पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को पीसीओएस या पीसीओडी (Polycystic ovary syndrome/Disease) भी कहते हैं। यह सिंड्रोम विशेष रूप से महिलाओं को ही होता है। देखा जाए तो दस में से एक महिला को यह बीमारी होती ही है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम कहे या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, यह रिप्रोडक्टिव हार्मोन (प्रजनन हार्मोन) में अंसतुलन होने के कारण होता है। इस हार्मोन में असंतुलन होने के साथ मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया में समस्या भी होती है,जिसका असर पूरे शरीर के फंक्शन पर पड़ता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम लाइलाज है। इसका इलाज पूरी तरह संभव हैं, बस इसके लिए संतुलित जीवनशैली, संतुलित वजन ,संतुलित पीसीओएस डायट और सही इलाज की जरूरत होती है।
अनहेल्दी लाइफस्टाइल और स्ट्रेसफुल लाइफ के कारण बहुत कम उम्र में ही लड़कियों को पीसीओएस की समस्या हो जाती है, जब उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि आखिर यह बीमारी है क्या!! अगर पीसीओएस (PCOS) का प्रथम चरण में ही इलाज सही तरह से होना शुरू हो जाता है, तो ठीक होने के आसार जल्दी नजर आने लगते हैं। इसके लिए जरूरी है कि पीसीओएस (polycystic ovary syndrome)के लक्षण, कारण, उपचार और पीसीओएस डायट के बारे में सही जानकारी हो।
असल में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के कारण जो हार्मोन में असंतुलन होता है, उसका सीधा असर ओवरी पर पड़ता है, जिसके कारण बांझपन की समस्या हो सकती है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि ओवरी में अंडा बनता है, जिसके कारण हर महीने नियमित रूप से मासिक धर्म चक्र (पीरियड्स) होता है। लेकिन मुश्किल की बात यह है कि पीसीओएस की वजह से ठीक तरह से अंडा बन नहीं पाता है। जिसके कारण ओव्यूलेशन की प्रक्रिया भी ठीक तरह से नहीं हो पाती है। पीसीओएस के कारण मिस्ड पीरियड या अनियमित मासिकधर्म चक्र की समस्या होने लगती है। इस समस्या के कारण दो तरह की परेशानियों का सामना महिलाओं को सामान्य तौर पर करना पड़ता है-
-बांझपन (गर्भधारण करने में समस्या)।
-ओवरी में सिस्ट
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पीसीओएस के कारण (Causes of PCOS)
सच कहे तो पीओएस के सही कारण के बारे में कोई प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जेनेटिक्स के कारण के अलावा कुछ फैक्टर्स और भी हैं, जैसे- शरीर में एंड्रोजन हार्मोन और इंसुलिन का हाई लेवल होना। एंड्रोजन को मेल हार्मोन भी कहते हैं। सामान्य तौर पर महिलाओं के शरीर में कुछ मात्रा में एंड्रोजन हार्मोन होता है, लेकिन जब इसका स्तर हद से ज्यादा हो जाता है, तब पीरियड्स के दौरान ओव्यूलेशन होने में समस्या उत्पन्न होने लगती है। इसके अलावा शरीर में अनचाहे बाल, मुंहासे, एक्ने, रैशेज आदि की समस्या होने लगती है। अब दूसरा फैक्टर है इंसुलिन का हाई लेवल होना।
जो भी आप खाते हैं, उसको एनर्जी में बदलने का काम इंसुलिन हार्मोन करता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस का कंडिशन तब आता है, जब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के लिए सही तरह से प्रतिक्रिया नहीं कर पाती हैं। फलस्वरूप, इंसुलिन ब्लड लेवल नॉर्मल की तुलना में ज्यादा हो जाता है। ज्यादातर समय जिन महिलाओं को पीसीओएस की समस्या होती है, उनको इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या होती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस होने के पीछे कुछ कारण होते हैं, जैसे-उनका वजन बहुत ज्यादा होता है, अनहेल्दी लाइफ स्टाइल होती है, शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं, परिवार में टाइप-2 डायबिटीज किसी को होता है आदि। समय के साथ यही इंसुलिन रेसिस्टेंस की समस्या टाइप-2 डायबिटीज का कारण बन जाती है।
