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Filariasis (Elephantiasis): फाइलेरिया या हाथी पांव क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 17/09/2020

Filariasis (Elephantiasis): फाइलेरिया या हाथी पांव क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय

परिचय

फाइलेरिया (हाथी पांव) क्या है?

फाइलेरिया (Filaria) एक शारीरिक बीमारी है, जिसे हिंदी में हाथी पांव कहते हैं। इसे अंग्रेजी में फाइलेरियासिस (Filariasis) और एलीफेंटिटिस (Elephantiasis) भी कहते हैं। फाइलेरिया या हाथी पांव की समस्या से पीड़ित सबसे अधिक लोगों की संख्या भारत में हैं। फाइलेरिया बीमारी का संक्रमण आमतौर से बचपन में ही हो सकता है। लेकिन इसके गंभीर लक्षण सात से आठ सालों में दिखाई दे सकते हैं। इसे फीलपांव और श्लीपद भी कहते हैं। सामान्य तौर पर उष्णकटिबंधीय देशों में इसके मरीजों की संख्या सबसे अधिक पाई जा सकती है। फाइलेरिया बीमारी परजीवी (पैरासिटिक) निमेटोड कीड़ों के कारण होता है जो छोटे धागों जैसे दिखाई देते हैं।

फाइलेरिया बीमारी फिलेरी वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी (Filariae-Wuchereria Bancrofti), ब्रूगिआ मलाई (Brugia Malayi) और ब्रूगिआ टिमोरि (Brugia Timori) नामक निमेटोड कीड़ो के कारण होती है। हालांकि, इनमें से सबसे बड़ा कारण वुचरेरिअ बैंक्रोफ्टी नाम के परजीवी को माना जा सकता है। हाथी पांव के कारण विकलांगता और कुरूपता की समस्या हो सकती है। भारतीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इसके मरीजों की बढ़ती संख्या को कंट्रोल करने के लिए सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों की शुरुआत की गई है, जो लगभग 40 करोड़ से अधिक लोगों को फाइलेरिया से बचाव करने के लिए मुफ्त में दवा प्रदान करता है।

रिपोर्ट की मानें, तो मौजूदा समय में देश में 2.3 करोड़ से अधिक लोगों को इसकी समस्या है। जबकि, भविष्य में लगभग 50 करोड़ लोगों को फाइलेरिया (Filaria) होने का जोखिम बना हुआ है।

फाइलेरिया के अलग-अलग प्रकार हो सकते हैं।

फाइलेरिया के प्रकार

परजीवी (पेरेसिटिक) कीड़ें शरीर के किस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उसके अनुसार ही फाइलेरिया की बीमारी हो सकती है, जो 3 प्रकार के होते हैं, जिनमें शामिल हैंः

लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) या एलीफेंटिएसिस (Elephantiasis)

यह लिम्फ (लसीका) की प्रणाली के साथ लिम्फ नोड (लसीकापर्व) को प्रभावित कर सकता है।

सबक्यूटेनियस फाइलेरिया (Subcutaneous Filariasis)

यह त्वचा के नीचे की परत को प्रभावित कर सकता है।

सीरस केविटी फाइलेरिया (Serous Cavity Filariasis)

यह पेट की सीरियस कैविटी को प्रभावित कर सकता है।

फाइलेरिया गंभीर बनने से पहले विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है।

फाइलेरिया (हाथी पांव) के चरण या स्टेज

फलेरिया के कीड़ों के जीवन में 5 चक्र होते हैं। जिसके मुताबिक ही हाथी पांव की समस्या के भी पांच स्टेज होते हैं, जिसमें शामिल हैंः

  1. नर और मादा के मिलन से हजारों माइक्रोफिलाराइ (Microfilariae) का जन्म होना।
  2. वेक्टर (Vector) कीड़े जो मध्यवर्ती होस्ट (Host) होते हैं, वह माइक्रोफिलाराइ का सेवन कर लेते हैं। जो दूसरा स्टेज माना जा सकता है।
  3. इसके बाद ये मध्यवर्ती होस्ट तीसरे स्टेज में परिवर्तित हो जाते हैं।
  4. फिर ये वेक्टर कीड़ें संक्रमित लार्वा यानी कीड़े के बच्चों की त्वचा की परत में संचारित करते हैं, जिसे चौथा स्टेज कहते हैं।
  5. इसके 1 साल बाद यही लार्वा वयस्क कीड़ों में परिवर्तित हो जाता है। जो इसका आखिरी और पांचवा चरण हो सकता है।

इन कीड़ों के ये सभी चरण पीड़ित व्यक्ति के शरीर के खून के अंदर होता है। इसके पहले चरण से लेकर आखिरी चरण तक होने में कई सालों का समय लग सकता है। जिसकी वजह से इसके लक्षण कई सालों के बाद दिखाई देते हैं।

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लक्षण

फाइलेरिया (हाथी पांव) के लक्षण क्या हैं?

