आज विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (International Youth Diwas ) मनाया जा रहा है। हर साल 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में हर उम्र के वर्ग की तादाद अन्य देशों के मुकाबले कई अधिक है। देश में नौजवान पीढ़ी के कंधों पर देश की बागडोर संभालने का जिम्मा है। इसमें अनुभवी लोग भी उनका साथ दे रहे हैं। बीमारियों के संदर्भ से देश में इसका बड़ा जाल फैला हुआ है। फिलहाल तो कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में लिया हुआ है। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर हम यहां बात करेंगे उन 10 अहम बीमारियों को देश के युवा वर्ग को दिन ब दिन घेर रही है। साल दर साल चिकित्सा के क्षेत्र में कई शोध और अध्ययन हो रहे हैं लेकिन इन अध्ययनों में पाया जा रहा है देश का नौजवान खुद को गर्त में कैसे ढकेल रहा है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 17 दिसंबर 1999 को यह फैसला लिया गया कि 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाएगा। यह फैसला युवाओं के लिए जिम्मेदार मंत्रियों के विश्व सम्मेलन द्वारा 1998 में दिए गए सुझाव के बाद लिया गया। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन पहली बार साल 2000 में किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1985 में अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया था।
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1. सेल्फ हार्म
सेल्फ हार्म यानी खुद को चोट पहुंचाना देश में नौजवानों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। साल में 15 से 24 साल की उम्र के 60 हजार से अधिक नौजवान की मौत का कारण सेल्फ हार्म बन रहा है। इतना ही नहीं एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि सेल्फ हार्म युवाओं में अपंगता का सबसे बड़ा कारण बन रहा है। सेल्फ हार्म में आत्महत्या और आत्महत्या करने का प्रयास, खुद को चोट पहुंचाना शामिल है।
2.युवाओं में कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमियां
- भारत सहित की विकासशील राष्ट्र वर्तमान में कुपोषण के दोहरे बोझ के पोषण-स्पेक्ट्रम के दोनों छोर पर गम्भीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कुपोषम ऊर्जा और/या पोषक तत्वों के एक व्यक्ति के सेवन में कमियों, बढोत्तरी, या असंतुलन को दर्शाता है।
- एक ओर लाखों लोग अत्यधिक या असंतुलित आहार के कारण गैर-संचारी रोगों से पीड़ित हैं और मोटापे को रोकने और आहार से सम्बन्धित गैर-संचारी रोगी (एनसीडी) के इलाज पर भारी खर्च का भी सामना कर रहे हैं। वही दूसरी ओर, अभी भी कई देश आबादी को खिलाने मात्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2019 ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत 117 योग्य देशों में से 102 वें स्थान पर है।
- विश्वभर में कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, मोटापा और आहार सम्बन्धी गैर-संक्रामक बीमारियों की समस्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है। ऊर्जा/पोषण असंतुलन के परिणामस्वरूप शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास, रुग्णता मृत्युदर पर दुष्प्रभाव पड़ने के साथ-साथ मानव क्षमता का बहुपक्षीय नुकसान भी हो सकता है तथा इस प्रकार सामाजिक/आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।
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3. मोटापा और जरूरत से ज्यादा वजन
- कम पढ़े-लिखे या कम आय वाले पड़ोसियों के बीच रहने वाले सामान्य वजन वाले किशोरों या नवयुवाओं में अधिक वजन या मोटापे का शिकार हो जाने का खतरा अधिक रहता है। एक शोध में पाया गया है कि 25 प्रतिशत नौजवान अधिक वजन वाले या मोटापा का शिकार हो गए। कैसर परमानेंट साउदर्न कैलिफोर्निया के शोध एवं निरूपण विभाग के शोधकर्ता देबोराह रोह्म यंग ने यह निष्कर्ष दिया है।
- उनका कहना है कि युवावस्था की ओर बढ़ने के दौरान अधिक वजन बढ़ने के लिए कई कारणों से संकटपूर्ण समय है। इनमें बहुत सारे किशोर घर से कॉलेज जाने के लिए निकलते हैं और खाने के लिए उन्हें और आजादी मिल जाती है।
- सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारण के कारक वे परिस्थितियां हैं, जिनमें व्यक्ति ने जन्म लिया, रहा, सीखा, काम किया, खेला और पूजा की। साथ ही उम्र भी एक कारक है। ये सभी लोगों के स्वास्थ्य, उसकी कार्य पद्धति और जीवन की गुणवत्ता परिणाम एवं जोखिमों को प्रभावित करते हैं।
- इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने सामान्य वजन वाले 18 साल की उम्र के विभिन्न जातीय आधार वाले 22 हजार 823 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की और उन पर लगातार चार साल तक नजर रखा। चार साल बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि 23 फीसदी सामान्य वजन वाले उन किशोरों का वजन ज्यादा बढ़ गया जो कम पढ़े-लिखे पड़ोसियों के साथ रहते थे और जो कम आय वाले पड़ोसियों के साथ रहते थे, उनमें से दो प्रतिशत मोटापे के शिकार हो गए।
4. यौन जोखिम व्यवहार में शामिल
- आज के युवा इंटिमेट होने में समय नहीं ले रहे हैं। बावजूद इसके वह सुरक्षित सेक्स करने में भी पिछड़ रहे हैं। असुरक्षित सेक्स का सबसे बड़ा अंजाम युवाओं को HIV AIDS के रूप में भुगतना पड़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार युवाओ में सेक्स की इच्छा बढ़ती ही जा रही है। लगभग 43 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे संभोग के दौरान कंडोम का प्रयोग करते हैं जिसमें युवा का प्रतिशत बेहद कम है। इसमें कुछ आंकड़े इस प्रकार है।
- 40% कभी संभोग था।
- 10% चार या अधिक यौन साथी था।
- 7% शारीरिक रूप से संभोग करने के लिए जब वे नहीं करना चाहता था मजबूर किया गया था।
- 30% पिछले 3 महीनों के दौरान संभोग था।
- 46% एक कंडोम पिछली बार वे यौन संबंध का उपयोग नहीं किया।
- 19% नशे में शराब या इस्तेमाल किया दवाओं पिछले संभोग से पहले किया था।
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5. युवाओं में बढ़ता मानसिक विकार
- मानसिक स्वास्थ्य पर हम सभी कभी इतना गौर नहीं करते थें क्योंकि ये हमारे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं होता था लेकिन समय के साथ साथ लोग जागरूक होने लगे और इसकी महत्वत्ता को भी समझने लगे हैं। वहीं बात करें भारत की तो यहां भी अब धीरे धीरे मानसिक विकारों से जुड़ी समस्याएं गंभीर रूप लेती जा रही हैं।
- ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि कई सारे शोध में यह पता चला है कि साल 2017 में करीब बीस करोड़ भारतीय मानसिक विकारों से ग्रस्त पाए गए थें और अब ये आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। साल 1990 से साल 2017 के बीच भारत में बीमारियों के कुल बोझ में मानसिक बीमारियों का योगदान बढ़ कर दोगुना हो गया। वहीं कोरोना काल में हुए इस लॉकडाउन के कारण तो मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि लॉकडाउन के चलते बिजनेस, नौकरी, बचत और यहां तक कि मूलभूत संसाधन खोने के डर से लोगों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और नेगेटिव विचार हावी हो रहे हैं। घरेलू विवाद बढ़ रहे हैं तो बच्चे भी अछूते नहीं हैं। लॉकडाउन की अवधि लंबी होने के चलते घरों में कैद लोगों के दिनचर्या में बदलाव का असर मनोविकार के रूप में सामने आने लगा है। इनमें अवसाद और व्यग्रता सबसे आम मानसिक विकार हैं। इतना ही नहीं, ये दोनों मानसिक विकार भारत में तेजी से फैल रही हैं।
6. युवाओं में बढ़ता तनाव (Stress)
- युवावस्था जीवन की सर्वाधिक ऊर्जावान अवस्था होती है। इस अवस्था में किसी किशोर या किशोरी को उचित-अनुचित का पूरा ज्ञान नहीं हो पाता है और यह धीरे-धीरे मानसिक तनाव का कारण बनता है। मानसिक तनाव का अर्थ है मन संबंधी द्वंद्व की स्थिति। आज का किशोर, युवावस्था में कदम रखते ही मानसिक तनाव से घिर जाता है। युवा बनना कुछ और चाहते हैं लेकिन कुछ और बनने पर विवश हो जाते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक आंकड़े पर गौर करें तो हम पाते हैं कि हर पांच में एक महिला और हर बारह में एक पुरुष मानसिक व्याधि का शिकार है। देश में लगभग 50 प्रतिशत लोग किसी न किसी गंभीर मानसिक विकार से जूझ रहे हैं। सामान्य मानसिक विकार के मामले में तो आंकड़ा और भी भयावह है। इनमें महिलाओं के आंकड़े सबसे अधिक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो भारत अवसाद के मरीजों के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार है।
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- यहां करीब 36 फीसद लोग गंभीर अवसाद से ग्रस्त हैं। आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और विफलता जैसी समस्याओं से जूझने वाले युवा अवसाद और तनाव झेलते हैं और इसके चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे में कुछ समय पहले आये एक सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं। इस शोध के मुताबिक, उत्तर भारत की बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है।
- आत्महत्या से होने वाली मौतों में 40 फीसदी अकेले चार बड़े दक्षिणी राज्यों में होती है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण में उत्तर से कहीं ज्यादा है। वहां रोजगार के भी बेहतर विकल्प रहे हैं, बावजूद इसके यहां तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या जैसे समाचार सुर्खियां बनते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सबसे बड़ी वजह अवसाद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2020 तक मौत का सबसे बड़ा कारण अपंगता व अवसाद होगा।