पीसीओएस का मतलब यह नहीं होता है कि आप गर्भवती नहीं हो सकती हैं। हां, यह सच है कि पीसीओएस के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या तो हो सकती है, लेकिन पीसीओएस डायट और मेडिकेशन के द्वारा गर्भधारण करना संभव हो सकता है। डॉक्टर आपको इस समस्या से बाहर आने के लिए कई तरह के सलाह दे सकते हैं। जिन महिलाओं को पीसीओएस की समस्या होती है, उनको यह सारी समस्याएं हो सकती हैं-
–गर्भपात (Miscarriage)- जब गर्भ में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है, तब उस अवस्था को गर्भपात कहते हैं।
–जेस्टेशनल डायबिटीज(Gestational diabetes)- प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज होने पर उस अवस्था को जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है।
-प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia)- प्रेग्नेंसी के दौरान जब ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ जाता है तब उस अवस्था को प्रीक्लेम्पसिया कहते हैं।
–सिजेरियन सेक्शन (C-section)– सिजेरियन डिलिवरी या सी-सेक्शन एक मेजर सर्जरी होता है। जब वजायनल डिलिवरी संभव नहीं होता तब यह सर्जरी की जाती है।
इसके अलावा आपके बच्चे को मैक्रोसोमिया (macrosomia) भी हो सकता है। मैक्रोसोमिया वह कंडिशन है जब जन्म के समय नवजात शिशु का वजन नॉर्मल से बहुत ज्यादा होता है। जिसके कारण शिशु को एनआईसीयू (neonatal intensive care unit)में रहना पड़ सकता है।
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पीसीओएस के लक्षण (Symptoms of PCOS)
वैसे तो पीसीओएस के लक्षण मूल रूप से एंड्रोजन यानि मेल हार्मोन के उच्च स्तर होने के कारण होता है। वजन का बढ़ना इसका मूल कारण होता है, इसके अलावा जो लक्षण आम तौर पर देखे जा सकते हैं, वह हैं-
–हिर्सुटिज्म (hirsutism) की समस्या। चेहरा और शरीर के अन्य हिस्सों में पुरूषों की तरह अनचाहे बाल की समस्या होती है।
-मेल पैटर्न बाल्डनेस की समस्या। इसके कारण पुरूषों की तरह गंजापन हो सकता है या बाल हद से ज्यादा गिरने लगते हैं या पतले हो जाते हैं।
-वजन बढ़ने पर किसी भी उपाय से कम करना मुश्किल हो जाता है।
– गर्दन, कमर या स्तन के नीचे त्वचा का कालापन।
-सबसे बड़ी समस्या पीरियड्स की होती है। अनियमित पीरियड्स या बार-बार पीरियड्स मिस हो जाना आदि।
पीसीओएस के कारण बहुत सारी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है-
– अनिद्रा की समस्या- कई बार सांस लेने में समस्या या अत्यधिक वजन के कारण शरीर में परेशानी महसूस होने की वजह से रात को नींद ठीक तरह से नहीं हो पाती है।
–अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल- पीसीओएस के मरीजों में सामान्य तौर पर एलडीएल यानि बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा एचडीएल यानि गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा से ज्यादा होती है, जिसके कारण दिल की बीमारी या स्ट्रोक होने का खतरा ज्यादा रहता है।
–हाई ब्लड प्रेशर– जिन महिलाओं को पीसीओएस नहीं होता है उनकी तुलना में पीसीओएस के मरीजों में ब्लड प्रेशर ज्यादा होता है।
–डायबिटीज– पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं में 40 साल के पहले डायबिटीज होने का खतरा हो सकता है।