फाइलेरिया या हाथी पांव के लक्षण सामान्यता शुरू में दिखाई नहीं देते हैं। इसके परजीवी शरीर में प्रवेश करने के लक्षण लगभग सात से आठ सालों बाद दिखाई दे सकते हैं, जिसके चलते निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

  • सामान्य और स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति के पैरों, हाथों और शरीर के अन्य हिस्सों में अचानक से बहुत ज्यादा सूजन होना
  • प्रभावित अंगों के स्किन का रंग बदलना या लाल रंग का होना
  • प्रभावित अंगों में सूजन के साथ दर्द होना
  • ऐसे लक्षणों के साथ व्यक्ति को बुखार होना
  • ये सूजन हाथ-पैरों के साथ-साथ अंडकोष में भी हो सकते हैं।
  • शुरू में ये सूजन अस्थायी हो सकते हैं, लेकिन कुछ समय बाद ये स्थायी हो सकते हैं, जिसका इलाज संभव नहीं है।

एक बात का ध्यान रखें कि, हाथी पांव की समस्या वंशानुगत नहीं हो सकती है। अगर कोई महिला या पुरुष इस बीमारी से पीड़ित है, तो इसका प्रभाव होने वाले भ्रूण या बच्चे पर नहीं पड़ सकता है।

इसके अलावा हाथी पांव के तीनों प्रकार के अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

लिम्फेटिक फाइलेरिया या एलीफेंटिएसिस के लक्षण

सबक्यूटेनियस फाइलेरिया के लक्षण

  • स्किन पर लाल चकत्ते होना
  • स्किन कलर बदलना
  • रिवर ब्लाइंडनेस (River Blindness): यह एक प्रकार के परजीवी कृमि आंकोसेरा वाल्वलस के संक्रमण से होने वाली बीमारी होती है। इसके कारण त्वचा और आंखों में गंभीर खुजली, दाने और अंधेपन की समस्या हो सकती है।

सीरस कैविटी फाइलेरिया के लक्षण

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कारण

फाइलेरिया (हाथी पांव) के क्या कारण हो सकते हैं?

फाइलेरिया (हाथी पांव) की बीमारी सबसे ज्यादा गरीब इलाकों में होने का खतरा हो सकता है क्योंकि ऐसे स्थानों में प्रदूषण के कारण मच्छरों के विकास की संभावना अधिक हो सकती है। फाइलेरिया बीमारी का सबसे मुख्य कारण फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने के कारण होता है। ये मच्छर फ्युलेक्स और मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं। ये मच्छर एक धागे समान परजीवी को छोड़ता है। ये परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश करके हाथी पांव की बीमारी का कारण बन सकते हैं।

इसके अलावा एक अकेली वयस्क मादा फाइलेरिया परजीवी नर कृमि से जुड़ने के बाद, लाखो सूक्ष्म फाइलेरिया भ्रूणों की पीढ़ियों को जन्म दे सकती है, जो शरीर में प्रवेश कर खून को प्रभावित करते हैं। इनकी यह प्रक्रिया बीमार व्यक्ति के खून की नसों में होता है।

इसके अलावा यह रोग इससे बीमार व्यक्ति के संपर्क आने में किसी अन्य व्यक्ति में भी फैल सकता है, जैसेः

  • बीमार व्यक्ति का खून किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में चढ़ाना
  • बीमार व्यक्ति का जूठा खाना या पानी पीना
  • बीमार व्यक्ति को किस करना (मुंह में बनने वाले लार्वा से इसके फैलने की संभवना हो सकती है)

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निदान

फाइलेरिया (हाथी पांव) के बारे में पता कैसे लगाएं?

