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हॉजकिन्स डिजीज के रिस्क फैक्टर्स (Hodgkin’s disease Risk Factors)
निम्न फैक्टर्स हॉजकिन्स डिजीज के रिस्क को बढ़ा सकते हैं।
उम्र (Age)
हॉजकिन्स डिजीज सामान्यत: 15 से 30 साल की उम्र के बीच में और 55 साल के बाद डायग्नोस होता है।
फैमिली हिस्ट्री (Family History)
फैमिली में किसी को हॉजकिन्स लिम्फोमा (Hodgkin’s lymphoma) होने पर परिवार के दूसरे सदस्यों को भी इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
पुरुष
पुरुषों में महिलाओं की तुलना में हॉजकिन्स लिम्फोमा (Hodgkin’s lymphoma) होने की संभावना ज्यादा रहती है।
एपस्टीन बार वायरस इफेक्शन (Epstein-Barr virus infection)
इस इंफेक्शन का शिकार होने वाले लोगों में हॉजकिन्स डिजीज (Hodgkin’s disease) होने का खतरा ज्यादा होता है।
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हॉजकिन्स डिजीज का पता कैसे लगाया जाता है? (Hodgkin’s disease diagnosis)
डॉक्टर मरीज से पर्सनल और फैमिली हिस्ट्री के बारे में पूछेंगे। डॉजकिन्स डिजीज का पता लगाने के लिए वे कुछ टेस्ट करने के लिए भी कहेंगे। जिसमें निम्न शामिल हैं।
फिजिकल एग्जाम (Physical Exam)
इसमें डॉक्टर अंडरऑर्म, नेक और कमर के सूजे हुए लिम्फ नोड्स को चेक करेंगे। इसके साथ ही वे स्प्लीन की सूजन और लिवर की भी जांच करेंगे।
ब्लड टेस्ट (Blood test)
ब्लड सैम्पल के जरिए कैंसर का पता लगाने की कोशिश की जाएगी। लेब में ब्लड में ऐसी किसी संभावना की तलाश की जाएगी जो कैंसर का कारण हो सकती है।
इमेजिंग टेस्ट्स (Imaging test)
डॉक्टर हॉजकिन्स लिम्फोमा के लक्षणों की जांच करने के लिए इमेजिंग टेस्ट्स रिकमंड कर सकता है। जिसमें एक्स रे, सीटी स्कैन (CT Scan) और पॉजिस्ट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी (Positron emission tomography) शामिल है।
बायोप्सी (Biopsy)
डॉक्टर लिम्फ नोड बायोप्सी भी रिकमंड कर सकते हैं। जिसमें लेब टेस्टिंग के लिए लिम्फ नोड के कुछ टिशूज को लिया जाता है। जिसमें एब्नॉर्मल सेल्स के बारे में पता लगाने की कोशिश की जाती है।
बोन मैरो सैम्पल (Bone Marrow sample)
बोन मैरो बायोप्सी भी डॉक्टर रिकमंड कर सकते हैं, जिसमें नीडल के जरिए हिपबोन से बोन मैरो का सैम्पल लिया जाता है। इस सैम्पल से हॉजकिन्स लिम्फोमा सेल्स के बारे में पता लगाया जाता है।
हॉजकिन्स लिम्फोमा की स्टेज (Hodgkin’s lymphoma stages)

डॉक्टर के द्वारा कैंसर को डायग्नोस करने के बाद इसकी स्टेज र्निधारित कर दी जाती है। जो निम्न प्रकार है।
स्टेज 1 – कैंसर एक लिम्फ नोड रीजन या एक ही अंग तक ही सीमित है
स्टेज 2- इस स्टेज में कैंसर दो लिम्फ नोड्स रीजन में होता है या कैंसर ने एक अंग और पास के लिम्फ नोड्स पर हमला किया है, लेकिन कैंसर अभी भी डायफ्राम के ऊपर या नीचे शरीर के एक हिस्से तक सीमित है।
स्टेज 3 – जब डायफ्राम के ऊपर और नीचे दोनों तरफ के लिम्फ नोड्स तक कैंसर फैल चुका होता है तो इसे स्टेज 3 माना जाता है। कैंसर ऊतकों के किसी एक हिस्से में हो सकता है या लिम्फ नोड के पास के ऑर्गन में हो सकता है।
स्टेज-4 यह हॉजकिन्स लिम्फोमा की एडवांस्ड स्टेज है। इसमें कैंसर कोशिकाएं एक या अधिक अंगों तक पहुंच चुकी होती हैं। स्टेज 4 में हॉजकिन्स लिम्फोमा ना सिर्फ लिम्फ नोड्स को प्रभावित करता है, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कि लिवर, लंग्स और हड्डियों को भी प्रभावित कर देता है।
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हॉजकिन्स डिजीज का इलाज कैसे किया जाता है? (Hodgkin’s disease treatment)
हॉजकिन्स डिजीज का इलाज इसकी स्टेज पर आधारित होता है। इस बीमारी का इलाज मुख्यत: कीमोथेरिपी (Chemotherapy) और रेडिएशन (Radiation) है। रेडिएशन थेरिपी में हाय एनर्जी रेडिएशन बीम्स का उपयोग कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए किया जाता है। वहीं कीमोथेरिपी में ऐसी दवाओं का उपयोग किया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करती हैं। कीमोथेरिपी में उपयोग होने वाली दवाओं को ओरली देने के साथ ही वेन्स में भी इंजेक्ट किया जाता है। यह मेडिकेशन पर निर्भर करता है।
केवल रेडिएशन थेरिपी अर्ली स्टेज के हॉजकिन्स कैंसर का इलाज करने के लिए पर्याप्त है। कैंसर के एडवांस स्टेज में पहुंचने पर या इसके शरीर में ज्यादा फैल जाने पर टार्गेट ड्रग्स के साथ ही कीमोथेरिपी दी जाती है।
इम्यूनोथेरिपी (Immunotherapy) और स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट (Stem cells transplant) भी इस बीमारी के इलाज में उपयोग किया जाता है, लेकिन ऐसा तब होता है जब मरीज रेडिएशन थेरिपी और कीमोथेरिपी के प्रति रिस्पॉन्ड नहीं करता। स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट बोन मैरो में कैंसर सेल्स को हेल्दी सेल्स को ट्रांसप्लांट करके रिप्लेस कर दिया है।
ट्रीटमेंट के बाद डॉक्टर मरीज का रेगुलर फॉलोअप लेता है। इसलिए ट्रीटमेंट के बाद डॉक्टर से मिलते रहे।
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