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कोविड-19 के इलाज के लिए 100 साल पुरानी पद्धति को अपना रहे हैं डॉक्टर, जानें क्या है प्लाज्मा थेरेपी

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Mona narang द्वारा लिखित · अपडेटेड 03/06/2020

    कोविड-19 के इलाज के लिए 100 साल पुरानी पद्धति को अपना रहे हैं डॉक्टर, जानें क्या है प्लाज्मा थेरेपी

    कोरोना वायरस की अभी तक कोई वैक्सीन तैयार नहीं की गई है। हालांकि दुनियाभर के शोधकर्ता इसका इलाज खोजने में जुटे हैं। इस बीच एक राहत की खबर है। कई देशों में कोरोना से जंग जीत चुके लोगों का प्लाज्मा कलेक्ट करके इलाज हो रहे मरीजों को चढ़ा रहे हैं। इससे कोविड-19 के मरीजों में राहत देखने को मिल रही है। प्लाज्मा ट्रीटमेंट के अच्छे परिणामों को देखते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने हाल ही में कोरोना वायरस के लिए इसके क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दे दी है। रिसर्चर्स को उम्मीद है कि इस थेरेपी से गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ठीक करने में मदद होगी।

    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट: क्या है प्लाज्मा थेरेपी?

    कोरोना वायरस का इलाज करने के लिए कई देशों में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लाज्मा थेरेपी एक बहुत पुरानी तकनीक है। इस थेरेपी में कोरोना से संक्रमित मरीज जो अब ठीक हो चुके हैं उनके रक्त से प्लाज्मा निकालकर बीमार रोगियों को ठीक करने के लिए दिया जाता है। दरअसल, जो लोग ठीक हो चुके हैं उन लोगों में एंटीबॉडी मौजूद होते हैं जो वायरस को दूर भगाते हैं। यह पैसिव इम्युनिटी की तरह काम करता है।

    कैसे काम करती है एंटीबॉडी: ऐंटीबॉडीज व्यक्ति के शरीर में उस समय विकसित होना शुरू होती हैं, जब वायरस उसके शरीर पर हमला करता है। एंटीबॉडीज वायरस पर अटैक करती हैं और उसे डिऐक्टिवेट करने का काम करती हैं। कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे डॉक्टर्स के अमुसार जब मरीज कोविड-19 से लड़कर ठीक हो जाता है तब भी उसके शरीर में ब्लड के अंदर ये ऐंटीबॉडीज काफी लंबे समय तक प्रवाहित होती रहती हैं। ऐसे में ठीक हो गए व्यक्ति के शरीर से एंटीबॉडीज को मरीज के शरीर में उन ऐंटिबॉडीज को इंजेक्ट किया जा ता है, जो उनके शरीर में जो इम्यूनिटी डेवलप करने का काम करता है। इस इम्युनिटी को पेसिव इम्युनिटी (Passive Immunity) कहा जाता है।

    कई शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि यह संक्रमित की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है। आपको बता दें, इससे पहले इबोला के मरीजों का भी ऐसे इलाज किया गया था। प्लाज्मा थेरेपी के कारण उस समय पर इबोला वायरस का डेथ रेट करीब 30 प्रतिशत तक कम हो गया था। यह थेरेपी उन लोगों की जान बचाने में कारगर सबित हो सकती है जो 60 साल से अधिक उम्र के हैं या फिर जो कोई दूसरी क्रॉनिक डिजीज से जूझ रहे हैं।

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    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट: अमेरिका और चीन में इस थेरेपी से किया जा रहा इलाज

    अमेरिका और इंग्लैंड में प्लाज्मा थेरेपी को लेकर परीक्षण शुरू हो चुका है। वहीं चीन ने इस बात का दावा किया है कि प्लाज्मा थैरेपी के जरिए कई मरीजों की स्थिति बेहतर हुई है। चीन में फरवरी महीने के बीच में कोरोना संक्रमण से ठीक हुए 20 मरीजों ने प्लाज्मा डोनेट किया था। वुहान में कई मरीजों पर इन प्लाज्मा का इस्तेमाल किया गया, जिससे उनमें सुधार देखने को मिला। जिन 20 लोगों ने प्लाजमा डोनेट किया था वो डॉक्टर व नर्से थी जो कोरोना वायरस की चपेट में आए थे। अमेरिका ने प्लाज्मा थेरेपी को हरी झंडी दे दी है। वहीं भारत ने भी इस थेरेपी के क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी दे दी है।

    कौन कर सकता है प्लाज्मा डोनेट?