फाइलेरिया या हाथी पांव का निदान करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैंः

खून में माइक्रोफिलेरिया को देखने के लिए ब्लड टेस्ट करवाना

यह ब्लड टेस्ट अक्सर गहरी नींद में होने के दौरान ही किया जाता है। ताकि, टेस्ट की नतीजों में इन कीड़ों की संख्या का अनुमान अधिक सटीक आए।

इम्यूनोडायग्नोस्टिक टेस्ट (Immunodiagnostic Test)

खून में एंटीबॉडी की जांच करने के लिए इम्यूनोडायग्नोस्टिक टेस्ट किया जा सकता है। इससे खून में फाइलेरिया परिसंचरण करने वाला प्रतिजन (Circulating Filarial Antigen (CFA)) है या नहीं यह जानने के लिए यह टेस्ट किया जा सकता है।

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रोकथाम और नियंत्रण

फाइलेरिया (हाथी पांव) को कैसे रोका जा सकता है?

फाइलेरिया या हाथी पांव से बचने का सबसे अच्छा तरीका है स्वच्छ और खुली हवा में रहना। इसका सबसे मुख्य कारण मच्छर होते हैं। इससे मच्छरों के काटने से बचना चाहिए। आमतौर पर देखा जाए, मच्छर सुबह और शाम के समय ज्यादा काटते हैं इससे बचने के लिए आप निम्न उपाय कर सकते हैंः

  • रात में सोते समय कमरे का तापमान ठंडा रखें।
  • दिन और रात के समय भी मच्छरदानी का इस्तेमाल करें।
  • अगर कूलर का इस्तेमाल करते हैं, तो उसकी सफाई का ध्यान रखें। हर दिन उसका पानी बदलें।
  • लंबे आस्तीन और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें। कोशिश करें कि हमेशा कॉटन के कपड़े पहनें ताकि शरीर को हवा लगती रहे।
  • मच्छरों को दूर रखने के लिए अपनी त्वचा पर दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, इसके लिए आपको अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
  • अगर आपके क्षेत्र में मच्छरों की समस्या अधिक है, तो ऐसी दवाइयों के इस्तेमाल के बारे में विचार करें जिससे इनका निपटारा किया जा सके।
  • आप अपने क्षेत्र की स्थिति अपने नगरपालिका को भी सूचित कर सकते हैं।

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फाइलेरिया (हाथी पांव) की समस्या होने पर मुझे क्या करना चाहिए?

  • आपको अपने पैर को साधारण साबुन और साफ पानी से हर दिन अच्छे से धोना चाहिए। घर से बाहर जाते समय और कहीं बाहर से आने के बाद भी शरीर की सफाई का पूरा ध्यान रखें।
  • हाथों-पैरों को साफ करने के लिए मुलायम कपड़े का इस्तेमाल करें, ताकि प्रभावित जगह की स्किन को किसी तरह की खरोंच न लें।
  • प्रभावित त्वचा की सफाई करते समय ब्रश का प्रयोग न करें, इसे घाव हो सकते हैं।
  • हाथों-पैरों के नाखूनों को छोटा और साफ रखें।
  • जितना हो सके व्यायाम करें। हालांकि, बहुत ज्यादा या बहुत देर तक एक्सरसाइज न करें। अगर आप हार्ट पेशेंट हैं, तो एक्सरसाइज करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह लें।
  • हर दिन थोड़ा पैदल चलें।
  • अगर आपको बहुत तेज दर्द या बुखार है, तो तुरंत अपने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र से सम्पर्क करें। ऐसी स्थिति में आपको व्यायाम नहीं करना चाहिए।

फाइलेरिया या हाथी पांव के मरीजों को क्या खाना चाहिए?

फाइलेरिया या हाथी पांव के मरीजों को अपने आहार में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनमें शामिल हैंः

  • लो फैट और प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए।
  • अधिक से अधिक मात्रा में ताजे तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • प्रोबायोटिक्स का सेवन करना चाहिए। यह आसानी से पचाए जाने वाला खाद्य पदार्थ होते हैं जिससे गैस या कब्ज की समस्या कम हो सकती है।
  • विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • जो लोग प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं उन्हें अपने खाने में सामान्य नमक के बदले ऐसे नमक का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमे डाइथाइलकार्बामाजीन की मात्रा हो।
  • कुछ शोध के मुताबिक, अजवायन की पत्तियां फाइलेरिया के उपचार में लाभकारी हो सकती हैं। इसके सेवन के लिए आप अपने आहार में इसकी पत्तियां शामिल कर सकते हैं।

हालांकि, इसका सेवन करने से पहले आपको अपने डॉक्टर की सलाह लेनी जरूरी हो सकती है।

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उपचार

फाइलेरिया (हाथी पांव) का उपचार कैसे किया जाता है?

