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टीनएजर्स में आत्महत्या के विचार को रोकने के लिए अपनाएं ये टिप्स
- पेरेंट्स और टीचर्स को टीएनजर्स से लगातार खुलकर बातचीत करनी चाहिए। हमें उनको बदलाव को स्वीकार करने की शिक्षा देने और चुनौतियों से पार पाने का तरीका सिखाना चाहिए।
- हमें उन्हें बताना चाहिए कि अगर उन्हें उनके मनपसंद कॉलेज में दाखिला न मिला या उन्हें अपनी उम्मीदों के अनुसार इम्तहान में नंबर नहीं मिले तो भी उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। उन्हें बताइए कि यह उनके लिए दुनिया का अंत नहीं है।
- टीनएजर्स से उनकी पसंद, उनके रूटीन, दिलचस्पी, दोस्तों और पढ़ाई के अलावा खेलकूद और दूसरी गतिविधियों के बारे में बात करना और उन्हें उसी रूप में स्वीकार करना, जिस रूप में वह हैं, वह साधन हैं, जिससे टीनएजर्स को हर हालात में अपने को ढालने में सक्षम बनाया जा सकता है।
- टीनएजर्स को जिंदगी जीने की कला के साथ यह भी सिखाना चाहिए कि अकेलेपन की हालत में वह अपनी सारी बातें किसी करीबी वयस्क व्यक्ति को बता सकते हैं। इससे उन्हें उचित मार्गदर्शन मिलेगा।
- उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई शारीरिक, भावनात्मक, दिमागी और आनुवांशिक बदलाव आते हैं। हालांकि, टीनएजर्स की तर्क करने की शक्ति अभी विकसित हो रही होती है, लेकिन उनके दिमाग के अन्य हिस्से काफी विकसित होते हैं, जो उन्हें काफी तेजी से कोई फैसला करने में सक्षम बनाते हैं। टीनएजर्स के करीबी और विश्वसनीय इन व्यक्तियों में माता-पिता में से कोई एक व्यक्ति, शिक्षक, रिश्तेदार या स्कूल काउंसलर हो सकता है।
- अगर संभव है तो उन चीजों को हटा दें जिनका इस्तेमाल करके आत्महत्या का विचार रखने वाला युवा खुद को चोट पहुंचाने के लिए कर सकता है।
- टीएनजर्स में डिप्रेशन पैदा करने के जोखिम के कारकों में छेड़ना, उनका मजाक बनाना, मादक पदार्थों का सेवन, परिवार से सहारा न मिलना, आत्मसम्मान में कमी, शारीरिक उत्पीड़न, पढ़ाई में खराब प्रदर्शन, आर्थिक चिंताएं, पुरानी बीमारी और जेनेटिक कारक शामिल हैं। इसलिए टीनएजर्स को लचीला और मजबूत बनाकर बनाकर डिप्रेशन और सुसाइड रोकने में मदद मिल सकती है।
- आत्महत्या के विचार रखने वाले युवा या बहुत ज्यादा उदास इंसान खुद की हेल्प करने में सक्षम नहीं होता है। ऐसे में अगर वह डॉक्टर या मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल से सलाह नहीं लेना चाहता है, तो उसे क्राइसिस सेंटर या हेल्प ग्रुप की मदद लेने की सलाह दें।
- डिप्रेशन को रोकने में आखिरी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारक आध्यात्मिकता है। आध्यात्म के प्रति झुकाव होने से टीएनजर्स के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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ये छोटी-छोटी बातें मददगार साबित होंगी
लाइफस्टाइल में कुछ चेंजेस करके टीनएजर्स में आत्महत्या के विचार को कम किया जा सकता है। जैसे-
- युवाओं को एल्कोहॉल और मादक पदार्थों के उपयोग से बचना चाहिए। ये घातक साबित हो सकते हैं क्योंकि ये नशीले पदार्थ सुसाइड टेंडेंसी को बढ़ावा दे सकते हैं।अगर रोजाना संभव न हो पा तो हफ्ते में कम से कम तीन बार तो जरूर व्यायाम करें। फिजिकल एक्टिविटीज को बढ़ाने से दिमाग में अच्छे केमिकल्स रिलीज होते हैं जो आपको खुश रखने में मददगार साबित होते हैं।
- नींद कम लेना टीनएजर्स में आत्महत्या के विचार को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए, युवाओं को कम से कम छह से आठ घंटे की नींद लेना जरूरी है। अगर आप इंसोम्निया या नींद की अन्य बीमारी से जूझ रहे हैं तो डॉक्टर से इस बारे में बात करें।
- यदि मन में आत्महत्या के विचार आते हैं तो इसके बारे में जरूरी है किसी से बात करना। अगर आप किसी अपने से बात नहीं कर सकते हैं तो ऐसे कई संगठन और हेल्प ग्रुप हैं जो आपकी सहायता कर सकते हैं। उनसे बात करें।
आइए, हम सब मिलकर जागरूकता जगाएं। एक लचीले और सद्भावपूर्ण समाज का निर्माण करें और टीएनजर्स को जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करें।