वीएडी या वेंट्रिकुलर एसिस्ट डिवाइस ventricular assist device (VAD) एक तरह का पंप होता है। इससे दिल के नीचे के चैंबर (the ventricles) से खून शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचता है। जब दिल को जिंदा रखने का और कोई विकल्प नहीं बचता ऐसे में वीएडी का उपयोग किया जाता है। इस डिवाइस को हार्ट मैट टू कहाता जाता है। आजकल इसका नया वर्जन हार्ट मैट थ्री भी उपलब्ध है। इसे रोगी के असली हृदय के डाइअफ्रैम (diaphragm) के नीचे ही लगाया जाता है। वीएडी को दिल के दाहिने या बाएं या दोनों भागों में लगाया जा सकता है। अब तक अधिकतर मामले बाएं भाग के ही देखे गए हैं। बाई ओर लगाए जाने वाले वेंट्रिकुलर एसिस्ट डिवाइस (left ventricular assist devices) (LVADs), दाई ओर लगाए जाने वाले राइट वेंट्रिकुलर एसिस्ट डिवाइस (right ventricular assist devices, or RVADs) और दोनों चैंबरों में लगाए जाने वाले को बाइवेंट्रिकुलर एसिस्ट डिवाइस (biventricular assist devices, or BIVADs) कहा जाता है।
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कैसे करता है कृत्रिम हृदय
ये कैसे काम करता है इस बारे में डॉक्टर ने विस्तार से जानकारी भी दी है। डॉ. हाजरा के मुताबिक शायद डूगर आर्टिफिशियल हार्ट के सहारे इतना लंबा जीने वाले भारत के पहले व्यक्ति हैं। इन दस सालों में डिवाइस को गति देने वाली दो बैटरियां बदली गई हैं। डिवाइस सामान्य हृदय की तरह काम कर रहा है। डॉ हाजरा के अनुसार डिवाइस पंप की तरह ही काम करता है। जो दिल के बाएं हिस्से से रक्त खींच कर बाहर निकाल देता है। एक केबल के माध्यम से इसे बाहरी उपकरणों (external portable system) से जोड़ा जाता है। इसके लिए पेट में चीरा लगाकर केबल निकाली जाती है। यह बाहरी उपकरण एक बैटरी और एक कंट्रोलर होता है। इसी वजह से मरीज को एक बैग उठाए रखना पड़ता है। डिवाइस सही से काम करे इसके लिए बैटरी को समय-समय पर बदलना बहुत जरूरी है।
हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी दिल से जुड़ी समस्या है जो आज के समय में मुश्किल सर्जरी नहीं मानी जाती है, लेकिन पहले इस सर्जरी को एक तरह की दुर्लभ सर्जरी ही माना जाता था। आर्टिफिशियल हार्ट के लिए हार्ट डोनर के बारे में सोचना भी बहुत ही मुश्किल काम था। जब हार्ट सही से पंपिंग का काम नहीं कर पाता है तो हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। यानी ऐसे केस में हार्ट डोनर का मिलना भी बहुत जरूरी है वरना ये सर्जरी पॉसिबल नहीं हो सकती है। आर्टिफीशियल हार्ट की मदद से ब्लड की पंपिंग का काम सुचारू रूप से होना लगता है। ऐसा नहीं है कि डॉक्टर ने आर्टिफीशियल हार्ट लगा दिया और काम हो गया। बल्कि पेशेंट को हमेशा अपने साथ एक मशीन को भी लेकर रखना पड़ता है और साथ ही डॉक्टर की बताई गई सलाह को भी मानना पड़ता है।आर्टिफीशियल हार्ट की कीमत भी बहुत ज्यादा होती है।
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