जब भी हम डॉक्टर के पास जाते हैं, तो सबसे पहले जिस चीज की सलाह दी जाती है वो है ब्लड प्रेशर की जांच कराना। ब्लड प्रेशर की जांच यानी उन दो नंबरों को मेजर करना जो ब्लड की फाॅर्स को रिप्रेजेंट करते हैं, जिसे हमारा दिल पंप करता है। इन दो नंबर्स को सिस्टोल और डायस्टोल ब्लड प्रेशर कहा जाता है। इन्हें मेजर करने के लिए खास मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में अंतर (Difference between Diastole and Systole) के बारे में। सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में अंतर (Difference between Diastole and Systole) के बारे में जानने से पहले इन दोनों के बारे में जान लेते हैं।
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक (Diastole and Systole) क्या हैं?
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक टर्म का इस्तेमाल उन कंडिशंस में किया जाता है, जब हमारे हार्ट मसल्स रिलेक्स और कॉन्ट्रैक्ट होते हैं। सिस्टोलिक और डायस्टोलिक के बीच के बैलेंस को रोगी के ब्लड प्रेशर से जाना जाता है। हमारा हार्ट एक पंप है, जो शरीर के सभी टिश्यूज और ऑर्गन्स तक ऑक्सीजन युक्त ब्लड की सप्लाई करता है। हमारा हार्ट तब धड़कता है, जब हार्ट मसल्स रिलेक्स और कॉन्ट्रैक्ट होती हैं। इस सायकल रिलैक्सेशन के पीरियड को डायस्टोलिक और कॉन्ट्रैक्शन के पीरियड को सिस्टोल कहा जाता है। सिस्टोल यानी सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर रीडिंग का टॉप नंबर होता है जबकि डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर रीडिंग का बॉटम नंबर है। सिस्टोल और डायस्टोल में अंतर (Difference between Diastole and Systole) से पहले अब जानते हैं इन दोनों की अन्य कैरेक्टरिस्टिक्स के बारे में।
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सिस्टोलिक और डायस्टोलिक (Diastole and Systole) के बारे में पाएं और जानकारी
यह तो आप समझ ही गए होंगे कि डायस्टोल यानी हार्ट मसल्स का रिलेक्स होना। जब हार्ट रिलेक्स करता है, तो हार्ट के चैम्बर्स को ब्लड से भर जाता है और रोगी का ब्लड प्रेशर कम होता है। जबकि सिस्टोल उसे कहा जाता है, जब हार्ट मसल्स कॉन्ट्रैक्ट करती हैं। जब हार्ट कॉन्ट्रैक्ट होता है, तो यह हार्ट से ब्लड को बाहर पुश करता है और सर्कुलेटरी सिस्टम के बड़े ब्लड वेसल्स में इसे धकेलता है। यहां से ब्लड शरीर के अन्य अंगों और टिश्यूज तक जाता है। सिस्टोल के दौरान, रोगी का ब्लड प्रेशर बढ़ता है।
अब जानते हैं सिस्टोल और डायस्टोल में अंतर (Difference between Diastole and Systole) क्या है?
