हालांकि, माइक्रोब भी एक प्रकार का परजीवी ही है, ये फंफूद मच्छर के जननांगों और पेट में पाया जाता है। माइक्रोब का इंफेक्शन मच्छरों में लंबे समय तक रहता है, जिसके आधार पर वैज्ञानिकों का ये मानना है कि माइक्रोब का इंफेक्शन लंबे समय तक होने के कारण मलेरिया का परजीवी भी लंबे समय तक मच्छर को इंफेक्ट नहीं कर सकेगा।
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माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम कितनी प्रभावी होगी?
माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम के प्रभाव पर केन्या के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ इंसेक्ट फिजिओलॉजी एंड इकोलॉजी ने कहा है कि माइक्रोब मलेरिया के परजीवी को 100 फीसदी तक ब्लॉक कर सकती है। माइक्रोब के खोज से मलेरिया को खत्म करने में भी मदद मिल सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार हर साल पूरी दुनिया में चार लाख लोगों की जान सिर्फ मलेरिया के कारण जाती है। इसमें सबसे ज्यादा मौतें पांच साल से कम उम्र के बच्चों की होती है। हालांकि, लोग मलेरिया से बचने के लिए मच्छरदानी, स्प्रे और साफ-सफाई करते हैं। लेकिन फिर भी मलेरिया को रोकने के लिए ये प्रयास पर्याप्त नहीं होता है। ऐसे में माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम जड़ से प्रभावी साबित होगी।
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माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम कैसे काम करता है?
मलेरिया के सिर्फ 40 प्रतिशत मच्छरों में ही माइक्रोब पाए जाते हैं। माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम के लिए माइक्रोब से सबी मच्छरों को इंफेक्ट कराया जाना जरूरी है। माइक्रोस्पोरिडिया नर मच्छर से मादा मच्छर के शरीर में प्रजनन के समय जाता है। ऐसे में रिसर्चर्स दो मुख्य स्ट्रेटजी पर काम कर रहे हैं, जिससे मादा मच्छरों में माइक्रोब की संख्या बढ़ाई जा सके :
माइक्रोस्पोरिडिया के स्पोर को ज्यादा मात्रा में मच्छर में इंफेक्ट कराया जाए। नर मच्छर को लैब में माइक्रोब से संक्रमित कराया जाए और उन्हें छोड़ दिया जाएं, जिससे जब वे मादा मच्छर के साथ सेक्स करें तो उससे मादा मच्छर भी संक्रमित हो सकें। माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम करने में हमें ज्यादा मदद मिल सकती है, जिससे मलेरिया के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा भी हम घटा सकते हैं। हालांकि माइक्रोब से मलेरिया की रोकथाम कोई नई बात नहीं है। इसके पहले भी वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया की मदद से डेंगू की रोकथाम पर भी काम किया है। डेंगू की रोकथाम के लिए एक प्रकार के बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया गया, जिसका नाम वोल्बाचिया (Wolbachia) है।