जनसंख्या नियंत्रण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता है। इसकी शरुआत 1989 में हुई थी, लेकिन भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इसकी सख्त आवश्यकता महसूस हो रही है। जिस रफ्तार से हमारे देश की आबादी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती जा रही है, यदि इसका रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगाया गया तो इसके भंयकर परिणाम सामने आ सकते हैं। विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर चलिए भारत की बढ़ती आबाद से जुड़े कुछ पहलुओं पर गौर करते हैं।
कोरोना काल में ही इस बार विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जा रहे है, ऐसे में इस दिन की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि वर्तमान हालात में साफ पता चल रहा है कि भारत की बड़ी आबादी के लिए देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को भयंकर कमी है। हमारे देश में लाकडाउन के बावजूद यदि कोरोना के मामले कम होने की बजाय बढ़े हैं और इसकी एक बहुत बड़ी वजह अधिक आबादी है। छोटी से जगह में ढेर सारे लोगों के रहन के कारण सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करना भी संभव नहीं होता और न ही सरकार के लिए इतनी बड़ी आबादी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करना संभव हो पा रहा है। यहां की जनसंख्या को देखते हुए ही शायद एक्सपर्ट्स आने वाले महीनों में भारत में कोरोना विस्फोट की बात करते रहे हैं। खैर, कुछ महीनों या साल भर बाद शायद कोरोना खत्म हो जाए, लेकिन बढ़ती जनसंख्या एक ऐसी समस्या है जिसे रोकने का यदि प्रयास नहीं किया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
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बढ़ती जनसंख्या से होने वाली समस्याएं
विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) के मौके पर आपके लिए यह जानना जरूरी है कि आबादी बढ़ने से सिर्फ स्वास्थ्य सुविधाओं की ही कमी नहीं हुई है, बल्कि कई अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।
शिक्षा और नौकरी के कम अवसर
स्कूल-कॉलेज में एडमिशन से लेकर नौकरी मिलना हमारे देश में अब बहुत मुश्किल होता जा रहा है। यहां तक कि नर्सरी में भी किसी अच्छे स्कूल में एडमिशन मिल पाना किसी जंग जीतने जैसा है, यही हाल कॉलेजों का भी है। जाहिर है शिक्षा में बढ़ती मुश्किलों की एक वजह हमारे देश की बड़ी आबादी है, क्योंकि यहां लोग तो तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन उस हिसाब से संसाधन नहीं बढ़े है जिससे हर क्षेत्र में गलाकाट प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। नौकरियों का हाल तो और बुरा है।
बुनियादी सुविधाओं को अभाव
कई जगहों पर लोगों के पास न तो रहने के लिए अच्छे मकान हैं और न ही पीने का साफ पानी। यहां तक कि उन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से नसीब हो पाता है। गरीबी और गरीबों की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है, लेकिन आबादी पर कहीं कोई नियंत्रण नहीं है।
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बेहतर ज़िंदगी न मिल पाना
जब लोग ज़्यादा होंगे तो जाहिर सी बात है प्रदूषण का स्तर भी बढ़ेगा, ऐसे में साफ हवा और पर्यावरण नहीं मिल पाएगा। प्रदूषण बढ़ने से कई तरह की बीमारियां भी बढ़ेंगी।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
हमारे देश की आबादी बहुत ज़्यादा है और उस हिसाब से न तो हमारे यहां अस्पताल है और नही अस्पतालों में पर्याप्त डॉक्टर व अन्य सुविधाएं और यह बात इस कोरोना काल में सबके सामने आ चुकी है। मुंबई जैसे शहर में मरीज बीमारी के बावजूद अस्पताल में इलाज नहीं करवा पा रहे हैं, क्योंकि वहां जगह ही नहीं बची है।
जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा भारत
जिस रफ्तार से भारत की आबादी बढ़ रही है उसे देखते हुए यूनाइटेड नेशन ने अनुमान लगाया है कि 2025 से 2030 के बीच में भारत जनसंख्या के मामले में चीन से भी आगे निकल जाएगा और भारत की आबादी करीब 1 अरब 65 करोड़ के आसपास होगी। जबकि पूरी दुनिया की आबादी 8 अरब 14 करोड़ के लगभग होने का अनुमान है। फिलहाल चीन आबादी के मामले में पूरी दुनिया में नंबर एक है, दूसरे स्थान पर भारत और तीसरे नंबर पर अमेरिका है। फिलहाल हमारे देश की आबादी 130 करोड़ है और इस लिहाज से यदि स्वास्थ्य सुविधाओं को देखें तो वह ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है। ऐसे में ज़रा सोचिए यदि इसी तरह बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में स्थिति कितनी बिगड़ सकती है। जो क्वालिटी लाइफ हम चाहते हैं क्या वह संभव होगा?
