मूल बातें जानिए
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) क्या है ?
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) में सुई की मदद से एबनॉर्मल लंग टिशूज़ के छोटे-छोटे टुकड़ो को निकाला जाता है। ये प्रोसीजर रेडियोलाजिस्ट करते हैं। आपको बता दें कि बायोप्सी का मतलब होता है किसी असाधारण से उभार को निकालना यानी कि शरीर से अलग करना है। लंग बायोप्सी ओपन या क्लोज दोनों विधियों से होता है। लंग बायोप्सी को लंग कैंसर की जांच के लिए किया जाता है। लंग कैंसर में फेफड़े में ट्यूमर हो जाता है। ये ट्यूमर कैंसरस हैं या नहीं इसको जानने के लिए ही लंग बायोप्सी की जाती है।
लंग बायोप्सी क्यों की जाती है?
लंग बायोप्सी (सीटीबीएलबी) डॉक्टर्स तब रेकमेंड करते है जब बीमारी को पता करना होता है। लंग बायोप्सी अक्सर इन कारणों की वजह से करवाई जा सकती है :
- सारकॉइडोसिस या पल्मोनरी फाइब्रॉइड्स डायगनोज करने के लिए। सीवियर निमोनिया के केस में भी लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) करी जा सकती है जब पहले के डायग्नोज़िज़ क्लियर ना हो
- लंग कैंसर को डिटेक्ट करना हो
- चेस्ट एक्स रे या फिर सीटी स्कैन में कोई खराबी होने पर. लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) अक्सर तब करवाई जाती है जब कोई किसी और तरीके से लंग्स में हो रही परेशानी का पता न लगाया जा सके
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बचाव
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) करवाने से क्या जोखिम हो सकते हैं?
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) वैसे तो सेफ प्रोसीजर है, लेकिन आपकी बीमारी कितनी बड़ी है और कौनसी है इसपर निर्भर करता है की सर्जरी में कितना जोखिम है। अगर आपको पहले से सांस लेने में परेशानी है तो बायोप्सी के बाद आपकी परेशानी और भी ज्यादा बढ़ सकती है।
ब्रोंकोस्कोपी और नीडल बायोप्सी ओपन बायोप्सी VATS बायोप्सी के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होती है। लेकिन ओपन बायोप्सी और VATS की मदद से लंग का एक बड़ा हिस्सा निकाला जा सकता है। इससे बीमारी का पता ज्यादा सही तरीके से लगाया जा सकता है। साथ ही क्या इलाज़ लेना है ये भी तय कर सकते हैं। ब्रोंकोस्कोपी और नीडल बायोप्सी में ज्यादा खतरा नहीं होता और इसमें एनेस्थीसिया भी नहीं दिया जाता। आपको ऑपरेशन के बाद पूरी रात अस्पताल में रहने की भी जरूरत नहीं होती।
इस प्रोसीजर के समय आपको कोलॅप्सेड लंग की दिक्कत आ सकती है। इससे बचने के लिए आपको लंग में एक ट्यूब लगाई जा सकती है ताकि लंग्स फूले हुए रहे और कोलॅप्स न हों।
बहुत बड़ी बीमारी होने पर भी बायोप्सी से मौत होने की संभावना कम ही होती है।
इसके अलावा लंग बायोप्सी करने से निमोनिया का रिस्क बढ़ जाता है। फेफड़े की बायोप्सी के बाद न्यूमोथोरैक्स होने का खतरा ज्यादा रहता है। फेफड़े और चेस्ट कैविटी के बीच से हवा लीक होने लगती है। इस स्थिति को ही न्यूमोथोरैक्स कहते हैं। न्यूमोथोरैक्स की स्थिति में सांस लेने में काफी कठिनाई होती है। इसके अलावा ब्लड क्लॉट या इंफेक्शन का जोखिम भी बना रहता है। अगर आपको निम्न में से कोई भी समस्या दिखाई दे तो आप अपने डॉक्टर से तुरंत मिलें :
- 100.4 फारेंहाइट से ज्यादा का बुखार
- सीने पर लालपन, सूजन या खून व कोई भी तरल पदार्थ का निकलना
- सीने में तेज दर्द
- सांस लेने में परेशानी होना
- खांसने में मुंह से खून या बलगम में खून आना
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प्रक्रिया
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) की तैयारी कैसे करें?
