नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) का मानना था कि, ‘हमारे बच्चे वो बुनियाद हैं, जिसपर हमारा भविष्य बनेगा। यह किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी संपत्ति हैं।‘ वहीं, अमेरिकी सिंगर व्हिटनी ह्यूस्टन (Whitney Houston) का कहना था कि, ‘मेरा मानना है कि बच्चे हमारा भविष्य हैं। उन्हें बेहतर तरीके से शिक्षित करना चाहिए और नेतृत्व करने देना चाहिए।’ महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के भी यही विचार थे, लेकिन भारत में असलियत इन विचारों से काफी हद तक अलग रही और कह सकते हैं कि, काफी हद तक कड़वी भी रही। यह कड़वाहट थी, चाइल्ड लेबर (Child Labour in India) यानी बाल श्रम और चाइल्ड लेबर के दुष्प्रभाव के रूप में बच्चों का बर्बाद होता बचपन।
चाइल्ड लेबर के दुष्प्रभाव – भारत में हालात
आज हम चाइल्ड लेबर की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हर साल 12 जून को वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (World Day Against Child Labour) मनाया जाता है। यूनाइटेड नेशन के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 21 करोड़ 80 लाख बच्चे बाल श्रम के शिकार हैं, जिनमें से अधिकतर फुल-टाइम काम कर रहे हैं। भारत में 2011 की जनगणना के मुताबिक, 5 से 14 साल की उम्र तक के करीब 43 लाख 53 हजार बच्चे आज भी चाइल्ड लेबर के दुष्प्रभाव को झेल रहे हैं। हालांकि, यह स्थिति 21वीं सदी की शुरुआत से काफी संतोषजनक है, क्योंकि 2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में 25.2 करोड़ में से करीब 1.26 करोड़ बच्चे बाल श्रम कर रहे थे, वहीं 2004-05 में हुए नेशनल सर्वे में यह आंकड़ा 90.75 लाख था। भारत सरकार ने देश में बच्चों के स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए चाइल्ड लेबर का जड़ से खत्म करने के लिए कई प्रभावशाली कदम उठाए।
यह भी पढ़ें- बेबी हार्ट मर्मर के क्या लक्षण होते हैं? कैसे करें देखभाल
बाल श्रम क्या है? (What is Child Labour?)
यूएन द्वारा दी गई परिभाषा के मुताबिक, चाइल्ड लेबर वो कार्य है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए किसी बच्चे द्वारा किया जाता है। यह कार्य या तो बच्चे को स्कूली शिक्षा से वंचित कर देता है या एकसाथ स्कूली शिक्षा और काम के बोझ को झेलने पर मजबूर कर देता है। इससे बच्चे के शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक विकास में बाधा पड़ती है।