backup og meta

जानें इसोफैगल कैंसर और एसिड रिफ्लक्स में क्या संबंध है

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 05/04/2021

    जानें इसोफैगल कैंसर और एसिड रिफ्लक्स में क्या संबंध है

    सभी के साथ कई बार ऐसा होता होगा कि खाना खाने के बाद सीने या गले में जलन महसूस होना। अगर यह समस्या कभी कदार हो तो आम है, लेकिन ऐसा लगातार होना, आपमें पेट की किसी बड़ी बीमारी का संकेत हो सकती है। यहां तक की भविष्य में आपको इसोफेगल कैंसर भी हो सकता है। ऐसा तब होता है, जब  पेट में बनने वाला एसिड ऊपर की तरफ आने लगता है। जब बार-बार लगातार पेट में बनने वाला एसिड इसोफेगस में आ जाए तो इसका रिस्क बढ़ जाता है। जिनमें गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (gastroesophageal reflux disease)  की समस्या होती है, उनमें इसोफेगल कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है।

    और पढ़ें: एक्यूट गैस्ट्राइटिस : पेट से जुड़ी इस समस्या को इग्नोर करना हो सकता है खतरनाक!

    इसोफेगल कैंसर और एसिड रिफ्लक्स में क्या संबंध है (esophageal cancer and acid reflux related)?

    एसिड रिफ्लक्स को हार्ट बर्न भी कहा जाता है, इसमें कुछ भी खाने के बाद सीने और गले में जलन महसूस होने लगती है। हम से सभी के साथ कभी कदार ऐसा हो ही जाता होगा कि कुछ न कुछ खा लेने के बाद सीने में जलन महसूस होने लगे। लेकिन जिन लोगों में यह समस्या लगातार बनी रहती है, उन्हें क्रॉनिक एसिड रिफ्लक्स हाे सकता है। इन दोनों के बीच यह फर्क है कि यदि आपमें यह समस्या दो से तीन महीने में एक बार होती है, तो आपको एसिड रिफ्लक्स की समस्या हो सकती है। लकिन यह समस्या हर सप्ताह बनी रहे और वो भी सप्ताह में एक से दो बार, तो आपमें क्रॉनिक एसिड रिफ्लक्स की संभावनाएं ज्यादा हो सकती हैं। जो कि खतरे का संकेत है, क्योंकि क्रॉनिक एसिड रिफ्लक्स आगे जाकर इसोफैगल कैंसर के रूप में भी बदल सकता है। इसोफेगस पेट और गले से जुड़ी हुई एक लंबी नली होती है। जब एसिड पेट से इसोफेगस में आने लगे, तो इसोफेगस कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है। इसोफेगस में होने वाले कैंसर दो प्रकार के होते हैं,एडीनोकार्सिनोमा और स्क्वैमस सेल। 

    और पढ़ें: क्या स्ट्रेस के कारण होता है पेट का अल्सर?

    इसोफेगल कैंसर के लक्षण (symptoms of esophageal cancer) क्या हैं?

    इसाेफेगल होने का जो सबसे आम लक्षण है, वो है खाने काे निगलने में कठनाई होना, जिसे हम डिस्पैगिया भी कहते हैं। ऐसे में खाना खाते समय दर्द और कठनाई महसूस करते हैं, क्योंकि इसोफैगस में होने वाले टयूमर के कारण उन्हें कुछ भी खाने और पीने में काफी दिक्कत होती है। ठीक से खानपान न होने के कारण लोगों का वजन भी तेजी से  घटने लगता है। जिसके कारण और भी कई तरह की समस्याएं होने लगती है। घटती डायट के साथ उनका मेटाबॉलिज्म भी कमजाेर होने लगता है। कुछ लोगों में इसके अन्य लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे कि:

    • अवाज बैठ जाना
    • खांसी आना
    • गले में सूजन आना
    • खाना नहीं पचाना आदि

    इसोफैगल कैंसर में आमतौर पर इसके शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं। जिसका पता बाद में जाकर पता चलता है। जब कैंसर एडवांस स्टेज में पहुंच जाता है।इसलिए जरुरी है ऐसे में अपने डॉक्टर बात करें।

    और पढ़ें: Gastritis and Duodenitis: खानपान में खराबी के कारण हो सकती है पेट में सूजन की समस्या

    इसोफेगल के जोखिमि क्या है (risk factors for esophageal cancer)?

    अगर आपको क्रॉनिक एसिड रिफ्लक्स है तो आपको इस तरह के रिस्क फैक्टर हो सकते हैं, जैसे कि:

  • जेंडर (Gender): महिलाओं की तुलना  में पुरुषों में एसोफैगल कैंसर होने का खतरा तीनगुना ज्यादा होता है।
  •  उम्र (Age): 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में इसोफेगल कैंसर सबसे आम है।
  • तंबाकू (Tobacco): तंबाकू का सेवन सिगरेट, सिगार और से इसोफेगल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • अल्कॉहल (Alcohol): शराब पीने से इसोफेगल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, खासकर धूम्रपान के साथ करने से।
  • मोटापा (Obesity):   जो लोग बहुत अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं, उनमें इसोफेगल कैंसर का खतरा अधिक होता है, आंशिक रूप से क्योंकि उनमें क्रोनिक एसिड रिफ्लक्स का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है।
  • डायट (Diet): अधिक फल और सब्जियां खाने से इसोफैगल कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है। जबकि कुछ अध्ययनों ने प्रोसेस्ड फूड को इसका कारण माना गया है। ओवरईटिंग भी एक जोखिम कारक है।
  • गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज के मरीजों में यह लक्षण हो सकते हैं:

    • जिनका वजन अधिक होता है, उन्हें इसोफेगल रिस्क ज्यादा होता है।
    • प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को इसोफेगल होने का खतरा बढ़ जाता है। वैसे भी इस दौरान इनमें खाने के पाचन को लेकर के भी कई समस्याएं होती हैं।
    • जो लोग रोजाना हैवी दवाइयां लेते हैं, वो इसके शिकार हो सकते हैं।
    • जिनकी नींद पूरी नहीं होती है, उनमें भी इसका रिस्क ज्यादा होता है।
    • जो लोग अधिक अल्कॉहल का सेवन करते हैं, वो भी इसके शिकार हो सकते हैं।

    इनके अलावा ऐसे बहुत सी लोगों को यह समस्या हो सकती है। जरूरी है खुद सावधानी रखने की।

    इसोफेगल कैंसर का निदान (esophageal cancer diagnosed) कैसे किया जाता है?

    यदि आपमें इस तरह के लक्षण हैं, जो इसोफैगल कैंसर के कारण बन सकते हैं, तो आपको डॉक्टर को बता कर अपनी स्क्रीनिंग और जरुरी टेस्ट करवाने चाहिए। हो सकता है डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री भी पूछें। परिवार में पहले भी किसी को हो रखा हो तो। इसकी जांच के लिए डॉक्टर एंडोस्कोपी की सलाह भी दे सकते हैं। इसके लिए एक लंबे टयूब और कैमरे को आपके इसोफेगस में डालकर अंदर का सब देखेंगे। फिर कुछ टकड़ा निकालकर उसे जांच के लिए भेजा जाएगा। जिसे बायोप्सी कहते हैं।इसके अलावा डॉक्टर आपके इसोफेगस का एक्सरे भी करवा सकते हैं।

    और पढ़ें: Barrett’s Esophagus : बैरेट इसोफैगस क्या है?

    इसोफेगल कैंसर का इलाज ( TREATMENT OF ESOPHAGEAL CANCER)

    इसोफेगल कैंसर का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को किस स्टेज का कैंसर है। वैसे तो इसोफैगल कैंसर का मुख्य इलाज सर्जरी, रेडिएशन थेरिपी और कीमाेथेरिपी का कॉम्बिनेशन है।
  • सर्जरी Surgery : कैंसर के शुरुआती चरणों में ट्यूमर को पूरी तरह सर्जरी कर के हटाया जा सकता है। कभी-कभी यह एंडोस्कोपी ट्रीटमेंट की सहायता से किया जा सकता है। यदि कैंसर

    अंदर फैल गया है, तो उस हिस्से को हटाने की आवश्यकता होती है। गंभीर मामलों में लिम्फ नोड्स को भी हटाया जा सकता है।

  • रेडिएशन Radiation:  रेडिशन थेरिपी में कैंसर वाले स्थान में हाय एनर्जी बीम का इस्तेमाल कर के कैंसर को टिशू को खत्म किया जाता है। यह शरीर के केवल प्रभावित हिस्से में  ही किया जाता है।
  • कीमोथेरिपी Chemotherapy: कीमोथेरेपी को कैंसर वाले कोशिकाओं को मारने के लिए  उपयोग किया जाता  है। यह अक्सर सर्जरी से पहले या बाद में  भी किया जाता है। ताकि बचे हुए कैंसर के सेल्स भी मर जाएं।
  • इसके उपचार की अधिक जानकारी के लिए आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए।

    और पढ़े: 15 एंटी ब्लोटिंग फूड, जिसे खाने से पेट फूलने की समस्या होगी दूर

    किन बातों का रखें ध्यान

    इसोफेगसकी समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपनी लाइफस्टाइल का विशेष ध्यान रखें। इसके अलावा अपनी कुछ आदतों को बदलें, जैसे कि:

    • वजन कंट्रोल में रखें
    • खाने के बाद तुरंत न लेटे
    • स्मोकिंग की आदत को छोड़ें
    • ड्रिंक की आदत कभी कदार रखें
    • हरी सब्जियां उचित मात्रा में खाएं
    • पेट के बल न सोएं
    • वजन को कंट्रोल रखें

    इन सब बातों काे ध्यान में रखने से आपमें इसोफैगल कैंसर होने का खतरा कम होगा। इसके अलावा पेट की दिक्कत या खाने के बाद सीने में जलन महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। नियमित रूप से जांच करवाते रहना चाहिए।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

    के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

    डॉ. प्रणाली पाटील

    फार्मेसी · Hello Swasthya


    Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 05/04/2021

    advertisement iconadvertisement

    Was this article helpful?

    advertisement iconadvertisement
    advertisement iconadvertisement