    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट के लिए नीचे बताए लोग प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं:

    • कोविड-19 से पूरी तरह ठीक होने वाले लोग
    • कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने वाले लोग जिनमें 14 दिन तक दोबारा कोई लक्षण नजर न आएं
    • जिन लोगों की थ्रोट-नेजल स्वाब की रिपोर्ट तीन बार नेगेटिव आई हो

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    किन लोगों में इस्तेमाल किया जाएगा ये प्लाजमा?

    • कोरोना वायरस से संक्रमित वह लोग जिनकी स्थिति सीरियस होने के चलते आइसीयू में भर्ती किया गया हो
    • जिन लोगों का ब्लड ग्रूप समान है
    • मरीज के ब्लड में ऑक्सीजन 93 फीसद से कम होनी चाहिए
    • संक्रमण के चलते जिन लोगों के फेफड़े लगातार खराब होते जा रहे हो

    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट: प्लाज्मा थेरेपी को लेकर डब्ल्यूएचओ का बयान

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी प्लाज्मा थेरेपी को बेहतर माना है। WHO के हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम के हेड डॉक्टर माइक रेयान ने कहा है कि इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। डॉक्टर माइक का मानना है कि हाइपरिम्यून ग्लोब्युलिन रोगियों में एंटीबॉडी को बेहतर बनाता है, जो मरीजों की स्थिति को बेहतर करता है। इसका इस्तेमाल सही वक्त पर किया जाना चाहिए। यह वायरस को नुकसान पहुंचाता है। साथ ही इससे मरीज का प्रतिरक्षा तंत्र बेहतर होता है। यह रोगियों के शरीर को कोरोना वायरस से लड़ने में बेहतर होता है। जरूरी है कि इसे सही वक्त पर किया जाना चाहिए। प्लाज्मा थेरेपी हर बार सफल हो यह जरूरी नहीं है।

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    लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान नहीं करती प्लाज्मा थेरेपी

    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट में की जा रही प्लाजमा थेरेपी में मरीज के शरीर में एंटाबॉडीज पहुंचाकर उसे वायरस से लड़ने के लिए बेहतर बनाया जाता है। लेकिन यह लॉन्ग टर्म प्रोटेक्शन की गारंटी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर का खुद एंटीबॉडी बनाना भी बहुत जरूरी है। यदि शरीर खुद एंटीबॉडी नहीं बनाना शुरू करता है तो कुछ हफ्तों या महीनों में व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर हो जाएगी। पैसिव इम्यूनिटी एक समय तक ही आपको सुरक्षा प्रदान कर सकता है। हालांकि इस थेरेपी का एक नकारात्मक पक्ष यह है कि यह काफी महंगा और सीमित ट्रीटमेंट है। संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्ति से मरीज को दान से उपचार की केवल दो खुराक ही मिल सकती हैं।

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    कोरोना वायरस ट्रीटमेंट: भारत में केरल में शुरू होगी प्लाज्मा थेरेपी

    केरल को प्लाज्मा थेरेपी के जरिए इलाज करने की अनुमति दे दी है। इसके साथ केरल देश का पहला ऐसा राज्य होगा जो कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का क्लीनिकल ट्रायल करने जा रहा है।

    हम आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में कोरोना वायरस ट्रीटमेंट में की जा रही प्लाज्मा थेरेपी से जुड़ी हर जानकारी देने की कोशिश की गई है। यदि आप इससे जुड़ी अन्य कोई जानकारी पाना चाहते हैं तो आप अपना सवाल कमेंट कर पूछ सकते हैं। हम अपने एक्सपर्ट्स द्वारा आपके सवालो के जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे।

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