– सूजन
– बुखार
– स्टिफनेस व कठोरता
– रोजमर्रा के काम को करने में परेशानी का सामना करना जैसे, वाकिंग, ड्रेसिंग और खेलने में दिक्कत झेलना
जीवन के दो स्टेज में ही सबसे ज्यादा केयर की जरूरत होती है, पहला बचपन व दूसरा बुढ़ापा है। ऐसे में यदि आपके बच्चों को इस प्रकार के लक्षण दिखाई दे डॉक्टरी सलाह लेने के साथ बच्चों की देखभाल करनी चाहिए।
इन कारणों से हो सकता है बच्चों में अर्थराइटिस
बता दें कि अभी तक बच्चों में
अर्थराइटिस की बीमारी होने के सही सही कारणों का पता नहीं चल पाया है। एक्सपर्ट बताते हैं कि चाइल्डहुड अर्थराइटिस की बीमारी इसलिए होती है क्योंकि कुछ बच्चों का इम्युन सिस्टम सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता है, इस कारण उनके जोड़ों में दर्द व जलन की समस्या होने के साथ शरीर के अन्य हिस्सों में परेशानी हो सकती है।
बच्चों में अर्थराइटिस का ऐसे किया जाता है डायग्नोस
चाइल्डहुड अर्थराइटिस और बच्चों में अर्थराइटिस की बीमारी का डायग्नोस फिजिकल इग्जामिनेशन के साथ लक्षणों को पहचानने व एक्स-रे व लैब टेस्ट के द्वारा किया जाता है। रुमेटाइड अर्थराइटिस के विशेषज्ञ ही इस बीमारी के लक्षणों की पहचाव कर व डायग्नोस कर पता लगाते हैं। बच्चों में अर्थराइटिस का पता लगाने वाले विशेषज्ञों को पीडिएट्रिक रुमेटोलॉजिस्ट (pediatric rheumatologists) कहा जाता है।
किन बच्चों को हो सकती है चाइल्डहुड अर्थराइटिस की बीमारी
बच्चों में अर्थराइटिस की बीमारी होने का कोई निर्धारित उम्र नहीं रह गया है। सच कहे तो इस बीमारी के लिए उम्र और जाति का कोई बंदिश नहीं होता है।
बच्चों में अर्थराइटिस और उससे जुड़ी अहम जानकारी
पॉलीआर्टिकुलर जेआईए : बच्चों में अर्थराइटिस की समस्या की बात करें तो उसमें यह भी एक है। इसमें पॉली का अर्थ होता है कई, इस बीमारी के होने से पांच या उससे अधिक ज्वाइंट प्रभावित होते हैं। इस बीमारी के भी दो प्रकार होते हैं। खून में मौजूद आरएफ रुमेटाइड फैक्टर (rheumatoid factor) के अनुसार इसे बांटा गया है। पहले को पॉलीआर्टिकुल जेआईए कहा जाता है, जिसमें रुमेटाइड फैक्टर निगेटिव आता है, वहीं दूसरे को भी पॉलीआर्टिकुलर जेआईए ही कहा जाता है, जिसमें रुमेटाइड फैक्टर पॉजिटिव आता है।
बीमारी से जुड़े अहम तथ्यों पर नजर:
– बीमारी होने के कारण थकान का एहसास होता है।
– लड़कों की तुलना में लड़कियों में ज्यादा सामान्य है।
– एक साल से लेकर 12 साल की उम्र में बीमारी के लक्षण दिखते हैं।
सिस्टमेटिक जेआईए : बच्चों में अर्थेराइटिस की यह बीमारी होने से शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकती है। आइडियोपैथिक अर्थराइटिस की बीमारी में सबसे कम होने वाली बीमारी सिस्टमेक जेआईए ही है। इस बीमारी के होने से सामान्य लक्षण दिखते हैं, जैसे:
– यह ज्वाइंट के साथ शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करता है, जैसे स्किन, शरीर के आंतरिक अंग।
– सामान्य तौर पर यह लड़के व लड़कियों को प्रभावित करता है।
– बीमारी होने से काफी कम केस में ही बुखार होते हैं, नहीं तो मरीज को थकान व स्किन रैश की समस्या देखने को मिलती है।
ऑलीगोआर्टिकुल जेआईए : बच्चों में अर्थराइटिस की बीमारी में यह सबसे सामान्य है। इससे शरीर के कुछ ज्वाइंट प्रभावित होते हैं। इसे ऑलीगो, पॉसी नाम से भी जाना जाता है, इसका अर्थ कुछ, ज्यादा नहीं से है। यानि यह कुछ ज्वाइंट को ही प्रभावित करता है।
ऑलीगोआर्टिकुलर अर्थराइटिस से जितने जोड़े प्रभावित होते हैं। उसी के हिसाब से इसे दो भागों में बांटा गया है। पहले को परसिस्टेंट ऑलीगोआर्टिकुलर अर्थराइटिस (Persistent oligoarticular arthritis) कहा जाता है। इसके होने से बीमारी का पता चलने के छह महीने में चार ज्वाइंट से ज्यादा में समस्या नहीं होती है। वहीं बीमारी के दूसरे प्रकार को एक्सटेंडेड ऑलीगोआर्टिकुलर अर्थराइटिस (Extended oligoarticular arthritis) कहा जाता है। इसके होने से बीमारी का डायग्नोस होने के छह महीनों में पांच से अधिक ज्वाइंट प्रभावित होते हैं। उनमें भी बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं।
