इन राज्यों के ड्रग कंट्रोलर्स का आरोप है कि इन 27 दवाइयों में गुणवत्ता की कमी पाई गई है, इसलिए इन्हें घटिया किस्म की दवाइयों से लेबल्ड किया गया है। ड्रग कंट्रोलर्स का कहना है कि इन दवाइयों पर झूठी लेबलिंग की गई है। साथ ही इनमें गलत इंग्रीडिएंट्स होने के साथ-साथ यह डिसकलरेशन, मॉश्चर फॉर्मेशन टेस्ट फेल हुई हैं। इसके अलावा, यह दवाइयां डिसोल्युशन और डिसइन्टीग्रेशन टेस्ट में फेल हो गई हैं।
ये दवाइयां हुईं टेस्ट में फेल
एबोट इंडिया की एंटीसाइकोटिक ड्रग स्टेमेटिल और एंटीबायोटिक पेनटिड्स, अल्बेमिक फार्मा की एलथ्रोसिन, कैडिला फार्मा की माइग्रेन मेडिसिन वेसाग्रेन, ग्लेनमार्क फार्मा का कफ सीरप एस्क्रिल, जीएसके इंडिया की जेंटल, इपका लैब्स की अर्थराइटस मेडिसिन हाइड्रोएक्सक्लोरिक्वाइन (एचसीक्यूएस), सनोफि सिंथेलबो की मारियल और टेरेंट फार्मा की हाइपरटेंशन ड्रग डिलजेम जांच के घेरे मे है। इसमें से आठ ब्रांड्स की कंपनियां इस कैटेगरी में दिग्गज मानी जाती हैं। फार्मा कंपनियां समान मोलिक्यूल की दवाइयां अलग ब्रांड के नाम से बेचती हैं। इनके मार्केट शेयर 47 प्रतिशत से लेकर 92 प्रतिशत तक हैं।