एएफपी मार्कर स्क्रीनिंग
इसे मेटरनल सीरम एएफपी भी कहा जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस ब्लड टेस्ट के जरिए ब्लड में एएफपी के स्तर का आंकलन किया जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटीन है, जिसे भ्रूण का लिवर बनाता है। गर्भाशय में यह बच्चे के चारों तरफ होता है। इसे एम्निओटिक फ्लूड के नाम से जाना जाता है। यह प्लेसेंटा को पार करके ब्लड में मिल जाता है। वहीं, ब्लड में इसका असामान्य स्तर कुछ समस्याओं का संकेत होता है।
- ड्यू डेट की गलत गणना क्योंकि पूरी प्रेग्नेंसी में इसका स्तर अलग-अलग होता है।
- भ्रूण के पेट की वॉल में विषमता का संकेत।
- डाउन सिंड्रोम या अन्य गुणसूत्रीय असमानताएं।
- न्यूरल ट्यूब में विसंगति होना।
- जुड़वा बच्चे (इस स्थिति में एक भ्रूण प्रोटीन का ज्यादा उत्पादन कर रहा होता है।)
प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट : एस्ट्रिऑल
यह एक हार्मोन होता है, जिसका उत्पादन प्लेसेंटा करता है। भ्रूण की सेहत का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट या यूरिन टेस्ट के जरिए इसके स्तर का आंकलन किया जाता है।
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लेवल 2 अल्ट्रासाउंड
लेवल 2 अल्ट्रासाउंड स्कैन एक इमेजिंग टेस्ट है जो बच्चे के संपूर्ण विकास के मूल्यांकन करने में मदद करता है। यह गर्भावस्था के दूसरे तिमाही (13 वें-27 वें सप्ताह) में किया जाता है।
इस टेस्ट से बढ़ते भ्रूण के बारे में गहन जानकारी मिलती है जिसमें अंगों का आकार, गर्भ में पल रहे शिशु की स्थिति, एम्नियोटिक तरल पदार्थ की मात्रा, बच्चे में कोई विकृति या कोई अन्य स्थिति शामिल है।
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तीसरे ट्राइमेस्टर में प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट
यह अवधि मां और शिशु दोनों के लिए ही बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान भ्रूण की नियमित निगरानी बेहद ही जरूरी होती है। शिशु की थैली में कितना एम्निओटिक फ्लूड है, यह देखना भी आवश्यक होता है। इसका पता अल्ट्रासाउंड से लगाया जाता है।
इन टेस्ट के अतिरिक्त, बायोफिजिकल प्रोफाइल टेस्ट (biophysical profile test) भी किया जाता है। इससे गर्भ में बच्चे की स्थिति का पता लगाया जाता है। यदि बच्चा ब्रीच पुजिशन में है, तो उसके लिए तत्काल उपाय किए जाते हैं। इसके अलावा गर्भ में प्लेसेंटा की लंबाई या प्लेसेंटा प्रीविया की जांच के लिए भी प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट किया जाता है। अगर आप प्रेग्नेंट हैं तो डॉक्टर से इन टेस्ट के बारे में जानकारी मांगे क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान टेस्ट करवाना आपके शिशु की सेहत और विकास के लिए जरूरी होता है।