निम्न रक्तचाप किसी भी उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है, जिनमें बच्चे, युवा वयस्क और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग शामिल हैं।
और पढ़ें: क्या सच में कैफीन ब्लड प्रेशर बढ़ाने में सहायक होती है?
लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?
लो ब्लड प्रेशर को कैसे कंट्रोल करें? अगर यह सवाल आपके मन में है तो आपको बता दें कि इसके लिए आयुर्वेद में कई चिकित्सा प्रणाली मौजूद हैं। जैसे-
लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज : थेरिपी
आयुर्वेद में हाइपोटेंशन के उपचार के लिए कई तरह की थेरेपीज उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग करके समस्या को मैनेज किया जा सकता है।
सरवांग शीरोधारा
यह एक आयुर्वेदिक उपचार है जिसमें दूध या तेल को कई तरह की जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर लिक्विड मिक्चर तैयार किया जाता है। फिर इसे सिर पर डाला जाता है।
अभ्यंग
अभ्यंग में शरीर में मालिश के जरिए ऊर्जा का उचित प्रवाह किया जाता है। 60 से 90 मिनट तक के लिए की जाने वाली इस प्रक्रिया से लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है।
स्वेदन
इस आयुर्वेदिक थेरेपी में गर्म पुल्टिस से 30 से 40 मिनट तक शरीर की सिकाई की जाती है। इससे शरीर से पसीना निकलता है जिससे शरीर में जमे टॉक्सिन्स आसानी से निकल जाते हैं।
शोधन कर्म
लो ब्लड प्रेशर के आयुर्वेदिक इलाज में शोधन कर्म का उपयोग भी कर सकते हैं:
- एनिमा या बस्ती : इस आयुर्वेदिक कर्म से तीनों दोष वात, पित्त और कफ को संतुलित किया जा सकता है। इसमें कई तरह की हर्ब्स का तेल या काढ़ा इस्तेमाल में लाया जाता है।
- नास्य कर्म : इसमें नांक के नोस्ट्रिल्स में औषधीय तेल की बूंदें डाली जाती हैं। यह तेल कई जड़ी-बूटियों से मिलकर बना होता है।
और पढ़ें: मुनक्का से लेकर तुलसी तक, ये 6 चीजें लो ब्लड प्रेशर में दिला सकती हैं राहत
लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज : हर्ब्स
तुलसी पत्तियां
रोज सुबह पांच से छह तुलसी के पत्ते खाने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। तुलसी के पत्तों में पोटेशियम, मैग्नीशियम और विटामिन सी उच्च मात्रा में पाया जाता है। यह यूजेनॉल नामक एंटीऑक्सिडेंट से भी भरा हुआ है जो रक्तचाप को नियंत्रण में रखता है और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।
मुलेठी (Licorice)
एडाप्टोजेनिक और एंटी-इंफ्लामेट्री गुणों से भरपूर मुलेठी के फायदे सेहत के लिहाज से बेहिसाब हैं। आयुर्वेद में, इसकी जड़ का इस्तेमाल पित्त और वात को शांत करने के लिए किया जाता है। यह निम्न रक्तचाप को भी कंट्रोल करने में काफी प्रभावी है। शोध के अनुसार, पोटेशियम की कमी के कारण हाई ब्लड प्रेशर के कारण इसे हाइपरटेंशन के रोगियों को न लेने की सलाह दी जाती है। क्योंकि इसमें रक्तचाप बढ़ाने वाला प्रभाव होता है, इसलिए यह लो ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए उपयोगी होती है। इसके लिए डॉक्टर की सलाह से आप मुलेठी कैप्सूल या इसकी जड़ का सेवन कर सकते हैं।
लहसुन
आयुर्वेद में लहसुन काफी लाभदायक माना गया है, जिसे रसोनम के नाम से जाना जाता है। इसमें भरपूर मात्रा में एनर्जी देने वाले और वायुनाशक गुण होते हैं। एक्सपर्ट दिल की कई बीमारियों के लिए इसका इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। यह पाउडर, रस व ऑयल के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
रोजमेरी (Rosemary Oil)
एक फ्लेवरिंग हर्ब के रूप में रोजमेरी का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है। रोजमेरी एसेंशियल ऑइल का उपयोग एरोमाथेरेपी में भी किया जाता है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यह हाइपोटेंशन के उपचार में भी मदद कर सकता है।
शोधकर्ताओं की माने तो रोजमेरी में फाइटोकेमिकल्स (phytochemicals) जैसे रोजमरिनिक एसिड (rosmarinic acid), कैफिक एसिड (caffeic acid), कार्नोसिक एसिड (carnosic acid) पाए जाते हैं। द जर्नल ऑफ एथ्नोफार्माकोलॉजी (The Journal of Ethnopharmacology) में छपे एक अध्ययन से पता चलता है कि रोजमेरी ऑयल का सेवन करने से हाइपोटेंशन रोगियों में रक्तचाप को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। जबकि अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि अरोमाथेरेपी मसाज में इसके इस्तेमाल से रक्तचाप, हृदय गति और रेस्पिरेटरी रेट में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
ब्राम्ही
इस इंडियन हर्ब को निम्न रक्तचाप के लिए एक और प्रभावी घरेलू उपाय है। इसे थोड़े से कपूर और दालचीनी (एक चुटकी) के साथ लिया जाना चाहिए।
अर्जुन
आयुर्वेद में अर्जुन का इस्तेमाल कई रोगों के इलाज में किया जाता है। अर्जुन की छाल का चूर्ण डॉक्टर के निर्देशानुसार लेने से लो बीपी की समस्या को सही किया जा सकता है। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में यह काफी उपयोगी है। लो ब्लड प्रेशर (हाइपोटेंशन) और हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) दोनों ही स्थितियों में अर्जुन का उपयोग किया जा सकता है।
और पढ़ें: हाइपरटेंशन की दवा के फायदे और साइड इफेक्ट्स क्या हैं?
लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज: दवा
त्रिकटु
काली मिर्च, सूखी अदरक और पिप्पली के मिश्रण से तैयार की गई यह दवा लो ब्लड प्रेशर में उपयोगी सिद्ध होती है।
मकरध्वज रस
लो ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज करने के दौरान मकरध्वज रस का सेवन प्रभावकारी होता है। हाइपोटेंशन के इलाज एक साथ ही पेरिफेरल सर्कुलेटरी फेल्योर के ट्रीटमेंट में भी यह उपयोगी है। शारीरिक कमजोरी, थकान, मांसपेशियों में ऐंठन और लो ब्लड प्रेशर के उपचार में उपयोगी इस दवा की खुराक, डॉक्टर के निर्देशानुसार ही लेनी चाहिए।
आयुर्वेदिक चूर्ण
हिंगुवाचादि चूर्ण (hinguvachadi choornam), वैश्वानारम चूर्ण (vaiswanaram choornam), अश्वगंधा चूर्ण (ashwagandha choornam) और इंदुपुकानम चूर्ण ( induppukanam choornam) लो ब्लड प्रेशर की आयुर्वेदिक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं।
ऊपर बताई गई आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन डॉक्टर की सलाह से ही किया जाना चाहिए।
और पढ़ें: मोटापा और ब्लड प्रेशर के बीच क्या रिश्ता होता है?
लो ब्लड प्रेशर का इलाज : योग
अपने निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करें। स्वस्थ जीवन के लिए हाइपोटेंशन के रोगियों के लिए योग आसन करने की सलाह दी जाती है। लो ब्लड प्रेशर योगासन इस प्रकार हैं-
- उत्तानासन (Uttanasana): यह मुद्रा मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में सुधार करती है।
- अधो मुख सवासना (Adho Mukha Svanasana): यह मुद्रा मस्तिष्क को शांत करती है और थकान से शरीर को छुटकारा दिलाती है।
- पवनमुक्तासन (Pavanmuktasana): यह मुद्रा रक्त परिसंचरण को बढ़ाती है। साथ ही पीठ के निचले हिस्से में तनाव को कम करती है।
- सर्वांगासन (Sarvangasana): यह योगासन मस्तिष्क में ब्लड सर्क्युलेशन को सुधारता है।
- मत्स्यासन (Matsyasana): यह मुद्रा पूरे शरीर में रक्त के उचित और पर्याप्त प्रवाह को सुनिश्चित करती है, जिससे रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
- बालासन (Balasana): बालासन आपके नर्वस सिस्टम को शांत करने में मदद करता है। जिससे आपके शरीर का ब्लड प्रेशर संतुलित होता है और लो ब्लड प्रेशर या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या नियंत्रित होती है।
- भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama): लो ब्लड प्रेशर के लिए भस्त्रिका प्राणायाम काफी फायदेमंद माना जाता है। सबसे पहले पद्मासन या वज्रासन जैसे किसी आरामदायक योगासन में बैठकर मन को शांत कर लें। अब बायीं नासिका को बंद करके दायीं नासिका से सांस लें और फिर छोड़ें। इसके बाद धीरे-धीरे गति बढ़ाएं। फिर 10 बार सांस लेने के बाद सांस को भरकर अंदर कुंभक करें और मूलबंध, उड्डियानबंध और जालंधर बंध लगाएं। इसके बाद दायीं नासिका को बंद करके बायीं नासिका से इसी प्रक्रिया को दोहराएं।