दिवाली पर वायु प्रदूषण बढ़ने का कैसे लगाएंगे पता
डॉक्टर मानते हैं कि जहां भी हवा में पीएम लेवल 400 से अधिक है उन जगहों पर न जाएं। अगर आप ऐसी जगह रहते हैं, जहां इसका स्तर बढ़ा हुआ है, तो घर से बाहर निकलने से बचें। हवा में मौजूद सूक्ष्म कण, जिन्हें फाइन पार्टिक्युलेट मैटर (Fine particulate matter) कहते हैं। हवा में इनका स्तर बढ़ने से ही वायु प्रदूषण बढ़ता है। अगर हवा में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ा हुआ है, तो नीचे बताई गईं बातों का ध्यान रखें।
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वायु प्रदूषण बढ़ जाने पर इन बातों का रखें ख्याल
- खुले में एक्सरसाइज न करें
- वॉक पर भी जानें से बचें या फिर घर पर ही ट्रेडमिल पर वॉक करें
- जिन लोगों को अस्थमा की प्रॉब्लम है, वे डॉक्टर से संपर्क कर अपनी डोज बढ़ाने के लिए सलाह कर सकते हैं
- मुंह पर कपड़ा बांधकर या मास्क लगाकर घर से निकलें
- बाहर कुछ भी खाने से बचें
- दूषित पानी न पीएं
- घर में या घर से बाहर कहीं भी स्मोकिंग करने से बचें
- घर में कारपेट है, तो उसे हटा दें। उसमें भी बहुत डस्ट होती है
- एयर फ्रेशनर्स का कम से कम इस्तेमाल करें
- बेडशीट्स को हर सप्ताह गर्म पानी में धोएं
- सुनिश्चित कर लें बाथरूम और किचन में एग्जॉस्ट फैन ठीक से काम कर रहे हैं
- घर के आस-पास अधिक से अधिक पौधें लगाएं
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बच्चों का रखें खास ख्याल
एक रिसर्च में दावा किया गया कि प्रदूषण के कारण बच्चों में गठिया या इससे जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इसमें दर्द, सूजन और ल्यूपस आदि शामिल हैं। सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसिस (systemic lupus erythematosus) शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे कि किडनी, दिल और मस्तिष्क आदि को नुकसान पहुंचा सकता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, प्रदूषण ल्यूपस की समस्या का कारण बन सकता है। रिसर्च में ये भी पाया गया कि वायु प्रदूषण के कारण न सिर्फ पुराने फेफड़ों के रोग, हार्ट से जुड़ी समस्याएं, कैंसर के मामले बढ़ते हैं, बल्कि यह बचपन में ही गठिया रोग होने की आशंका को भी बढ़ा देता है। वायु प्रदूषण न केवल कई स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। बल्कि, प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से मां की कोख में मौजूद शिशुओं पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य जर्नल (Environmental Health Perspectives) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान दूषित हवा में मौजूद नुकसानदायक पदार्थों के संपर्क में आने वाली प्रेग्नेंट महिला की डिलिवरी के बाद होने वाले बच्चों में तनाव से लड़ने की क्षमता कम हो सकती है। इसके अलवा इससे हृदय की दर (cardiovascular), रेस्पिरेट्री(respiratory) और डाइजेस्टिव सिस्टम (digestive system) के कार्य करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। दिल और दिमाग का तनावपूर्ण अनुभवों के लिए प्रतिक्रिया देना जरुरी है। इसके अलावा यह जीवन भर के तनाव के और दूसरे भावनात्मक मामलों के लिए भी जरुरी हैं।
हार्ट रेट में बदलाव होने से इन शिशुओं को जीवन में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वायु प्रदूषण की वजह से हार्ट रेट में बदलाव के नकारात्मक प्रभावों को पहले भी बच्चों, किशोरों और वयस्कों पर हुए अध्ययनों में देखा जा चुका है। इन अध्ययनों में हृदय रोग, अस्थमा, एलर्जी और साइकोलॉजी या व्यवहार संबंधी परेशानियां पाई गईं।