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कोरोना काल में कैंसर के इलाज की स्थिति हुई बेहतर: एक्सपर्ट की राय

Written by डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली · ऑन्कोलॉजी · Seniority


अपडेटेड 22/07/2021

    कोरोना काल में कैंसर के इलाज की स्थिति हुई बेहतर: एक्सपर्ट की राय

    कोरोना के नाम ने सबके दिल में डर बैठा दिया है। अगर किसी को दाँत की समस्या है या सामान्य पेट दर्द की समस्या है तो भी डॉक्टर के पास जाने से डरता है। क्योंकि सबके दिल में कोरोना संक्रमण का भय भयंकर रूप से भयभीत कर रहा है। यह तो अब सभी को पता है कोविड-19 के वायरस के चपेटे में वह लोग सबसे पहले आते हैं जिनका इम्यून पावर सबसे कमजोर हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि  SARS-CoV-2 नए तरह का वायरस है, जो भी इसके संपर्क में आता है उसे इंफेक्टेड होने का खतरा रहता है। इसलिए कोरोना काल में कैंसर का इलाज कैंसर के मरीजों के लिए सबसे कष्टदायक हो गई है। एक तो पहले से ही कैंसर को लेकर उनके दिल में दहशत बैठा रहता है, ऊपर से कोविड-19 का भय। दोहरे भय की स्थिति है।

    कोरोना महामारी के शुरूआती दिनों में कैंसर के इलाज में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। अब कोरोना काल में कैंसर का इलाज करने की अवस्था में सुधार आने लगा है। इस संदर्भ में डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली, हेड मेडिकल अफेयर्स, ईओएन का कहना है कि इसके लिए विभिन्न ग्लोबल बॉडिज को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने कम समय में अथक प्रयास से स्थिति को बेहतर बनाने में मदद की है। अभी ऑन्कोलॉजिस्ट कोई भी मेडिकल फैसला लेने में पहले से बेहतर अवस्था में हैं। यह बात सबके सम्मति से निर्णय लिया गया है कि जिन मरीजों की हालत गंभीर है, उनकी तुरन्त देखभाल करने की जरूरत है और उनके लिए सारे सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।

    सामाजिक स्थिति

     यह तो सच है कि लॉकडाउन में या कोरोना काल में कैंसर का इलाज करने के दौरान सारे सुविधाओं की गतिशिलता में बाधा पड़ने के कारण कैंसर के इलाज के लिए दवाओं और सही तरह से इलाज करने में असुविधा तो हुई है। कैंसर के  मरीजों को सही समय पर दवा और सारी सुख-सुविधाएं देना मुश्किल हो गया था। यहां तक कि कुछ ऑन्कोलॉजी केयर ने भी कोविड-19 से लड़ने के लिए बेड और सारे तकनीकी सामान देकर मदद की है। 

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    ऑन्कोलॉजिस्ट की परेशानियाँ या दुविधाएं

    डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली का कहना है कि इस महामारी के अवस्था में सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि कोरोना काल में कैंसर का इलाज करने के लिए संसाधनों की कमी रोग को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। इस कमी के कारण कैंसर का सही समय से इलाज करने में मुश्किल हो रहा है। देर से कैंसर का उपचार होने के कारण रोग के विकास के गति को रोकना मुश्किल हो रहा है फलस्वरूप इम्यून सप्रेसेंट के कारण कोरोना से संक्रमण से बचना बेहद चुनौती भरा काम हो गया है। किसी भी ऑन्कोलॉजिस्ट के लिए मर्ज़ का सही इलाज करना संभव नहीं हो पा रहा है , यहाँ तक कि कोई भी निर्णय लेना भी उतना आसान बात नहीं रह गया है।

    कोविड-19 के परीक्षण संबंधी असुविधाएं

    असल में कोविड-19 के टेस्ट को लेकर भी बहुत तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। कॉरपोरेट्स  सभी का परीक्षण करने की सलाह देते हैं। लेकिन डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली का सोचना है कि रिसोर्सेस इतने कम है कि जहाँ जरूरत नहीं वहाँ इसका इस्तेमाल करने से संसाधन कम पड़ रहे हैं। जिनको वास्तविक जरूरत है उनका ही टेस्ट करवाना सही हो सकता है। लेकिन कभी सरकार यह कहती है कि जिनमें वायरस के लक्षण नजर आ रहे हैं सिर्फ उनकी ही जाँच करवाएं। मुश्किल तो यह है कि किसकी जाँच करवाएं, किसके नहीं इस सीमारेखा को निर्धारित करना बहुत ही मुश्किल का काम हो गया है। इस मुश्किल की घड़ी से निकलने का एकमात्र रास्ता है संसाधन की पर्याप्त आपूर्ति। 

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    आखिर कैंसर का स्क्रीनिंग टेस्ट कहाँ करवाएं?

    डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली का कहना है कि कोरोना काल में कैंसर का इलाज के मामले में सही तरह से जवाब देना कुछ हद तक संभव है। उनकी सलाह है कि अगर कैंसर का खतरा कम है और कॉन्वेन्शनल स्क्रीनिंग करने की जरूरत है तो इस मामले में जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है, थोड़ा इंतजार कर सकते हैं। अगर कैंसर का रिस्क हाई है तो रिस्क के लेवल के आधार पर इंतजार किया जा सकता है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरत है कि कभी भी कोई भी टेस्ट करवाने कम्युनिटी कैंप्स में न जाएं। यहाँ तो कोरोना का खतरा बिना बुलाए आपके घर आपके साथ आ सकता है। हाँ, शुरूआत में ही इसके लक्षण के आधार पर इलाज करने से वायरल के फैलने का खतरा कम हो सकता है। 

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    अब सवाल यह आता है कि क्या यहाँ भी नियम समान ही है?

    CDC (Centers for Disease Control and Prevention) के निर्देशानुसार मरीजों को बेसिक हाइजन संबंधी जानकारी देना जरूरी होता है। उदाहरण स्वरूप साबुन से बार-बार हाथ धोना, सफाई का ध्यान रखना, ज्यादा बीमार लोगों के संपर्क में कम आना, ज्यादा भीड़-भाड़ वाले जगहों पर जाने से परहेज करना आदि। वैसे अभी तक इस पर कोई विशेष निर्देश नहीं आया है कि कैंसर के मरीजों को मास्क का इस्तेमाल करना कितना लाजमी है। लेकिन मरीजों और चिकित्सक को सीडीसी के जनरल निर्देश के अनुसार मास्क पहनना जरूरी है। यहां तक कि जब भी बाहर निकले कम से कम कपड़े से, अपने मुँह को ढक कर रखें। N95 मास्क के इस्तेमाल के बारे में अभी तक कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिला है। कैंसर के मरीज को अगर बुखार या दूसरे लक्षण महसूस हो रहे हैं तो सामान्य नियम के अनुसार सारे चिकित्सकीय कारवाही करवाने की जरूरत है।

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    क्या सर्जरी/ किमोथेरेपी/ रेडिएशन/ बीएमटी आदि में वही नियम पालन करने की जरूरत है?

    अब तक के आँकड़ो से यह पता चल रहा है बुजुर्ग लोग जो लंबे समय से साँस संबंधी समस्या, कार्डियोवसकुलर, किडनी की बीमारी, मधुमेह, एक्टिव कैंसर और आम क्रॉनिक डिजीज के ग्रस्त हैं उन्हें कोविड-19 होने का खतरा हो सकता है। इसलिए कोरोना काल में कैंसर का इलाज  के दौरान कैंसर के मरीजों को उपचार से लाभ या फायदा मिलने का अनुपात मरीज के शारीरिक अवस्था पर निर्भर करता है। असल में मरीजों को आसानी के लिए दो वर्गों में बाँटा गया है- “पेशेन्ट ऑफ थैरेपी” (ए) जिन्होंने  कैंसर का इलाज पूरा कर लिया है या जिनकी थेरेपी ऑफ मोड पर है , और जिन मरीजों का इलाज अभी तक चल रहा है वह (बी) कैटेगोरी में आ रहे हैं। “एक्टिव डिजीज” वाले मरीज सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, बायोलॉजिकल थेरेपी, और इम्यूनोथेरेपी के लिए जा सकते हैं लेकिन भीड़-भाड़ वाले जगह पर नहीं। सभी रोगियों यानि ए और बी दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना जरूरी है: 

    • भीड़ भरे वाले जगह पर न जाएं;
    • चिकित्सक पीपीई जरूर पहनें जब दौरे या इलाज के लिए अस्पताल जाते हैं; 
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निर्देश के अनुसार अपने हाथों को सही तरह से धोएं; 
    • सभी लोगों के साथ सामाजिक दूरी बरतें;
    •  दूसरों की रक्षा के लिए खुद की सुरक्षा करें।

    डॉ. वी. सत्या सुरेश अत्तिली, हेड मेडिकल अफेयर्स, ईओएन का अभिमत है कि हेल्थ मॉनिटरिंग, टेलिमेडिसन, पीओसी टेस्टिंग, एआई ड्रावेन स्क्रीनिंग टूल्स ने ऑन्कोलॉजिस्ट को कोरोना काल में कैंसर का इलाज करने में बहुत मदद की है। फिर भी उनका खुद के सर्वेक्षण अभिज्ञता यह बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों की अवस्था बहुत बुरी है क्योंकि उन्हें सही तरह मेडिकल सहुलियत, दवा आदि नहीं मिल रहा है। 

    डिस्क्लेमर

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