अगर आपको सर्जरी से जुड़ी कोई भी पूछताछ करनी है तो डॉक्टर से जरूर पूछ लें। अपनी सेहत और दवाइयों के बारे में डॉक्टर को बता दें। बायोप्सी से कितने पहले आपको खाना पीना बंद करना है ये डॉक्टर आपको बता देंगे। खाने पीने के सारे निर्देषों को ढंग से सुनें और मानें अन्यथा आपकी सर्जरी कैंसिल भी हो सकती है। अगर आपके डॉक्टर ने ऑपरेशन के दिन आपको दवाइयां खाने को कहा है तो ऐसा जरूर कर लें।
लंग बायोप्सी करने की प्रक्रिया क्या है?
लंग बायोप्सी में लगभग 45 मिनट का समय लगता है। लंग बायोप्सी करने की कई विधियां हैं :
निडिल बायोप्सी : लोकल एनीस्थीया यानी कि मरीज का अंग सुन्न करने के बाद बायोप्सी की जाती है। जिसमें सीटी स्कैन या एक्स-रे के द्वारा देखते हुए फेफड़े में निडिल डाली जाती है। जिससे फेफड़े के अंदर के ट्यूमर के सैंपल को बाहर निकाला जाता है।
ट्रांसब्रॉन्कियल बायोप्सी : इस प्रकार की बायोप्सी में फाइब्रॉप्टिक ब्रॉन्कोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रॉन्कोस्कोप एक पतला सा ट्यूब होता है। जिसके एक सिरे पर टेलीस्कोप लगा होता है, जिसे सांस की नली के द्वारा फेफड़ों में डाला जाता है। इसके बाद लंग में ट्यूमर का सैंपल निकाला जाता है।
थोरैकोस्कोपिक बायोप्सी : इस प्रकार की बायोप्सी में मरीज को बेहोश किया जाता है। इसके बाद सांस की नली से एक एंडोस्कोप चेस्ट कैविटी में डाला जाएगा। कई तरह के बायोप्सी टूल्स को एंडोस्कोप के द्वारा फेफड़े में डाला जाता है ताकि फेफड़े की जांच की जा सके। बायोप्सी की इस प्रक्रिया को वीडियो-असिस्टेड थोरैसिक सर्जरी (VATS) बायोप्सी कहते हैं। इसके साथ ही थेराप्यूटिक प्रक्रिया से फेफड़े के टिश्यू को निकाला जाता है। अगर फेफड़े में कहीं पर कोई नोड्यूल दिखाई देता है तो उसे इस प्रक्रिया के दौरान ही निकाल लेते हैं। साथ ही इस प्रकार के बायोप्सी में अगर कहीं चोट लग जाती है तो उसका इलाज भी उसी दौरान कर दिया जाता है।
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ओपन बायोप्सी : इस बायोप्सी में मरीज को बेहोश करने के बाद डॉक्टर चेस्ट कैविटी के पास त्वचा पर चिरा लगाता है और इसके बाद फॉरसेप (एक प्रकार का यंत्र) के द्वारा लंग के टिश्यू को निकाला जाता है। बायोप्सी में कहां और कितनी चिरा लगाना है यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। इस बायोप्सी के बाद डॉक्टर चीरे के स्थान पर टांके लगाते हैं। जिसके बाद मरीज को कुछ दिनों तक हॉस्पिटल में रुकना होता है।
अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
रिकवरी
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) के बाद क्या करना चाहिए ?
लंग बायोप्सी के बाद सुई को बाहर निकाल दिया जाता है। चीरा लगाई गई जगह पर खून को नियंत्रित करने के लिए वहां प्रेशर लगाया जाता है। रक्तस्राव के रुकने में उस जगह पर बैंडेज लगा दी जाती है ताकि भविष्य में किसी प्रकार का रक्तस्राव न हो। यदि चीरे का आकर बड़ा होता है तो 1 या उससे अधिक स्टिचेस लगाए जा सकते हैं। आमतौर पर लंग बायोप्सी में 1 घंटे तक का समय लग सकता है।
- आप सर्जरी के कुछ घंटे बाद ही घर जा सकते है. अगले दिन से आप काम पर भी जा सकते हैं।
- आपके डॉक्टर आपसे कोई भी आगे ट्रीटमेंट जो जरुरी है जरूर बातएंगे।
- किसी भी तरह के सवाल के लिए या और जानकारी के लिए अपने डॉक्टर या सर्जन से मिलें।
लंग बायोप्सी (Lung Biopsy) के जोखिम क्या है
- दर्द
- न्यूमोथोरैक्स ( हवा का इक्कठा हो जाना )
- एलर्जी
- बीओप्सी साइट से खून बहना