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छोटे बच्चों में होने वाला ये ब्लड डिसऑर्डर हो सकता है खतरनाक, कारण जानने के लिए पढ़ें ये लेख

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Manjari Khare द्वारा लिखित · अपडेटेड 18/02/2022

    छोटे बच्चों में होने वाला ये ब्लड डिसऑर्डर हो सकता है खतरनाक, कारण जानने के लिए पढ़ें ये लेख

    अकसर हम सोचते हैं कि ब्लड डिसऑर्डर जैसी स्थितियां व्यस्कों के साथ ही होती है, लेकिन ऐसा नहीं है इनका शिकार बच्चे भी हो सकते हैं। यहां तक कि कई ऐसे ब्लड डिसऑर्डर भी हैं जो बच्चे बेहद कम उम्र में बच्चों को हो जाते हैं। जिसमें एक है बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम (Hyperviscosity Syndrome in children)। इस ब्लड डिसऑर्डर में ब्लड आर्टरीज में स्वतंत्र रूप से फ्लो नहीं कर पाता। साथ ही रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और ब्लडस्ट्रीम में पाए जाने वाले प्रोटीन से आर्टियल ब्लॉकेज हो सकता है। यह किसी भी असामान्य शेप की रेड ब्लड सेल्स के साथ भी हो सकता हैं जैसे कि सिकल सेल एनीमिया (sickle cell Anaemia) ।

    हायपरविस्कोसिटी बच्चों और व्यस्कों दोनों में हो सकती है। बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम हृदय, आंतों, यकृत और मष्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों में ब्लड फ्लो को कम करके उनके विकास को प्रभावित कर सकता है। वहीं व्यस्कों में यह ऑटोइम्यून डिजीज जैसे कि रयूमेटाइड अर्थराटिस (Rheumatoid Arthritis), सिस्टेमिक ल्यूपस (Systemic lupus) के साथ भी हो सकता है। साथ ही यह ब्लड कैंसर जैसे कि लिम्फोमा (lymphoma)  या ल्यूकेमिया (leukemia) के साथ भी डेवलप हो सकता है।

     बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Hyperviscosity Syndrome in children)

    अगर नवजात शिशु असामान्य रूप से सोता है और सामान्य रूप से फीड नहीं करना चाहता, तो यह बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम का संकेत हो सकता है। इस स्थिति के लक्षणों में सिर दर्द, सीजर्स और जीभ और त्वचा का लाल होना शामिल है। सामान्य तौर पर हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम के लक्षण उन कॉम्प्लिकेशन्स के कारण होते हैं जो ऑर्गन में ब्लड के द्वारा ऑक्सिजन की पर्याप्त मात्रा के न पहुंचने पर दिखाई देते हैं।  बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम के दूसरे लक्षणों में निम्न शामिल हैं।

    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम

    • असामान्य रक्तस्राव
    • दिखाई देने में परेशानी
    • सीने में दर्द
    • सांस लेने में तकलीफ
    • चलने में समस्या
    • दौरे पड़ना
    • कोमा की स्थिति
    • सुनने की क्षमता में कमी
    • न्यूरोलॉजिक एब्नॉर्मलटीज
    • स्ट्रोक
    • चक्कर आना
    • म्यूकोसल ब्लीडिंग (Mucosal bleeding)
    • आलसी होना
    • चूसने में परेशानी

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    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम के कारण क्या हैं? (Hyperviscosity Syndrome Causes in children)

    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम (Hyperviscosity Syndrome in children) तब डायग्नोस होता है जब कुछ रेड ब्लड सेल्स का का स्तर 65 प्रतिशत से ऊपर होता है। यह कई स्थितियों के कारण होता है जो गर्भधारण के दौरान या जन्म के समय विकसित होती हैं। इनमें निम्न शामिल हो सकते हैं।

