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गर्ल चाइल्ड डे : लड़कियों का स्वास्थ्य है अहम, कुपोषण के कारण हर साल होती हैं कई मौतें

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 13/01/2022

    गर्ल चाइल्ड डे : लड़कियों का स्वास्थ्य है अहम, कुपोषण के कारण हर साल होती हैं कई मौतें

    24 जनवरी को देशभर में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे (Girl child day) सेलीब्रेट किया जाता है। नैशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाने का मकसद लोगों को लड़कियों के अधिकारों के बारे में अवेयर करवाना है। अधिकारों के साथ ही अब लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर भी जागरूकता फैलाई जा रही है। इसके मुताबिक उन्हें उचित  पोषण मिलना भी बहुत जरूरी है। एक स्वस्थ लड़की आगे चलकर एक स्वस्थ मां बनती है। ये कहना गलत नहीं होगा कि एक स्वस्थ समाज का निर्माण एक स्वस्थ महिला ही कर सकती है। लेकिन हमारे देश में महिलाओं का स्वास्थ्य खतरे में है। सही पोषण न मिल पाने के कारण मृत्युदर में बढ़त देखने को मिल रही है।अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही लड़कियों को लड़कों के समान बराबर का अधिकार, समान शिक्षा का अधिकार, अपने सपनों को जीने का अधिकार आदि को लेकर हमेशा से समाज में अलग नियम और भेदभाव का सामना करना पड़ा है। बराबरी के हक के लिए ही गर्ल चाइल्ड डे सेलीब्रेट किया जाता है।

    गर्ल चाइल्ड डे (Girl child day) की जरूरत क्यों?

    हो सकता है कि आपको लड़की होकर भी अपनी अधिकारों के बारे में जानकारी न हो, लेकिन अपने हक के बारे में जानना सभी लड़कियों का अधिकार है। चाहे बात लड़कियों की सुरक्षा की हो, सम्मान की हो, समान रूप से पोषण की हो या फिर शादी की, इन सभी बातों को कई मायनों में केवल शब्दों के रूप में ही प्रयोग किया जाता रहा है। नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के दिन गर्ल चाइल्ड के साथ हो रहे भेदभावों को दूर करने के लिए लोगों में अवेयरनेस फैलाई जाती है।

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    गर्ल चाइल्ड डे के बारे में जानकारी (Information about Girl Child Day)

    गर्ल चाइल्ड डे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से हर साल 24 जनवरी को देश भर में सेलीब्रेट किया जाता है। गर्ल चाइल्ड डे की शुरुआत साल 2008 से हुई थी। लड़कियों को भविष्य के लिए सशक्त करना और उन्हें सभी प्रकार के अधिकारों के बारे में जानकारी देकर अधिकारों के लिए लड़ना सिखाना इस दिन का प्रमुख उद्देश्य है। इस दिन के महत्व को देखते हुए भारत सरकार की ओर से देश भर में लड़कियों की शिक्षा और उनके विकास से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है।

    हमारे देश में फीमेल लिटरेसी रेट अभी भी 53.87 प्रतिशत है और एक तिहाई यंग लड़कियां कुपोषण का शिकार हैं। वहीं रिप्रोडक्टिव एज ग्रुप की महिलाओं को एनिमिया के साथ ही अन्य बीमारियां हैं। जानकारी का अभाव और लिटरेसी की कमी के कारण परिस्थितियां अधिक बुरी होती जा रही हैं। इन समस्याओं के निवारण के लिए ही एक खास दिन तय किया गया है, जिसे हम सब नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के रूप में मनाते हैं।

    गर्ल चाइल्ड डे (Girl child day) पर महिलाओं की हेल्थ के बारे में

    भारत देश भले ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहा हो, लेकिन ये बात हैरान कर देती है कि हर साल कई महिलाओं कि सिर्फ इसलिए मृत्यु हो जाती है क्योंकि उनको सही पोषण और उचित सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। यूनिसेफ के प्रमुख प्रकाशन द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट के अनुसार 78,000 महिलाओं को प्रेग्नेंसी से लेकर डिलिवरी के बीच तक मौत का सामना करना पड़ता है। एक प्रेग्नेंट महिला की मौत का मतलब होता है कि दो लोगों की मौत हो जाना।

    महिलाओं के स्वास्थ्य पर अगर बचपन से ही ध्यान दिया जाए तो शायद ऐसी भयावह स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए मां का स्वस्थ होना बहुत जरूरी होती है।

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    गर्ल चाइल्ड डे पर ये जानना है जरूरी