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सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में अंतर (Difference between Diastole and Systole)
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में अंतर (Difference between Diastole and Systole) से पहले हार्ट कैसे काम करता है इसके बारे में जान लेते हैं। हमारा हार्ट चार चैम्बर्स से बना होता है। यह बीच में से राइट और लेफ्ट साइड में बंटा होता है और यह हर एक साइड आगे दो चैम्बर्स में बंटा होता है जिन्हें अपर चैम्बर्स और लोअर चैम्बर्स के नाम से जाना जाता है। हार्ट के ऊपरी दोनों चैम्बर्स को एट्रिया (Atria) कहा जाता है, जो उस खून को रिसीव करती हैं जो हार्ट में एंटर करता है। जबकि दो लोअर चैम्बर्स को वेंट्रिकल्स कहते है। यह हार्ट से बाहर खून को शरीर को अन्य भागों तक पंप करते हैं। शरीर में ब्लड को पंप करने के लिए हार्ट कॉन्ट्रैक्ट होता है और उसके बाद रिलेक्स करता है।
लगातार चलती है ये प्रक्रिया
बार-बार इस सायकल को दोहराया जाता है जिसे कार्डियक सायकल (Cardiac cycle) कहा जाता है । यह सायकल तब शुरू होता है जब दो एट्रिया कॉन्ट्रैक्ट होती हैं, जिससे वेंट्रिकल्स में ब्लड पुश होता है। इसके बाद वेंट्रिकल्स कॉन्ट्रैक्ट होता है, जो हृदय से रक्त को बाहर निकालने के लिए मजबूर करता है। शरीर से हार्ट के राइट साइड वापस आने वाले डिऑक्सीजिनेटेड ब्लड को लंग्स के माध्यम से पंप किया जाता है जहां यह ऑक्सीजन लेता है। इसके बाद ऑक्सीजनटेड ब्लड हार्ट के लेफ्ट साइड जाता है और शरीर के बाकी हिस्सों में पंप किया जाता है।
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक (Diastole and Systole) हर व्यक्ति को अलग तरह से प्रभावित करते हैं, जैसे:
- जब हार्ट सिस्टोल के दौरान ब्लड को शरीर के चारों ओर पुश करता है, तो वेसल्स पर दबाव बढ़ जाता है। इसे सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं।
- जब हार्ट बीट्स के बीच में रिलेक्स करता है और ब्लड से रिफिल होता है, तो ब्लड प्रेशर ड्राप होता है और उसे डायस्टोलिक प्रेशर कहा जाता है। यह तो थी सिस्टोल और डायस्टोल में अंतर के बारे में जानकारी। अब जानते हैं हेल्दी ब्लड प्रेशर के बारे में।
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हेल्दी ब्लड प्रेशर (Blood pressure) किसे कहा जाता है?
जैसा कि आप जानते ही हैं कि ब्लड प्रेशर को दो नंबर्स में रिप्रेजेंट किया जाता है। जिन्हें सिस्टोलिक और डायस्टोलिक के नाम से जाना जाता है। इसमें पहला नंबर सिस्टोलिक प्रेशर है जबकि दूसरा है डायस्टोलिक प्रेशर। ब्लड प्रेशर को तीन कैटेगरीज में विभाजित किया गया है:
- सामान्य ब्लड प्रेशर (Normal blood pressure): 120/80 mmHg रीडिंग को सामान्य ब्लड प्रेशर माना जाता है।
- एलिवेटेड ब्लड प्रेशर (Elevated blood pressure): एलिवेटेड ब्लड प्रेशर उस स्थिति को कहा जाता है जब सिस्टोलिक प्रेशर 120-129 के बीच में हो और डायस्टोलिक प्रेशर 80 से कम हो।
- स्टेज 1 हायपरटेंशन (Stage 1 hypertension): इस स्टेज में सिस्टोलिक प्रेशर 130-139 के बीच में होता है या डायस्टोलिक प्रेशर 80 और 89 mmHgके बीच में होता है।
- स्टेज 2 हायपरटेंशन (Stage 2 hypertension): इस स्टेज में सिस्टोलिक प्रेशर कम से कम 140 या डायस्टोलिक प्रेशर कम से कम 90 mmHg होता है।
अगर आपका डायस्टोलिक या सिस्टोलिक प्रेशर में से कोई भी या दोनों बढ़े हुए हों, तो आपमें हाय ब्लड प्रेशर का निदान किया जा सकता है। इसके साथ ही सिस्टोलिक और डायस्टोलिक नंबर की जांच के लिए रोगी के लक्षण, उम्र और मेडिकल कंडिशन आदि को भी ध्यान में रखा जाता है। सिस्टोल और डायस्टोल में अंतर (Difference between Diastole and Systole) के बारे में आप जान गए होंगे। अब जानते हैं हाय और लो ब्लड प्रेशर के बारे में और अधिक।