    • अंबिकल कॉर्ड की लेट क्लैम्पिंग (Late clamping of the umbilical cord)
    • माता-पिता से विरासत में मिली बीमारियां (Genetics diseases)
    • जेनेटिक कंडिशन्स जैसे कि डाउन सिंड्रोम (Down syndrome)
    • जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational diabetes)    

    हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को प्रभावित करने वाली स्थितियों के कारण भी हो सकता है, जिनमें शामिल हैं:

    • ल्यूकेमिया (Lukemia)- ब्लड कैंसर जिसके परिणामस्वरूप वाइट ब्लड सेल्स की संख्या बहुत बढ़ जाती है।
    • पोलीसाइथेमिया वेरा (polycythemia vera)- कैंसर जिसमें रेड ब्लड सेल्स की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।
    • एसेंशियल थ्रोम्बोसाइटोसिस (essential thrombocytosis) एक कंडिशन जिसमें बोन मैरो (Bone Marrow) अधिक मात्रा में ब्लड प्लेटलेट्स का निमार्ण करती है।
    • मायेलोडीसप्लास्टिक डिसऑर्डर्स (Myelodysplastic disorders)- रक्त विकारों का एक समूह जो कुछ रक्त कोशिकाओं की असामान्य संख्या का कारण बनता है,
    • अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में स्वस्थ कोशिकाओं को बाहर निकालता है और अक्सर गंभीर एनीमिया (Anemia) का कारण बनता है

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    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम का रिस्क किसे ज्यादा होता है? (Hyperviscosity Syndrome Risk in children)

    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम (Hyperviscosity Syndrome in children)  ज्यादातर नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है, लेकिन यह बड़े बच्चों में भी डेवलप हो सकता है। इस कंडिशन का रिस्क शिशुओं में उनके जन्म के 24 घंटे के बाद ज्यादा देखने को मिलता है। बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम (Hyperviscosity Syndrome in children)  होने का रिस्क उनमें ज्यादा होता है जिनमें निम्न कंडिशन्स दिखाई देती हैं।

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    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम का पता कैसे लगाया जाता है? (Hyperviscosity Syndrome diagnosis in children)

    बच्चों में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम का पता लगाने के लिए कोई एक स्पेसिफिक टेस्ट नहीं होता है। हाय रिस्क इंफेंट्स जो इस सिंड्रोम के प्रति एसिम्टोमैटिक होते हैं उनकी 4-6 घंटे की उम्र में कैपिलरी हेमाटोक्रिट (Capillary hematocrit) स्क्रीनिंग करानी चाहिए। अगर डॉक्टर को लगता है कि इंफेंट को यह सिंड्रोम है तो वे दूसरे ब्लड कराने के लिए कह सकते हैं।  जिससे शिशु के ब्लडस्ट्रीम में रेड ब्लड सेल्स के बारे में पता लगाया जा सके। ये टेस्ट निम्न हो सकते हैं।

    • कंप्लीट ब्लड काउंट (CBC) जिसमें सभी ब्लड कंपोनेंट्स के बारे में पता चल जाता है
    • बिलिरुबिन टेस्ट (Bilirubin test) जिससे बॉडी में बिलिरुबिन का लेवल टेस्ट किया जाता है।
    • यूरिन एनालिसिस (urinalysis) है जिसमें यूरिन में ग्लूकोज, ब्लड और प्रोटीन के बारे में पता लगाया जाता है।
    • ब्लड शुगर टेस्ट- जिससे ब्लड शुगर के लेवल को टेस्ट किया जाता है।
    • क्रिएटिनिन टेस्ट- इसके जरिए किडनी फंक्शन के बारे में पता किया जाता है।
    • ब्लड गैस टेस्ट- जिसमें ब्लड में ऑक्सिजन लेवल के बारे में पता लगाया जाता है।
    • लिवर फंक्शन टेस्ट- इसमें लिवर प्रोटीन के लेवल को चेक किया जाता है।
    • ब्लड कैमेस्ट्री टेस्ट- जिसके जरिए ब्लड में कैमिकल का बैलेंस चेक किया जाता है।
    • इनके अलावा डॉक्टर इस बात का भी पता लगाने की कोशिश करेंगे कि बच्चे को कि पीलिया, किडनी फेलियर या किसी प्रकार की ब्रीदिंग प्रॉब्लम तो नहीं हो रही।

