीं किया गया। इस कारण छात्राओं ने 26 घंटे सिंह द्वार पर बीएचयू में आंदोलन किया। इसके बाद प्रशासन ने उनके निलंबन पर पुनर्विचार का आश्वासन दिया है।

इससे पहले परिषद ने केवल उन्हें प्रशासनिक पदों और टूर पर जाने से रोका था, लेकिन बचे हुए कार्यकाल में वे समान रूप से कक्षाएं ले सकते थे। 

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बीएचयू में आंदोलन का छात्राओं की मानसिक स्थिति पर प्रभाव?

अपने घरों को छोड़कर देश के इन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राएं सुनहरे भविष्य का सपना लेकर आती हैं। ऐसे में इस तरह बीएचयू में आंदोलन की घटनाओं का पढ़ाई के साथ ही उनके मनोबल और विश्वास पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। कुछ छात्राओं से बातचीत करने पर पता चला कि बीएचयू में आंदोलन का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कैंपस में कई बार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बीएचयू में आंदोलन के जरिए सवाल उठते रहे हैं।

बीएचयू में आंदोलन की जांच का आश्वासन हर बार दिया जाता है लेकिन, आखिर तब क्या किया जाए? जब शिक्षक ही इस तरह की घटनाओं में शामिल हो। विश्वविद्यालय में महिलाओं के हॉस्टल के नियम सबसे सख्त हैं। इसके बावजूद भी कई इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं। इन मामलों की वजह से छात्राओं में डर बन जाता है और वे असुरक्षित महसूस करती हैं। 

कई बार इस तरह की घटनाओं ने कुछ छात्राओं को शिक्षा बीच में ही छोड़कर वापस जाने पर भी मजबूर किया है। 

बीएचयू में आंदोलन पर क्या था पूरा मामला?

पिछले वर्ष जूलॉजिकल एक्सकर्शन (Study Tour) पर गई कुछ छात्राओं ने प्रोफेसर एसके चौबे के खिलाफ यौन उत्पीड़न और अश्लील हरकतें करने का आरोप लगाया था। बीएचयू में आंदोलन का यह दल नंदनकानन पार्क गया था। 12 अक्टूबर, 2018 को वापस आने के बाद छात्राओं ने कुलपति को लिखित शिकायत भेजी जिसके बाद कार्यवाही शुरू हुई।

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महिला उत्पीड़न निवारण प्रकोष्ठ और कुलपति की अध्यक्षता में हुआ था फैसला 

बीएचयू में आंदोलन के बाद आरोपों के सत्य साबित होने पर, जून में अंतिम फैसला यही आया कि आगे से प्रोफेसर चौबे किसी भी प्रशासनिक पद का कार्यभार नहीं संभालेंगे और किसी टूर पर भी नहीं जाएंगे। बचे हुए शैक्षणिक काल के लिए उन्हें पढ़ाने की अनुमति मिल गई। छात्राओं को ये फैसला रास नहीं आया। 

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प्रोफेसर को कक्षा में देखकर भड़कीं छात्राएं

बीएचयू में आंदोलन और कार्यपरिषद के फैसले के बाद प्रोफेसर एसके चौबे ने दोबारा कक्षाओं में जाना शुरू किया, जिसके बाद सारा बवाल शुरू हुआ। छात्राओं ने पहले तो कक्षा में प्रोफेसर के होने पर आपत्ति जताई और इसके बाद मामला बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार यानी सिंघ द्वार तक पहुंच गया। सिंह द्वार पर हुआ धरना उग्र तब भी हो गया जब सभी मांगों को सिरे से बर्खास्त कर दिया गया। 

ये छात्राएं यौन उत्पीड़न पर जल्द से जल्द सुनवाई, महिला प्रोफेसर का उचित प्रतिनिधित्व और कार्यस्थल पर सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सख्त नियमों की मांग कर रहीं थीं। 

इन घटनाओं का असर दिमाग पर बहुत गहरा होता है। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग एंड मेडीसिन (NASEM) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, परिवार के साथ समय बिताने से इंसान खुद को सुरक्षित महसूस करता है। परिवार के साथ खेलना, गानें गाना, पढ़ना और बातें करना बहुत जरूरी है। इससे बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है। साथ ही बच्चे के विकास में सकारात्मक बदलाव आते हैं। इसलिए किसी भी बच्चे की परवरिश बेहतर होने से न ही वह सकारात्मक सोच रखता है या रखती है बल्कि अपने आपको मजबूत भी समझती है।

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Current Version

31/08/2020

Suniti Tripathy द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Manjari Khare


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Suniti Tripathy द्वारा लिखित · अपडेटेड 31/08/2020

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