देश में उठती रही है जनसंख्या नियंत्रण की मांग
देश के शिक्षित तबके को छोड़ दिया जाए तो गांव और छोटे शहरों में बढ़ती आबादी को लेकर लोगों में किसी तरह की जागरुकता नहीं है। लेकिन समाज का एक तबका अब देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की मांग करने लगा है। वैसे देखा जाए तो सरकार की ओर से हम दो हमारे दो का नारा तो सालों पहले ही दिया गया था, लेकिन लोग इसे अमल में नहीं ला रहे। कई बार बेटे की आस में लोग फैमिली प्लानिंग को पूरी तरह से भूला देते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए तो लगता है यदि सरकार की ओर से फैमिली प्लानिंग (Family Planning) को लेकर सख्त कानून नहीं बनाया जाएगा तो इस देश की आबादी पर लगाम लगाना शायद नामुमकिन होगा।
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भारत में फैमिली प्लानिंग की राह की चुनौतियां
विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) का मकसद तभी पूरा हो पाएगा जब सही तरीके से फैमिली प्लानिंग की जाए, लेकिन हमारे देश में फैमिली प्लानिंग निम्न कारणों से मुश्किल हैः
पुरुषों में जागरुकता की कमी
महिलाओं की तुलना में पुरुष फैमिली प्लानिंग को लेकर बहुत सीरियस नहीं हैं। यहां तक कि संबंध बनाने के दौरान भी वह सुरक्षा का ध्यान नहीं रखते हैं। नसबंदी के मामले में भी पुरुष महिलाओं से पीछे हैं। हालांकि एक अच्छी बात यह है कि पहले के मुकाबले अब महिलाओं फैमिली प्लानिंग की अहमियत समझने लगी हैं।
बच्चे के बारे में फैसले का अधिकार महिलाओं को न होना
हमारे देश में आज भी प्रेग्नेंसी प्लान (Pregnancy Planning) करना महिलाओं की मर्जी पर निर्भर नहीं करता। कई ऐसी महिलाएं है जो बस यूं ही या परिवार के दबाव में आकर प्रेग्नेंसी प्लान कर लेती हैं। कुछ तो इसलिए बार-बार प्रेग्नेंट हो जाती है क्योंकि उनके पति प्रोटेक्शन नहीं लेते और वह खुद कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल करने की हालत में नहीं होती या उन तक पहुंच नहीं होती। ऐसा ग्रामीण महिलाओं के साथ होता है।
बेटे का मोह
जिनकी पहले दो बेटियां हैं, बावजूद इसके परिवार की ओर से बेटे की चाह में बार-बार प्रेग्नेंसी प्लान (Pregnancy Planning) करने का प्रेशर रहता है और यह स्थिति आज भी बहुत बदली नहीं है।
शिक्षा का अभाव
हमारे देश की एक बड़ी आबादी आज भी अशिक्षित है ऐसे में उन्हें जनसंख्या नियंत्रण की अहमियत और परिवार नियोजन की ज़रूरत के बारे में समझ ही नहीं है।
कानून बनाकर, लोगों को शिक्षित या जागरुक करके यदि जल्द ही जनसंख्या को बढ़ने से रोका नहीं गया तो, गरीबी, भूख और कुपोषण की समस्या और गहराती जाएगी। कोरोना के इस मुश्किल समय में खासतौर पर देश के युवाओं को परिवार नियोजन और सुरक्षित सेक्स (Safe sex) के प्रति जागरुक करके बढ़ती आबादी की समस्या पर लगाम लगाना ज़रूरी है ताकि आने वाले समय में बेहतर ज़िंदगी का सबका सपना पूरा हो सके।
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