The World Health Organisation (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 3 मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं। करीब 80 प्रतिशत लोग शहर में रहते हैं, जहां वायु अधिक प्रदूषित है। लो इंकम कंट्री में हालात ज्यादा खराब हैं। 98% शहरों की एयर क्वालिटी डब्लूएचओ के स्टेंडर्ड के हिसाब से खराब है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी Sentinel-5P satellite की हेल्प से ये जानकारी मिली कि फरवरी 2020 में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (शहरों में इंडस्ट्रियल एरिया में इस गैस का उत्सर्जन अधिक होता है) की मात्रा, साल 2019 के कंपेयर में 40 प्रतिशत कम थी। लॉकडाउन लगने के बाद गैस के उत्सर्जन में 60 प्रतिशत की कमी आई। आपको बताते चले कि NO₂का उत्सर्जन रोड ट्रांसपोर्ट, पावर प्लांट से अधिक होता है। जिन लोगों को लंग्स में समस्या या सांस लेने में परेशान, अस्थमा की बीमारी है, उन लोगों को इस गैस से ज्यादा समस्या होती है। NO₂के उत्सर्जन से पेशेंट की तबियत अधिक खराब हो सकती है। जिन देशों में लॉकडाउन लगाया गया है, वहां नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड के स्तर में गिरावट आई है।
और पढ़ेंः अस्थमा और हार्ट पेशेंट के लिए जरूरी है पूरे साल फेस मास्क का इस्तेमाल
ग्रीन हाउन गैस का उत्सर्जन हुआ कम
लॉकडाउन का वातावरण पर असर वाकई सकारात्मक पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान प्लेन, ट्रांसपोर्ट, फैक्ट्री आदि के बंद रहने से कई विषैली गैसे के उत्सर्जन में कमी आई है। वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस में भी 5 से 10 प्रतिशत की कमी महसूस की गई है। इस दौरान कार्बन के उत्सर्जन में 10 प्रतिशत की कमी आई है। ऐसा नहीं है कि गैसों के उत्सर्जन में पहली बार कमी महसूस की गई है। साल 2008 में जब दुनिया भर में मंदी का दौर छाया था, तब भी कुछ ऐसे ही हालात सामने आए थे। मंदी के बाद चाइना ने अचानक से अपना कारोबार को तेज कर दिया और कार्बन डाई ऑक्साइड के अधिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार भी बना। कोरोना महामारी के कारण लोग ज्यादा से ज्यादा घर में हैं, जिसके कारण बहुत से बदलाव हो रहे हैं। कुछ ही समय में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में भी कमी महसूस की गई है।
और पढ़ें :रोग प्रतिरक्षा प्रणाली क्या है और यह कोरोना वायरस से आपकी सुरक्षा कैसे करती है?