गर्ल चाइल्ड डे पर इन माओं ने जाहिर की अपनी भावनाएं
सुरक्षा को लेकर मन रहता है विचलित
टीवी एक्ट्रेस और मुंबई निवासी सोनिया श्रीवास्तव से जब हैलो स्वास्थ्य ने गर्ल चाइल्ड डे पर उनकी बेटी को लेकर बात की तो सोनिया ने कहा कि मेरी बेटी अभी तीन साल की हो चुकी है। जब मैं मां बनने वाली थी तो मेरी ख्वाहिश थी कि मैं एक बेटी की मां बनूं। भगवान ने मेरी इच्छा पूरी कर दी। भले ही मेरी बेटी अभी छोटी है, लेकिन वो मेरी दोस्त है। जब भी मैं परेशान होती हूं, मुझे उससे स्ट्रेंथ मिलती है। मां बनने के बाद मैंने उसे पूरा समय दिया, अब जब मैं अपने काम पर वापस लौटी हूं, तो मेरी बेटी मुझे पूरा सपोर्ट कर रही है। इस कारण से ही मैं दोबारा एक्टिंग करियर में एंट्री कर रही हूं। आपको बता दें कि सोनिया श्रीवास्तव स्टार प्लस में आने वाले शो ‘दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ ‘ में नजर आने वाली हैं।
सोनिया आगे कहती हैं कि बेटी के जन्म ने मुझे पूरा कर दिया है। लेकिन बेटी की सुरक्षा को लेकर मन हमेशा विचलित रहता है। हाल ही में हुए हैदराबाद कांड के बाद मुझे बेटी को लेकर असुरक्षा की भावना घेरे हुए है। समाज में बेटिया सुरक्षित नहीं हैं। ये परेशानी सिर्फ मेरी नहीं है, बल्कि हर उस मां की है, जिसके घर में बेटी है। आज के समय में और आने वाले समय में बेटियों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। हमे इस बारे में पहल करनी चाहिए।
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शरीर का हिस्सा है मेरा, मेरी ही तरह मजबूत है
लखनऊ की रहने वाली आकांक्षा अवस्थी की सात साल की बेटी है। जब हैलो स्वास्थ्य ने गर्ल चाइल्ड डे पर उनके विचार जानने चाहे तो उन्होंने बहुत ही उत्साह के साथ जवाब दिया। अकाक्षां कहती हैं कि मेरी बेटी मेरे शरीर का हिस्सा है। मेरे माता-पिता ने मुझे कभी ये एहसास नहीं दिलाया कि मैं किसी से कम हूं। बस यहीं मजबूती मैं अपनी बेटी को देना चाहती हूं। मैं गर्ल चाइल्ड डे पर सभी पेरेंट्स से अपील करना चाहूंगी कि बेटियों को आजादी देते समय डरे नहीं, अगर आपको बेटी पर विश्वास है तो वो कभी भी आपका विश्वास नहीं तोड़ेगी।
पढ़ेगी तभी तो आगे बढ़ेगी बेटी
हम सब जानते हैं कि शिक्षा हीआगे बढ़ने का माध्यम है, तो बेटियों को कम पढ़ाने और जल्दी शादी करने की सोच को भी बदलना चाहिए। जब बेटी पढ़ेगी तभी तो आगे बढ़ेगी, ये कहना है बांद्रा की रहने वाली रीना अवस्थी का। रीना की पांच साल की बेटी है। रीना का कहना है भले ही आज के दिन गर्ल चाइल्ड डे देश भर में सेलीब्रेट किया जा रहा हो, लेकिन देश के कई हिस्से ऐसे भी हैं, जहां लड़कियों की सुरक्षा बहुत बड़ा मुद्दा है। भले ही बच्ची छोटी है, लेकिन घर से कुछ देर के लिए भी बाहर जाती है तो डर लगता है। मैं उसे खूब पढ़ाना चाहती हूं, लेकिन असुरक्षा की भावना असहज कर देती है। गर्ल चाइल्ड डे पर देश के हर पुरुष को बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूर एक बार सोचना चाहिए क्योंकि ये हर व्यक्ति के घर से जुड़ा मामला है।
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दिमाग नहीं दिल से सोचती हैं बेटियां
मुंबई की रहने वाली राइटर हेमा धौलाखंडी तीन साल की बेटी की मां हैं। हेमा कहती हैं कि बेटी के जीवन में आने के बाद मुझे हर पल एक अलग तरह की खुशी का एहसास होता है। बेटी के आने की खुशी मेरे दिल से जुड़ी हुई है। भले ही हमारे समाज में बेटे के पैदा होने पर ज्यादा खुशियां मनाई जाती हो, लेकिन बेटे की खुशी सामाजिक ज्यादा महसूस होती है।
समाज में क्या हो रहा है, हम सब देख रहे हैं। मैं ये नहीं कहती हूं कि सब लड़के एक जैसे होते हैं लेकिन हमारे आसपास ऐसे बहुत से मामले देखने को मिलते हैं जहां बेटे का लगाव एक समय बाद माता-पिता से कम हो जाता है। बेटियों के मामले में ऐसा कम ही होता है। अगर एक दिन भी बेटी घर पर न हो तो पूरा घर सुनसान सा हो जाता है। सुबह से रात तक चिड़िया की चहकती रहती है। मेरे जीवन को पूरा करने में बेटी का बहुत बड़ा योगदान है।
गर्ल चाइल्ड के राइट्स, उनकी शिक्षा और स्वतन्त्रता के लिए सभी लोगों को आगे आना चाहिए। ये सिर्फ एक दिन की पहल नहीं है। स्वस्थ बच्ची ही स्वस्थ महिला बनती है, जो आगे चलकर स्वस्थ देश का निर्माण करती है।