निम्न विधियों से हाथी पांव का उपचार किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैंः

रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी

डॉक्टर्स के मुताबिक, फाइलेरिया या हाथी पांव के कारण हुए कुष्ठ रोग से प्रभावित अंगों को रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के जरिए दोबारा सही किया जा सकता है। लेकिन इसका उपचार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, इसकी रोकथाम करनी मददगार हो सकती है।

आइवरमेक्टिन (Ivermectin) और अल्बेंडाजोल (Albendazole)

कुछ शोध में आइवरमेक्टिन और अल्बेंडाजोल का इस्तेमाल भी लाभकारी पाया गया है। प्रभावित क्षेत्र को साफ करके वहां पर इसका इस्तेमाल करने से बैक्टीरियल संक्रमण से बचा जा सकता है।

एरोसोल (Aerosol)

एरोसोल (AEROSOL) मच्छर को दूर करने वाला एक स्प्रे होता है, जिसे आप अपने घर में इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, इसका इस्तेमाल आप अपने डॉक्टर की सलाह से कर सकते हैं।

फाइलेरिया उन्मूलन

भारत सरकार ने फाइलेरिया का उपचार करने और इसे नियंत्रित करने के लिए फाइलेरिया उन्मूलन नाम का कार्यक्रम चलाया है। इसके तहत सार्वजनिक दवा सेवन (एम.डी.ए.) किया जाता है, जिसमें डी.ई.सी. दवा की एक खुराक लोगों को साल में एक बार खिलाई जाती है।

इस फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तरत चिकित्सक शाम 7 से 12 बजे रात क्षेत्र के प्रत्येक परिवार में जाते हैं। जहां के परिवार के प्रत्येक सदस्य की अंगुलियों में से वे खून की बूंदे लेते हैं।

इसके अगले दिन चिकित्सक सभी लोगों को फिलपांव रोग के बैक्टीरिया मारने वाली एक खुराक सभी लोगों को देते हैं। जो निशुल्क होती है।

एक व्यक्ति को इसकी खुराक चार से छह साल तक के लिए साल में एक बार दी जा सकती है।

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डी.ई.सी. (डाइथीकार्बमैजीन साइट्रेट) की खुराक

फाइलेरिया के उपचार के लिए डाइथीकार्बमैजीन (Diethylcarbamazine) (डी.ई.सी.) का उपयोग करना लाभकारी हो सकता है। यह खून में मौजूद सूक्ष्मफाइलेरिया को खत्म कर सकता है, लेकिन वयस्क कीड़ों पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।

  • डी.ई.सी. के खुराक से इसके संक्रमण को बढ़ने से सिर्फ रोका जा सकता है, लेकिन यह उसका उपचार नहीं कर सकता है।
  • डी.ई.सी की खुराक खाने पर फाइलेरिया के कीटाणू शरीर के अंदर ही मर जाते हैं जिसके कारण व्यक्ति को हल्का बुखार, सिर दर्द, उल्टी या चक्कर की समस्या हो सकती है।
  • कभी-कभी इसकी खुराक से एलर्जी भी हो सकती है। हालांकि, इससे घबराना नहीं चाहिए। ये लक्षण कुछ समय के बाद अपने आप दूर हो जाते हैं।
  • लेकिन, अगर आपको डी.ई.सी की खुराक खाने के बाद कोई गंभीर परेशानी होती है, तो आपको तुरंत अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करना चाहिए।

डी.ई.सी की खुराक के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

डी.ई.सी की खुराक खाने से पहले आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनमें शामिल हैंः

  • खाली पेट दवा न खाएं
  • दो साल से कम उम्र के बच्चों को इसकी खुराक नहीं खिलानी चाहिए
  • गर्भवती महिलाओं को इसकी खुराक नहीं खानी चाहिए
  • गंभीर रोगों से ग्रसित लोगों को बिना अपने डॉक्टर की सलाह पर इसकी खुराक नहीं खानी चाहिए

डी.ई.सी की खुराक देने की मात्रा

  • 2 साल से 5 साल तक के बच्चों के लिए – 1 गोली 100 मिग्रा
  • 6 साल से 14 साल तक के बच्चों के लिए – 2 गोली 100 मिग्रा
  • 14 साल या इससे अधिक उम्र के बच्चों वयस्कों के लिए – 3 गोली 100 मिग्रा

अगर आपका इससे जुड़ा किसी तरह का कोई सवाल है, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। 

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 17/09/2020

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