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पीसीओएस का निदान और इलाज (Treatment of PCOS)
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि पीसीओएस का इलाज जितनी जल्दी होगा,उतनी जल्दी इस बीमारी से राहत पाने के आसार बन सकते हैं। इसके लिए डॉक्टर सबसे पहले फिजिकल एग्जाम करेंगे, जिसमें बॉडी मास इंडेक्स (BMI), कमर का साइज, शरीर पर अनचाहे बाल, शरीर के कुछ अंगों में रंग का बदलाव, बालों की समस्या आदि आएंगे। इसके बाद पेल्विक एग्जाम (Pelvic exam) करेंगे, जिसमें यह देखेंगे कि ओवरी में सूजन है या साइज में बड़ा है। ओवरी में सिस्ट आदि है कि नहीं, इसकी जांच करने के लिए डॉक्टर पेल्विक अल्ट्रासाउंड करने की भी सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा ब्लड टेस्ट करने के लिए भी डॉक्टर कह सकते हैं, जिससे यह पता चल सके कि शरीर में एंड्रोजन हार्मोन, थायराइड और कोलेस्ट्रॉल का लेवल कितना है।
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पीसीओएस डायट की भूमिका (PCOD diet)
अब तक के विश्लेषण से आप समझ ही गए हैं कि पीसीओएस के इलाज में डायट की भूमिका कितनी अहम है। पीसीओएस के लक्षणों को नियंत्रित करने और दूसरे बीमारियों की संभावना को कम करने के लिए डायट और एक्सरसाइज का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इसके कारण मरीज के शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो वजन बढ़ने का एक कारण होता है। इसलिए सही मात्रा में और सही आहार का सेवन ही इन परेशानियों से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। सही आहार, क्रियाशील जीवन और संतुलित वजन इन तीनों से ही पीसीओएस के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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पीसीओएस डायट में कार्बोहाइड्रेड, फैट और प्रोटीन की भूमिका
जब वजन कम करने की बात आती है तब लोग सबसे पहले आहार में से कार्बोहाइड्रेड को निकाल देते हैं। लेकिन यह गलत है, शरीर को एनर्जी देने के लिए कार्बोहाइड्रेड जरूरी होता है। जब आप हद से ज्यादा कार्ब्स आहार में लेते हैं, तभी उसका वजन पर प्रभाव पड़ता है। यहां तक कार्बोहाइड्रेड रिच फूड्स से विटामिन्स और मिनरल्स भी शरीर को मिलता है। यहां तक कि हाई फाइबर फूड्स में पौष्टिकताएं भी भरपूर मात्रा में होती हैं। इसलिए डायट में हाई-फाइबर कार्बोहाइड्रेड फूड्स को शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए,(जैसे- बाजरा, ओट्स, हरी सब्जियां, फल, दाल आदि) इससे देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है। इसलिए डायट में से ब्रेड, पास्ता, चावल, चिप्स, कुकीज, स्वीट जूस आदि को निकाल देना चाहिए।
पीसीओएस डायट में पीनट बटर, चिकन, मछली, अंडा जैसे प्रोटीनयुक्त आहार की तुलना में ऑलिव ऑयल, नट्स, एवाकाडो आदि लेना अच्छा होता है। या इसके अलावा आप प्रोटीन या फैट को कार्बोहाइड्रेड के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं । कहने का मतलब यह है कि चावल के साथ बीन्स या थोड़ा एवाकाडो ले सकते हैं। उसी तरह से फैट में मेयोनीज, बटर के जगह पर हेल्दी फैट नट्स, मछली, ऑलिव ऑयल आदि का सेवन कर सकते हैं।
आपके सहुलियत के लिए पीसीओएस डायट को दो भागों में बांट देते हैं-पीसीओएस डायट : पीसीओएस में क्या खाएं और पीसीओएस डायट : पीसीओएस में क्या न खाएं। सबसे पहले बात करते हैं कि पीसीओएस में क्या खाना चाहिए और इसमें कौन-कौन से फूड्स आते हैं-
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पीसीओएस डायट : पीसीओएस में क्या खाएं
एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर आहार
पीसीओएस के कारण सूजन की समस्या दिखाई देती है, इसलिए आहार में एंटीऑक्सिडेंट शामिल होने से सूजन आदि समस्याओं से लड़ने में मदद मिलती है-
फलों में- स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी आदि
अनाज में- ब्राउन राइस, होल ओट्स आदि
सब्जियों में- पालक, केल आदि
अनसैचुरेटेड फैट्स में- जैतून का तेल, एवाकाडो आदि।
फलों का आहार
पीसीओएस डायट में मेडिटेरियन डायट जैसा सेवन करना अच्छा होता है। इससे शरीर को पौष्टिकता और फाइबर बहुतायत मात्रा में मिल जाती है। जैसे- सेब, संतरा, केला, अंगूर, कीवी, तरबूज, आड़ू, बेर आदि।
सब्जियों से भरपूर आहार
जैसा कि आप जानते ही हैं कि सब्जियों में भरपूर मात्रा में फाइबर, हेल्दी कार्ब्स होते हैं, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। जैसे- पालक, केल, गाजर, बैंगन, खीरा, सेम, मशरूम, प्याज, मटर, तुरूई, टमाटर, गोभी आदि।
प्रोटीन युक्त आहार
डायट में प्रोटीन की भी बहुत जरूरत होती है, क्योंकि यह वजन कम करने के साथ-साथ पेट को देर तक भरा रखने में मदद करते हैं। हफ्ते में दो-तीन बार मछली या मांस संतुलित मात्रा में खा सकते हैं, जैसे- मछली में सालमन, झींगा, टूना आदि, कम फैट वाला चिकन और प्लांट बेस्ड प्रोटीन में बीन्स, मटर, टोफू आदि।
कार्बोहाइड्रेड युक्त आहार
जिस आहार में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) होता है, उसके सेवन से वजन का जल्दी घटना, ग्लूकोज कम होना, ट्राइग्लिसेराइड लेवल का गिरना और ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण करना आसान हो जाता है। इसलिए संतुलित मात्रा में कार्ब्स का सेवन अच्छा होता है, जैसे- होल व्हीट ब्रेड, ब्राउन राइस, होल ग्रेन , कॉर्न, शकरकंद आदि।
फैट युक्त आहार
जैसा कि पहले ही कहा गया है कि आहार में हेल्दी फैट वेट लॉस के लिए जरूरी होता है। हेल्दी फैट में आते हैं- एवोकाडो, कैनोला , जैतून का तेल आदि।
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पीसीओएस डायट : पीसीओएस में क्या न खाएं
रिफाइन्ड कार्ब्स से परहेज
इस तरह के कार्ब्स को कम करने से पीरियड्स की समस्या, अनचाहे बाल , एक्ने आदि की परेशानियों से कुछ हद तक राहत मिल सकती है। रिफाइन्ड कार्ब्स के अंतगर्त व्हाइट ब्रेड, पिज्जा, पास्ता, चावल आदि फूड्स आते हैं।
प्रोसेस्ड फूड से परहेज
इस तरह से फूड्स से वजन बढ़ने की समस्या सबसे ज्यादा होती है जो पीसीओएस के लक्षणों में से एक है। इसलिए इस तरह के फूड्स से परहेज करनी चाहिए,जैसे-पैक किया हुआ फलों का रस, स्मूदी, केक, ब्रेड, कैंडी, कुकीज, मिठाई,आइसक्रीम आदि।
सैचुरेटेड और ट्रांस फैट से परहेज
यह दोनों वजन को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसलिए पीसीओएस के मरीज को इस तरह से खाद्द पदार्थों से दूरी बरतनी चाहिए, जैसे- फ्रेंच फ्राईंज, पिज्जा, प्रोसेस्ड मीट आदि।
शराब से परहेज
पीसीओएस के मरीजों को फैटी लिवर की समस्या होने का खतरा होता है। शराब का सेवन करने से लिवर पर सीधा असर होता है, इसलिए पीसीओएस के मरीजों को शराब से परहेज करनी चाहिए।
अब तक के चर्चा से आप समझ ही गए होंगे कि पीसीओएस के मरीजों में पीसीओएस डायट की भूमिका कितनी अहम होती है। इसलिए हेल्दी डायट का करें सेवन और पीसीओएस के लक्षणों से पाएं राहत। ऊपर दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इसलिए किसी भी घरेलू उपचार, दवा या सप्लिमेंट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
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