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रिसर्च का रिजल्ट : वैज्ञानिकों ने पाई सफलता, जन्मजात दृष्टिहीनता को दूर करेगी दुनिया की पहली 'बायोनिक आई'

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/09/2020

रिसर्च का रिजल्ट : वैज्ञानिकों ने पाई सफलता, जन्मजात दृष्टिहीनता को दूर करेगी दुनिया की पहली 'बायोनिक आई'

दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए आंखों की रोशनी का आना किसी चमत्कार से कम नहीं है। विज्ञान के इस युग में शोधकर्ताओं नें कुछ ऐसा ही किया है जो  कि दृष्टिहीन लोगों के जीवन में खुशियां ला सकते हैं। दृष्टिहीन लोगों के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है। जी हां ! ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली बायोनिक आई (First Bionic Eye) या बायोनिक आंखे बनाई हैं। इन बायोनिक आई की मदद से दृष्टिहीन व्यक्तियों को देखने में मदद मिलेगी। यानी इस डिवाइस की सहायता से दृष्टिहीन व्यक्ति भी देखने में सक्षम हो सकेंगे। ये एक या दो साल नहीं बल्कि 10 सालों की मेहनत है। साथ ही इस बात का दावा भी किया जा रहा है कि ये दुनिया की पहली बायोनिक आई है। वाकई ये खबर बहुत दिलचस्प है। जानिए दुनिया की पहली बायोनिक आई के बारे में कुछ जानकारी।

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भेड़ों पर किया गया था बायोनिक आई का परिक्षण

ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं द्वारा बनाई गई इस डिवाइस की हेल्प से विजन को रिस्टोर किया जा सकता है। ये डिवाइस पूरी तरह से तैयार हो चुकी है और अब ह्युमन ट्रायल के लिए रेडी हो चुकी है। ह्युमन ट्रायल के दौरान बायोनिक आई को मानव के मस्तिष्क में लगाया जाएगा। आपको बताते चले कि बायोनिक आई या बायोनिक आंखों के शोध के दौरान भेड़ों पर परिक्षण किया जा चुका है। मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट के डॉक्टर के अनुसार करीब 10 भेड़ों में इस डिवाइस का प्रयोग किया गया था जिसमे सात के रिजल्ट संतुष्ट करने वाले थे। जिन भेड़ों में इस डिवाइस का यूज किया गया था, उनमे से सात भेड़ों में ये डिवाइस करीब नौ महीने तक सुचारू रूप से एक्टिव रही और साथ ही भेड़ों को भी किसी भी तरह की परेशानी नहीं हुई। अगर ये डिवाइस इंसानों पर सही तरह से काम करेगी तो इसे अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। अभी शोधकर्ताओं का काम जारी है।

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पहली बायोनिक आंखें : कैसे काम करेगी बायोनिक आई ?

बायोनिक आई एक ट्रांसमीटर के तौर पर काम करेगी। बायोनिक आई एक चिप के रूप में मस्तिष्क में लगाई जाएगी। यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर लाओरी ने बायोनिक आई के बारे में बताते हुआ जानकारी दी कि “ये डिवाइस एक गेटवे तैयार करेगी जोकि सिग्नल को रेटीना से ब्रेन विजन सेंटर में भेजने का काम करेगा। सिस्टम को कस्टम मेड हेडगियर के रूप में बनाया गया है जिसमे कैमरा के साथ ही वायरलेस ट्रांसमीटर भी होगा। आसपास होने वाली किसी भी हलचल को कैमरे की मदद से कैद किया जा सकेगा।

जो भी व्यक्ति बायोनिक आई का प्रयोग करेगा उसे कस्टम डिसाइन हेडगियर पहनना पड़ेगा। हेडगियर में कैमरा और वायरलेस ट्रांसमीटर लगा रहेगा। साथ ही 9 एमएम साइज की चिप को ब्रेन में इम्प्लांट किया जाएगा। यानी डिवाइस का काम 172 स्पॉट लाइट से विजुअल पैटर्न तैयार करना है। ये विजुअल पैटर्न अंदर और बाहर के वातावरण के बारे में जानकारी देते हैं। साथ ही व्यक्ति को इसी के माध्यम से अपने आसपास के ऑब्जेक्ट के बारे में जानकारी मिलती है। शोधकर्ता अपनी डिवाइस को अधिक एडवांस करने में लगे हुए हैं ताकि न्यूरोलॉजिकल कंडीशन से पीड़ित व्यक्ति को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। डिवाइस का ह्युमन ट्रायल मेलबर्न में होने की संभावना है।

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पैरालिसिस कंडीशन में कारगर होगी डिवाइस

बायोनिक आई को तैयार करने वाली टीम न सिर्फ दृष्टिहीन लोगों के लिए शोध कर रही है बल्कि रिसर्च टीम इस डिवाइस के वैकल्पिक उपयोग भी तलाश रही है। टीम इंक्यूरेबल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे कि लिंब पैरालिसिस के पेशेंट के लिए भी कुछ उम्मीद तलाश रही है। डिवाइस की हेल्प से हिलने की एबिलिटी को रिस्टोर करने में हेल्प मिल सकती है। यानी मूवमेंट करने की क्षमता को डिवाइस की हेल्प से वापस पाया जा सकेगा। आपको बताते चले कि पैरालिसिस की समस्या में संबंधित अंग या ऑर्गन प्रतिक्रिया नहीं देता है। साथ ही व्यक्ति की बोलने की क्षमता में कमी महसूस होती है। ऐसा दिमाग के एक हिस्से में ब्लड फ्लो रुक जाने के कारण भी हो सकता है।मोनाश विजन ग्रुप के शोधकर्ता मार्सेलो रोजा का कहना है कि अभी हम फंड रेज कर रहे हैं ताकि काम को आगे बढ़ाया जा सके।

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जिन व्यक्तियों के रेटीना कमजोर होते हैं उन्हें बायोनिक आंखें लगाई जा सकती है। जब आंख के लैंस को आर्टिफिशियल रेटीना के साथ अटैच किया जाता है तो समय इलैक्ट्रॉनिक डिवाइस का यूज किया जाता है। आई लैंस के साथ कैमरा भी अटैच होता है जो सिग्नल को रेटीना तक भेजता है। फिर नर्व सेल्स से जुड़े हुए सिग्नल ब्रेन तक जाते हैं और विजन समझ में आता है। साफ शब्दों में कहें तो ब्रेन को समझ आता है कि हम क्या देख रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की कंपनी कई सालों से इस काम में लगी है और अब लोगों में उम्मीद जाग गई है कि पहली बायोनिक आंखें जल्द ही ह्युमन ट्रायल में भी सफल होंगी।

पहली बायोनिक आंखें लोगों के लिए इसलिए भी खास हैं क्योंकि इनकी बेहतर क्षमता जन्म से न देख पाने वाले लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है। पहले भी बायोनिक आंखों का प्रयोग लोगों में किया जा चुका है लेकिन वो दृष्टिहीन लोगों के लिए नहीं थी। साथ ही उनका हाई रेजोल्यूशन विजन भी नहीं था। अब ये खबर लोगों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर आई है।

उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अगर आपको इस विषय में अधिक जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा कि आप आंखों के विशेषज्ञ से बात करें। हम आशा करते हैं कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से पहली बायोनिक आई के बारे में जानकारी मिल गई होगी। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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