    गर्ल चाइल्ड के लिए 1991-2000 के दौरान नेशनल एक्शन प्लान बनाया गया था। इस प्लान के तहत ये बात कही गई थी कि महिलाओं और गर्ल चाइल्ड को खुद ही अपने बारे में सोचना होगा और लोगों का नजरिया बदलना होगा। लड़कियों ने कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। भारत में लड़कियों के जन्म के बाद उनको कई चीजों से अलग कर दिया जाता है। लड़का न पैदा करने की स्थिति में महिलाओं को ही दोषी माना जाता है। जबकि सच तो ये है कि लड़का पैदा होगा या फिर लड़की, ये पुरुष का स्पर्म तय करता है, न कि महिला।

    सही स्वास्थ्य सुविधाएं न मिल पाने के कारण कम उम्र में ही महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। देश भर में केरला ही ऐसा राज्य है जहां का सेक्स रेशियो सही है। ज्यादातर राज्यों में सेक्स रेशियो यानी लिंग अनुपात में भारी अंतर देखने मिलता है। ज्यादातर पूर्वी और उत्तरी राज्यों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है। वहीं 100 जिले की महिलाएं निरक्षर यानी बिल्कुल भी पढ़ी लिखी नहीं हैं। महिलाओं को स्कूल इनरॉलमेंट पुरुषों की अपेक्षा 50 % तक कम है।

    गर्ल चाइल्ड डे पर जाने मृत्यु दर (Death rate) है कितनी?

    सैंपल रजिस्ट्रेशन रेट (IMR) के अनुसार, 2016 में 34 में से केवल एक गर्ल चाइल्ट के जीवित बच जाने की संभावना थी। यानी 34 लड़कियां पैदा होने के बाद कुछ ही समय बाद केवल एक ही लड़की जिंदा बची, बाकी सबकी मौत हो गई। वहीं 2017 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (SRS) के अनुसार, 29 राज्यों में से केवल पांच राज्यों में एक गर्ल चाइल्ड के जीवित रहने की अधिक संभावना थी। ये वाकई भयावह रिजल्ट हैं। यानी गर्ल चाइल्ड की मृत्यु दर अधिक है। सैंपल रजिस्ट्रेशन रेट के अनुसार मरने वाली लड़कियों की उम्र एक साल से भी कम थी।

    लड़कियों की मृत्यु दर (Death rate of girls)

    ज्यादातर सभी राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की मृत्युदर अधिक पाई गई है। कुछ राज्यों में जैसे कि छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में गर्ल चाइल्ड की मृत्युदर अधिक पाई गई। ये सभी रिपोर्ट्स तीन साल के सर्वे पर बेस्ड है। साल 2015 से 2017 तक में सर्वे किया गया था। 0-4 वर्ष तक की गर्ल चाइल्ड की मृत्यु दर 8.9 थी, वही भारत के ग्रामीण इलाको में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मृत्युदर 10.0 पाई गई। वहीं शहरी क्षेत्रों में मृत्युदर यानी गर्ल चाइल्ड मोरेलिटी 6.0 थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि 19.8% गर्ल चाइल्स की डेथ अप्रशिक्षित अधिकारियों की वजह से हुई।

    गर्ल चाइल्ड डे पर इन माओं ने जाहिर की अपनी भावनाएं

    सुरक्षा को लेकर मन रहता है विचलित

    टीवी एक्ट्रेस और मुंबई निवासी सोनिया श्रीवास्तव से जब हैलो स्वास्थ्य ने गर्ल चाइल्ड डे पर उनकी बेटी को लेकर बात की तो सोनिया ने कहा कि मेरी बेटी अभी तीन साल की हो चुकी है। जब मैं मां बनने वाली थी तो मेरी ख्वाहिश थी कि मैं एक बेटी की मां बनूं। भगवान ने मेरी इच्छा पूरी कर दी। भले ही मेरी बेटी अभी छोटी है, लेकिन वो मेरी दोस्त है। जब भी मैं परेशान होती हूं, मुझे उससे स्ट्रेंथ मिलती है। मां बनने के बाद मैंने उसे पूरा समय दिया, अब जब मैं अपने काम पर वापस लौटी हूं, तो मेरी बेटी मुझे पूरा सपोर्ट कर रही है। इस कारण से ही मैं दोबारा एक्टिंग करियर में एंट्री कर रही हूं। आपको बता दें कि सोनिया श्रीवास्तव स्टार प्लस में आने वाले शो ‘दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ ‘ में नजर आने वाली हैं।