इस बीमारी से जुड़े खास फैक्ट्स
– दो से चार साल के बीच में बीमारी के लक्षण दिखने शुरू होते हैं।
– इस बीमारी के कारण आंखों की समस्या यूविटिस की बीमारी हो सकती है, जिस कारण ऑंखों के भीतर जलन होती है।
– लड़कों की तुलना में लड़कियों में यह बीमारी सामान्य है।
एंथेसिटिस रिलेटेड जेआईए : हडि्डयों के छोर में जहां वो एक दूसरे हड्डी से जुड़ती हैं उसी जगह तो एंथेसिस कहा जाता है, उसमें जलन की परेशानी होती है। बच्चों में अर्थेराइटिस की इस बीमारी को जुवेनाइल स्पॉन्डलाइसिस और जुवेनाइल स्पॉन्डेलोऑर्थोफेथिस (juvenile spondyloarthropathies) कहा जाता है। इस बीमारी के होने से खास प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं। जैसे :
– यह बीमारी दर्द व लालीपन आंखों की समस्या से जुड़ी है जिसे एक्यूट यूविटिस (acute uveitis) कहा जाता है।
– लड़कियों की तुलना में यह बीमारी लड़कों को ज्यादा होती है।
– छोटे बच्चों की तुलना में यह बीमारी युवावस्था में ज्यादा होती है।
सोरिएटिक जेआईए : बीमारी से पीड़ित बच्चों के ज्वाइंट में जलन व दर्द होता है, वहीं स्किन की बीमारी सोरायसिस से जुड़ा है। बीमारी के होने पर सामान्य प्रकार के लक्षण दिखते हैं, जैसे :
– वैसे बच्चे जिनके पेरेंट्स को सोरायसिस की बीमारी हो उन्हें यह बीमारी होने की संभावनाएं ज्यादा रहती है।
– बीमारी होने से संभव है कि हाथ व पांव के नाखून असमान्य रूप से उखड़ जाते हैं।
– बीमारी प्रारंभिक शिक्षा हासिल कर रहे बच्चे दस साल की उम्र के बच्चों में अधिक देखने को मिलती है।
– बीमारी से पीड़ित बच्चों में एक ही समय में सोरायसिस व अर्थराइटिस के लक्षण नहीं दिखते हैं।
– लड़कों की तुलना में यह बीमारी लड़कियों को ज्यादा होती है।
अनडिफ्रेंटशिएटेड जेआईए : यह बीमारी जूवेनाइल आइडियोपैथिक अर्थराइटिस की किसी भी श्रेणी में फिट नहीं होती है।
बच्चों में अर्थराइटिस के इलाज पर नजर
बता दें कि वैसे तो इस बीमारी का कोई इलाज नहीं होता है। लेकिन इस बीमारी से पीड़ित मरीजों का जल्द उपचार शुरू कर दिया जाए तो अच्छे नतीजे आ सकते हैं। डॉक्टर, नर्स, साइकोथैरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट, डायटिशियन, पोडिएट्रिस्ट, साइकोलॉजिस्ट व सामाजिक कार्यकर्ता आपके बच्चे के इलाज में अहम भागीदारी निभा सकते हैं। वैसे तो अलग अलग प्रकार के अर्थराइटिस हैं, ऐसे में इसका इलाज भी हर बच्चे में अलग अलग प्रकार से किया जाता है।
इन दवाओं से किया जाता है बच्चों में अर्थेराइटिस का इलाज
– बायोलॉजिक व बायोसिमिलर मेडिसिन देकर, बीमारी का इलाज के साथ इम्युन सिस्टम को बेहतर करने के लिए दवाएं दी जाती है। बायोलॉजिक खास सेल्स व प्रोटीन को टारगेट करती है, जिससे पूरे इम्युन सिस्टम को बेहतर करने की बजाय दर्द कम करने के साथ डैमेज को कंट्रोल किया जाता है।
– नॉन स्टोराइडल एंटी इंफ्लिमेंटरी ड्रग्स देकर, ताकि जलन व दर्द को कम किया जा सके
– कार्टिकोस्टोरायड्स (corticosteroids),
दर्द को तुरंत राहत पहुंचाने के लिए यह दिया जाता है। टेबलेट के रूप में या फिर इंजेक्शन के रूप में शरीर के सॉफ्ट टिशू में यह दिया जाता है।
– क्रीम व मलहम देकर, ज्वाइंट में क्रीम लगाकर दर्द से आराम दिलाने की कोशिश की जाती है
– आंखों में जलन को कम करने के लिए आई ड्राप दिया जाता है
– एंटी रुमेटिक दवा देकर, इसके तहत ऐसी दवाएं दी जाती है जिससे शरीर का इम्युन सिस्टम बेहतर करने की कोशिश की जाती है। यह दवा दर्द व जलन कम करने के साथ ज्वाइंट के डैमेज को कम करने में मददगार साबित होती हैं।
– पेन रिलीवर देकर
लेबोरेटरी टेस्ट पर एक नजर
बच्चों में अर्थराइटिस की बीमारी का पता ब्लड टेस्ट की जांच कर भी की जाती है। इसके अलावा टिशू फ्लूड की जांच भी कारगर है। यह टेस्ट इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके द्वारा बच्चों में अर्थराइटिस के प्रकार को पता किया जा सकता है। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।