यह उन इलाकों में भी आम है जहां भोजन की आपूर्ति की कमी है और पोषक तत्वों के संबंध में लोगों में जानकारी का अभाव है। अकाल, बाढ़, गरीबी से प्रभावित क्षेत्रों में भी यह विकार अधिक देखा गया है।
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क्वाशियोरकर के लक्षण (Symptoms of kwashiorkor)
प्रोटीन की कमी से होने वाले इस कुपोषण में बच्चे के शरीर में बहुत कम बॉडी फैट होता है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है। इस विकार में बच्चे का शरीर खासतौर पर पेट फूला हुआ दिखता है, लेकिन यह सूजन फ्लूड तरल पदार्थों के कारण होता है, ऐसा फैट और मांसपेशियों की वजह से नहीं होता है। इसके लक्षणों में शामिल है-
- भूख न लगना
- बालों के रंग में बदलाव, यह पीला और ऑरेंज दिख सकता है
- डिहाइड्रेशन
- एडिमा या सूजन, खासतौर पर यह पैरों में होता है और वहां की स्किन दबाने पर उंगली का निशान आ जाता है
- मसल्स और फैट टिशू की हानि
- सुस्ती और चिड़चिड़ापन (lethargy and irritability)
- डर्मेटोसिस या त्वचा के घाव जो फटे, खुरदरे दिखते हैं
- बार-बार स्किन इंफेक्शन होना या घाव का जल्दी ठीक न होना।
- फटे नाखून
- लंबाई न बढ़ना
- पेट फूलना
इस विकार से पीड़ित बच्चों का बार-बार इंफेक्शन का शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए लंबे समय तक उपचार न कराने पर यह जानलेवा साबित हो सकता है।
क्वाशियोरकर का निदान (kwashiorkor diagnosis)
बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक परीक्षण के आधार पर इसका निदान किया जाता है। डॉक्टर बच्चे में त्वचा के घाव या रैश, पैर, टखनो, चेहरे और बांह में एडिमा की जांच करता है। इसके अलावा वह बच्चे की लंबाई भी मापता है जिससे पता चलता है कि क्या वह उम्र के हिसाब से है या नहीं।
कुछ मामलों में डॉक्टर इलेक्ट्रोलाइट लेवल, क्रिएटिनिन, कुल प्रोटीन, और प्रीएलबुमिन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट भी करता है। हालांकि आमतौर पर बच्चे के शारीरिक परीक्षण और डायट के विवरण के आधार पर ही डॉक्टर क्वाशियोरकर का पता लगा लेते हैं। इस विकार से पीड़ित बच्चों का ब्लड शुगर लेवल भी आमतौर पर कम रहता है, इसके अलावा उनमें प्रोटीन का स्तर, सोडियम, जिंक और मैगनीशियम का लेवल भी कम होता है।