    सोनिया आगे कहती हैं कि बेटी के जन्म ने मुझे पूरा कर दिया है। लेकिन बेटी की सुरक्षा को लेकर मन हमेशा विचलित रहता है। हाल ही में हुए हैदराबाद कांड के बाद मुझे बेटी को लेकर असुरक्षा की भावना घेरे हुए है। समाज में बेटिया सुरक्षित नहीं हैं। ये परेशानी सिर्फ मेरी नहीं है, बल्कि हर उस मां की है, जिसके घर में बेटी है। आज के समय में और आने वाले समय में बेटियों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। हमे इस बारे में पहल करनी चाहिए।

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    शरीर का हिस्सा है मेरा, मेरी ही तरह मजबूत है

    लखनऊ की रहने वाली आकांक्षा अवस्थी की सात साल की बेटी है। जब हैलो स्वास्थ्य ने गर्ल चाइल्ड डे पर उनके विचार जानने चाहे तो उन्होंने बहुत ही उत्साह के साथ जवाब दिया। अकाक्षां कहती हैं कि मेरी बेटी मेरे शरीर का हिस्सा है। मेरे माता-पिता ने मुझे कभी ये एहसास नहीं दिलाया कि मैं किसी से कम हूं। बस यहीं मजबूती मैं अपनी बेटी को देना चाहती हूं। मैं गर्ल चाइल्ड डे पर सभी पेरेंट्स से अपील करना चाहूंगी कि बेटियों को आजादी देते समय डरे नहीं, अगर आपको बेटी पर विश्वास है तो वो कभी भी आपका विश्वास नहीं तोड़ेगी।

    पढ़ेगी तभी तो आगे बढ़ेगी बेटी

    हम सब जानते हैं कि शिक्षा हीआगे बढ़ने का माध्यम है, तो बेटियों को कम पढ़ाने और जल्दी शादी करने की सोच को भी बदलना चाहिए। जब बेटी पढ़ेगी तभी तो आगे बढ़ेगी, ये कहना है बांद्रा की रहने वाली रीना अवस्थी का। रीना की पांच साल की बेटी है। रीना का कहना है भले ही आज के दिन गर्ल चाइल्ड डे देश भर में सेलीब्रेट किया जा रहा हो, लेकिन देश के कई हिस्से ऐसे भी हैं, जहां लड़कियों की सुरक्षा बहुत बड़ा मुद्दा है। भले ही बच्ची छोटी है, लेकिन घर से कुछ देर के लिए भी बाहर जाती है तो डर लगता है। मैं उसे खूब पढ़ाना चाहती हूं, लेकिन असुरक्षा की भावना असहज कर देती है। गर्ल चाइल्ड डे पर देश के हर पुरुष को बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूर एक बार सोचना चाहिए क्योंकि ये हर व्यक्ति के घर से जुड़ा मामला है।

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    दिमाग नहीं दिल से सोचती हैं बेटियां

    मुंबई की रहने वाली राइटर हेमा धौलाखंडी तीन साल की बेटी की मां हैं। हेमा कहती हैं कि बेटी के जीवन में आने के बाद मुझे हर पल एक अलग तरह की खुशी का एहसास होता है। बेटी के आने की खुशी मेरे दिल से जुड़ी हुई है। भले ही हमारे समाज में बेटे के पैदा होने पर ज्यादा खुशियां मनाई जाती हो, लेकिन बेटे की खुशी सामाजिक ज्यादा महसूस होती है।

    समाज में क्या हो रहा है, हम सब देख रहे हैं। मैं ये नहीं कहती हूं कि सब लड़के एक जैसे होते हैं लेकिन हमारे आसपास ऐसे बहुत से मामले देखने को मिलते हैं जहां बेटे का लगाव एक समय बाद माता-पिता से कम हो जाता है। बेटियों के मामले में ऐसा कम ही होता है। अगर एक दिन भी बेटी घर पर न हो तो पूरा घर सुनसान सा हो जाता है। सुबह से रात तक चिड़िया की चहकती रहती है। मेरे जीवन को पूरा करने में बेटी का बहुत बड़ा योगदान है।

    गर्ल चाइल्ड के राइट्स, उनकी शिक्षा और स्वतन्त्रता के लिए सभी लोगों को आगे आना चाहिए। ये सिर्फ एक दिन की पहल नहीं है। स्वस्थ बच्ची ही स्वस्थ महिला बनती है, जो आगे चलकर स्वस्थ देश का निर्माण करती है।

    डिस्क्लेमर

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