7. आत्महत्या करने को मजबूर युवा
- भारत में आत्महत्या युवाओं की मौत का दूसरा बड़ा कारण है। भारत उन देशों में शामिल है जहाँ आत्महत्या सर्वाधिक होती हैं। ये अध्ययन लंदन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका लांसेट में प्रकाशित हुआ है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2010 में भारत में एक लाख 90 हज़ार लोगों ने आत्महत्याएं की थीं। जबकि वैश्विक स्तर पर हर वर्ष लगभग नौ लाख लोग आत्महत्याएं करते हैं। आत्महत्या करने वालों की सबसे बड़ी संख्या चीन की हैं जहां औसतन दो लाख लोग हर वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं
- लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के मुताबिक भारत में 15 से 29 वर्ष के युवकों में आत्महत्या की वजह से होने वाली मौतें लगभग इतनी होती हैं जितनी कि सड़क दुर्घटनाओं से।
- वहीं इसी आयु वर्ग में युवतियों में आत्महत्या से होने वाली मौतें गर्भावस्था के दौरान की गड़बड़ी और बच्चों के जन्म के दौरान होने वाली मौतों जितनी होती हैं।वहीं, एचआईवी एड्स को दुनिया भर में जानलेवा बीमारी माना जाता है लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में आत्महत्या से होने वाली मौतें एचआईवी/एड्स से होने वाली मौतों की तुलना में दोगुनी हैं।’
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8. युवाओं में बढ़ती तंबाकू की लत
- युवाओं में तंबाकू की लत भी बहुत जानलेवा साबित हो रही है। हर साल दुनिया में तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण 80 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं. इन मौतों में से, 70 लाख लोगों की मौत की सीधी वजह तंबाकू है. बाकी 10 लाख लोग पैसिव स्मोकिंग (सिगरेट पीने वाले लोगों के आसपास खड़े लोग) के चलते अपनी जान गंवा देते हैं.
- भारत में लगभग 27.4 करोड़ लोग तंबाकू (सिगरेट और चबाना) का सेवन करते हैं. इसके चलते लगभग 2500 भारतीय हर दिन धूम्रपान के कारण मरते हैं. ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, देश में करीब 35% युवा सिगरेट और अन्य तरीकों से तंबाकू का सेवन करते हैं. पुरुषों में इसका उपयोग अधिक प्रचलित है जबकि 12.5% किशोर भारत में किसी न किसी रूप में तंबाकू का उपयोग करते हैं.
- आमतौर पर तम्बाकू 2 रूपों में उपलब्ध है- धूम्रपान और धूम्रपान रहित यानी तंबाकू चबाना. सिगरेट, बीड़ी, सिगार, हुक्का आदि धूम्रपान के रूप हैं. भारतीय महिलाओं में धूम्रपान रहित तंबाकू का उपयोग अधिक प्रचलित है. धुआँ रहित या चबाने योग्य तम्बाकू पान, खैनी, सूँघी, गुटका और पान मसाला आदि के रूप में उपलब्ध है.
- ये सभी रूप हानिकारक हैं. तंबाकू में 4,000 से अधिक विभिन्न रसायन पाए गए हैं. इनमें से 60 से अधिक रसायनों को कैंसर का कारण माना जाता है. इसमें मौजूद निकोटीन लोगों को तंबाकू की लत की ओर जाता है.
9. अल्कोहल में डूबते युवा
अल्कोहल के मामले में देश के युवा की आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं। बता दें कि देश में 75प्रतिशत युवा 21 साल की उम्र में शरीब पीने की लत से जूझ रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार 75 प्रतिशत युवा 21 साल की उम्र से पहले ही अल्कोलन का सेवन कर लेते हैं। 47 प्रतिशत इस उम्र तक सिगरेट भी पीने लग जाते हैं। इसके अलावा 20 प्रतिशत युवाओं ने माना है कि वह इस उम्र तक ड्रग्स भी ले चुके हैं। जबकि 30 प्रतिशत का आंकड़ा बताता है कि अब हुक्का भी इनकी आदत बन चुका है।
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10. युवाओं में बढ़ती हिंसा बनी महामारी
- आज देश ही नहीं, दुनिया में हिंसा, युद्ध एवं आक्रामकता का बोलबाला है। जब इस तरह की अमानवीय एवं क्रूर स्थितियां समग्रता से होती हैं तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। सामाजिक अलगाव और अकेलेपन से जूझ रहे व्यक्ति को हृदय रोग का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
- ठीक उस तरह जिस तरह धूम्रपान करने वाले को होता है। कहा जा सकता है कि अकेलापन धूम्रपान के बराबर घातक है। बढ़ती हिंसक मानसिकता एवं परिस्थितियों के बीच न जिन्दगी सुरक्षित रही, न इंसान का स्वास्थ्य और न जीवन-मूल्यों की विरासत।
- ऐसे 500 वयस्क लोगों के सर्वे पर आधारित है जो हिंसक अपराध के उच्च स्तर वाली जगह पर रहते हैं। तथ्य सामने आया कि हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है। इन स्थितियों में संवेदनहीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है।
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