क्वाशियोरकर का निदान (kwashiorkor diagnosis)
बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक परीक्षण के आधार पर इसका निदान किया जाता है। डॉक्टर बच्चे में त्वचा के घाव या रैश, पैर, टखनो, चेहरे और बांह में एडिमा की जांच करता है। इसके अलावा वह बच्चे की लंबाई भी मापता है जिससे पता चलता है कि क्या वह उम्र के हिसाब से है या नहीं।
कुछ मामलों में डॉक्टर इलेक्ट्रोलाइट लेवल, क्रिएटिनिन, कुल प्रोटीन, और प्रीएलबुमिन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट भी करता है। हालांकि आमतौर पर बच्चे के शारीरिक परीक्षण और डायट के विवरण के आधार पर ही डॉक्टर क्वाशियोरकर का पता लगा लेते हैं। इस विकार से पीड़ित बच्चों का ब्लड शुगर लेवल भी आमतौर पर कम रहता है, इसके अलावा उनमें प्रोटीन का स्तर, सोडियम, जिंक और मैगनीशियम का लेवल भी कम होता है।
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क्वाशियोरकर vs मेरास्मस (Kwashiorkor vs. marasmus)
गंभीर या तीव्र कुपोषण (acute malnutrition) 3 प्रकार के होते हैं-
मेरास्मस (Marasmus)- इसमें पोषक तत्वों और कैलोरी की कमी के कारण बहुत अधिक वजन घट जाता है और मांसपेशियों को बहुत नुकसान पहुंचता है।
क्वाशियोरकर (Kwashiorkor)- प्रोटीन की कमी की वजह से वाटर रिटेंशन होता है जिससे सूजन या एडिमा हो जाता है।
मेरास्मिक-क्वाशियोरकर (Marasmic-kwashiorkor)- इसमें मांसपेशियों को नुकसान पहुंचने के साथ ही अतिरिक्त एडिमा हो जाता है।
यह तीनों ही गंभीर कुपोषण की स्थिति है जिसमें तुरंत उपचार की जरूरत होती है।
क्वाशियोरकर का उपचार (Kwashiorkor treatments)
प्रोटीन मालन्यूट्रिशन हालांकि कुपोषण से ही संबंधित है, लेकिन सिर्फ बच्चे/व्यस्कों के खाना खिलाना से ही से पोषक तत्वों की कमी दूर नहीं हो जाएगा और न ही स्थिति में सुधार होगा।
यदि लंबे समय तक बच्चा पर्याप्त प्रोटीन और पोषक तत्वों के बिना रहता है, तो फिर उसे भोजन में लेना मुश्किल हो सकता है यानी बच्चे का शरीर उसे स्वीकारेगा नहीं। इसलिए जरूरी है कि रीफीडिंग सिंड्रोम (refeeding syndrome) से बचने के लिए बच्चे में सावधानीपूर्वक नई खाने की आदतें डाली जाए।
रीफीडिंग सिंड्रोम में इलेक्ट्रोलाइट और फ्लूड (तरल) तेजी से शिफ्ट होते हैं जो कुपोषित बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
क्वाशियोरकर से पीड़ित बहुत से बच्चों को लैक्टोज (lactose) से एलर्जी हो जाती है, ऐसे में उन्हें दूध और दूध से बने पदार्थों से दूर रखना पड़ता है जो प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं या फिर उन्हें एंजाइमस दिया जाता है ताकि उनका शरीर दूध को पचा सके।
इस विकार का इलाज करते समय डॉक्टर पीड़ित की डायट में सबसे पहले कार्बोहाइड्रेट्स शामिल करता है, फिर प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स। सुरक्षित तरीके से नए फूड शामिल करने की इस प्रक्रिया में हफ्तों का समय लग सकता है।
इसके अतिरिक्त यदि बच्चे की हालत बहुत गंभीर है और वह सदमें (shock) में है और उसका ब्लड प्रेशर कम व हार्ट रेट ज्यादा है तो ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए पहले उसे दवा दी जाएगी।
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क्वाशियोरकर से होने वाली जटिलताएं (Kwashiorkor complications)

यह कुपोषण का अत्यंत गंभीर रूप है। बिना उपचार के इसकी वजह से कई तरह की जटिलताएं या स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं-
- कार्डियोवस्कुलर समस्या (cardiovascular problems)
- यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (urinary tract infections)
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रॉब्लम्स (gastrointestinal problems)
- लिवर का बड़ा होना जिसे हेपेटोमेगली (hepatomegaly)कहते हैं
- इम्यून सिस्टम काम करना बंद कर देता है
- इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन (electrolyte imbalances)
कम उम्र में ही कुपोषित होने के कारण क्वाशियोरकर से पीड़ित बच्चों की लंबाई उम्र के हिसाब से बढ़ नहीं पाती है। साथ ही यह विकार व्यक्ति को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है जो इम्यून सिस्टम को कमजोर करके गंभीर स्थिति उत्पन्न कर देता है। जितन जल्दी इसका निदान करके उपचार शुरू कर दिया जाए पीड़ित के ठीक होने की संभावना उतनी अधिक बढ़ जाती है।
क्वाशियोरकर से बचाव
प्रोटीन की कमी (protein deficiency) से होने वाले इस गंभीर कुपोषण से बचने का तरीका है कि बच्चों की डायट में पर्याप्त कैलोरी (calorie) और प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाए। प्रोटीन के कुछ स्रोत हैं-
- सीफूड
- अंडे
- लीन मीट
- बीन्स
- मटर
- नट्स
- बीज
क्वाशियोरकर (kwashiorkor) आमतौर पर बच्चों में होने वाला गंभीर कुपोषण का एक प्रकार है जो प्रोटीन की कमी से होता है। प्रोटीन शरीर में तरल पदार्थों का सही संतुलन और वितरण बनाए रखने के लिए जरूरी है और जब प्रोटीन की कमी से इसमें गड़बड़ी होती है तो इसका नतीजा कुपोषित बच्चे के पेट और पैरों में सूजन के रूप में दिखता है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह बहुत ही गंभीर स्थिति है, लेकिन जल्दी निदान और सही उपचार से पीड़ित व्यक्ति के ठीक होने की संभावना अधिक होती है।