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    बच्चों में हापरविस्कोसिटी सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? (Hyperviscosity Syndrome treatments in children)

    अगर डॉक्टर को इस बात का पता चल जाता है कि शिशु को हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम (Hyperviscosity Syndrome in children) है तो वे उसे मॉनिटर करेंगे। अगर स्थिति गंभीर है तो डॉक्टर पार्शियल एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन (Partial exchange transfusion) रिकमंड कर सकते हैं। इस प्रॉसेस के दौरान कम मात्रा में ब्लड को हटाया जाता है और उसी समय जितना ब्लड लिया गया है उसे सलाइन सॉल्यूशन से रिप्लेस किया जाता है। इससे रेड ब्लड सेल्स की मात्रा कम होती है और खून पतला हो जाता है।

    डॉक्टर बच्चे को फीडिंग कराने के लिए भी कह सकते हैं। ताकि हायड्रेशन में सुधार करके ब्लड थिकनेस को कम किया जा सके। अगर बच्चा दूध नहीं पीता है तो उसे इंट्रावेनसली (Intravenously) फ्लूइड दिया जाता है। अगर शिशु में हायपरविस्कोसिटी सिंड्रोम का माइल्ड केस है और किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो चिंता की बात नहीं है। शिशु के रिकवरी के चांसेज भी ज्यादा हैं, लेकिन अगर यह सिंड्रोम जेनेटिक कंडिशन के कारण है तो इसे लॉन्ग टर्म ट्रीटमेंट की जरूरत हो सकती है। जिन शिशुओं में यह सिंड्रोम होता है उन्हें बाद में डेवलपमेंट और न्यूरोलॉजिक प्रॉब्लम्स (Neurological Problems) का सामना करना पड़ता है। जिसका कारण ब्लड फ्लो की कमी और ऑक्सिजन का ब्रेन और दूसरे ऑर्गन्स में ना पहुंच पाना।

    शिशुओं में होने वाले अन्य ब्लड डिसऑर्डर कौन से हैं? (Other Blood Disorders in Children)

    बच्चों में निम्न प्रकार के रेड ब्लस सेल और आयरन डिसऑर्डर पाए जाते हैं।

    • चाइल्डहुड रेड ब्लड सेल डिसऑर्डर्स
    • सिकल सेल डिजीज
    • थेलेसीमिया
    • चाइल्डहुड एनीमिया
    • आयरन डेफिसिएंशी एनीमिया
    • हीमोलिटिक एनीमिया (Hemolytic anemia)
    • आयरन रेफ्रेक्टरी आयरन डेफिसिएंशी एनीमिया (Iron-refractory iron deficiency anemia) (IRIDA)
    • कॉन्जिनिटल साइरोब्लास्टिक एनीमिया (Congenital sideroblastic anemia)
    • मेगालोब्लास्टिक एनीमिया (Megaloblastic anemia)
    • हायड्रॉप्स फेटेल्स (Hydrops fetalis)

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    शिशु को ब्लड डिसऑर्डर्स (Blood Disorders in babies) से बचाने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें

    • प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर के पास रेगुलर विजिट करें।
    • डॉक्टर के द्वारा दी जाने वाली दवाओं को समय पर लें और उनके निर्देशों का पालन करें।
    • अगर ब्लड डिसऑर्डर की फैमिली हिस्ट्री है, तो इसके बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं ताकि वह अतिरिक्त सर्तकता रखकर इलाज करें।
    • प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग और एल्कोहॉल के सेवन से दूर रहें।

    उम्मीद करते हैं कि आपको बच्चों में हायपविस्कोसिटी सिंड्रोम होने के कारण और इससे संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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