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सिस्टोलिक और डायस्टोलिक हाय और लो ब्लड प्रेशर के बारे में जानें
दोनों तरह के ब्लड प्रेशर (हाय और लो) को मैनेज करना बेहद जरूरी है। इनमें से अधिकतर लोगों को हाय ब्लड प्रेशर की समस्या होती है। हाय और लो ब्लड प्रेशर के रिस्क फैक्टर्स भी अलग हो सकते हैं। आइए, जानते हैं इनके बारे में
हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure) के रिस्क फैक्टर्स
ऐसा माना जाता है कि पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक हाय ब्लड प्रेशर की समस्या होती है। यही नहीं, कुछ अन्य स्थितियों में भी इसका जोखिम अधिक रहता है जैसे:
- जेनेटिक
- मोटापा
- डायबिटीज
- हाय कोलेस्ट्रॉल
- किडनी डिजीज
इसके साथ ही खराब लाइफस्टाइल भी इसका रिस्क फैक्टर हो सकता है। जैसे अगर आप अधिक फिजिकल एक्टिव नहीं रहते, तनाव में हैं, अधिक ड्रिंक या स्मोकिंग करते हैं, अधिक नमक, चीनी या फैटी आहार का सेवन करते हैं तो इस समस्या का जोखिम आपमें बढ़ सकता है। यही नहीं जब हम सही से ब्रीद नहीं कर पाते हैं, तो हमारा ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है और ब्लड वेसल्स सिकुड़ जाते हैं। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है। अब जानते हैं लो ब्लड प्रेशर के रिस्क फैक्टर्स के बारे में।
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लो ब्लड प्रेशर के रिस्क फैक्टर्स
अगर आपकी उम्र 65 साल से अधिक है तो आपको ऑर्थोस्टेटिक हायपोटेंशन (Orthostatic hypotension) का जोखिम अधिक होता है। यह वो कंडिशन है जिसमें जब आप बैठ कर उठते हैं, तो ब्लड प्रेशर ड्राप होता है। एंडोक्राइन प्रॉब्लम (Endocrine), न्यूरोलॉजिकल डिजीज, हार्ट प्रॉब्लम, हार्ट फेलियर और एनीमिया भी इसके कारण हो सकते हैं। सिस्टोल और डायस्टोल में अंतर (Difference between Diastole and Systole) के साथ ही यह जानकारी भी जरूरी है। आपको लो ब्लड प्रेशर का जोखिम अधिक होगा, अगर आप डिहायड्रेटेड हों या ऐसा किसी दवा के कारण भी हो सकता है, जैसे:
- हाय ब्लड प्रेशर मेडिकेशन्स (High blood pressure medications)
- डाइयुरेटिक्स (Diuretics)
- नाइट्रेट्स (Nitrates)
- एंग्जायटी या डिप्रेशन मेडिकेशन (Anxiety or depression medications)
- इरेक्टाइल डिसफंक्शन मेडिकेशन्स (Erectile dysfunction medications)
लो ब्लड प्रेशर कई हार्ट, हार्मोनल और नर्वस सिस्टम प्रॉब्लम्स की वजह से भी हो सकता है। लो ब्लड प्रेशर का उपचार इसके कारणों के अनुसार किया जाता है। जैसे अगर इसका कारण कोई दवा है, तो डॉक्टर उस दवा को बंद करने या उसकी डोज में परिवर्तन की सलाह दे सकते हैं। अगर इसका कारण कोई बीमारी है तो उसके उपचार की सलाह दी जाती है।
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ध्यान दें
उम्मीद है कि सिस्टोलिक और डायस्टोलिक में अंतर (Difference between Diastole and Systole) की जानकारी आपको पसंद आई होगी। सिस्टोल और डायस्टोल, कार्डियक सायकल के दो फेज हैं। यह तब होते हैं जब दिल धड़कता है, ब्लड वेसल्स के एक सिस्टम के माध्यम से रक्त पंप करता है, जो शरीर के हर हिस्से में रक्त ले जाता है। अगर किसी को हाय या लो ब्लड प्रेशर का संदेह है, तो आपको उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए जिसमें दवाइयां और जीवनशैली में बदलाव आदि शामिल है। इसके बारे में अगर आपके मन में कोई भी सवाल हो तो तुरंत डॉक्टर से इस बारे में अवश्य जानें।
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