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डिप्रेशन के रिस्क फैक्टर
दुख हो या फिर डिप्रेशन, ये किसी भी व्यक्ति, वर्ग को प्रभावित कर सकते हैं। डिप्रेशन यानी अवसाद के रिस्क फैक्टर भी होते हैं। लेकिन ये भी सही नहीं है कि एक या फिर दो लक्षण दिखने पर आप उसको डिप्रेशन मान लें।
- अर्ली चाइल्डहुड या टीनएज ट्रॉमा
- किसी भी प्रिय की मृत्यु हो जाने पर उस दर्द से बाहर न निकल पाना। ऐसा अक्सर तब होता है जब बच्चे या फिर जीवनसाथी की मौत हो जाए। इस स्थिति में दुख चरम पर होता है।
- लो सेल्फ एस्टीम फील करना
- अगर परिवार में किसी सदस्य को डिप्रेशन की बीमारी है तो आपमें भी इसके बढ़ने के आसार हो सकते हैं।
- डिप्रेशन के कारण शराब या अन्य नशे की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति
- किसी बीमारी के कारण किसी अंग का काम न कर पाना
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इन बातों को रखें ध्यान
- सभी को कभी न कभी दुख होता है।
- आप अपनी उदासी को मैनेज करके इससे छुटकारा पा सकते हैं।
- उदास महसूस करने का मतलब यह नहीं है कि आप डिप्रेशन में चले जाएंगें।
- यदि आप दो सप्ताह से अधिक समय से लगातार दुखी महसूस कर रहे हैं या आपने अपना अधिकांश समय यूं ही बिता दिया है तो आपको सहायता की जरूरत है। बेहतर होगा कि किसी जानकार की मदद लें।
किसी के दुख को भी करें कम
- शायद आप किसी और को जानते हैं जो दुखी महसूस कर रहा है। अगर आप दूसरे व्यक्ति के दुखों को दूर करना सीख जाएंगे तो अपना दुख आपको छोटा लगने लगेगा।
- अगर कोई व्यक्ति दुखी है तो उससे पूछें कि क्या वो ठीक हैं। उनकी कुछ बातों को सुनकर ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वो उदास हैं भी या नहीं।
- व्यक्ति की बातें सुनने के बाद उसे जज न करें। पहले इत्मिनान से उसकी बातें सुन लें।
- अगर वह व्यक्ति किसी भी प्रकार की मदद नहीं लेना चाहता है, या फिर डॉक्टर से भी नहीं मिलना चाहता है तो आप उसे समझाने का काम कर सकते हैं। उस व्यक्ति को समझाएं कि उदासी कुछ समय का इमोशन होता है और बहुत ही जल्द वो इस स्थिति से बाहर आ जाएंगें।
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क्या दुखी होना सही है ?
अमेरिका में दुखी रहने को लेकर एक स्टडी की गई और सामने आया कि जो लोग अपने इमोशन को जीते हैं और उन्हें खुलकर बताते भी हैं, उनके स्वास्थ्य के परिणाम बेहतर आते हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के मनोवैज्ञानिकों ने रिसर्च में 1,300 एडल्ट्स का परीक्षण किया और नकारात्मक भावनाओं के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को भी देखा।
जिन लोगों ने अपनी भावनाएं यानी अपने दुख को लोगों के बीच खुलकर बताया था, उन लोगों को आने वाले समय में गंभीर बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा।
जबकि जिन लोगों ने अपनी समस्याओं और दुख के बारे में बातें छिपाई थीं, उन्हें आगे चलकर डिप्रेशन की समस्या का शिकार होना पड़ा था।
उदासी को मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है जबकि डिप्रेशन मेंटल हेल्थ से जुड़ा हुआ मामला है। अगर कोई व्यक्ति उदास है तो कुछ पल के बाद उसका मूड अच्छा भी हो जाएगा जबकि डिप्रेशन में स्थितियां बिगड़ जाती हैं।
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क्या दुखी रहना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर डालता है बुरा प्रभाव ?
दुखी रहने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है और बहुत सी बीमारियां घर कर लेती हैं और हम मानसिक तनाव से भी ग्रस्त हो सकते हैं।
यदि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में दुखी रहने की आदत डाल लेते हैं तो समझ जाएं कि आप जीवन में कुछ न करने के मार्ग पर हैं और आपका जीना व्यर्थ हो सकता है।
यदि आप दुखी होते हैं तो ऐसे में न तो आपका कुछ खाने का मन होता है न ही इतनी क्षमता होती है कि आप अपने कार्य को सुचारु रूप से कर सकें।
महिलाएं अधिक हैं तनाव की शिकार
तनाव पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। बदलते सामाजिक परिवेश में महिलाएं बड़े पैमाने पर तनाव की शिकार हो रही हैं। इनमें जॉब करने वाली महिलाओं की तादाद सबसे अधिक है। जहां घर पर रहने वाली महिलाओं को घर के माहौल से तनाव होता है, वहीं जॉब करने वाली महिलाएं घरेलू व बाहरी दोनों कारणों से तनाव की शिकार हो रही हैं।
महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत सहनशील होती हैं पर आज के युग में इतनी जिम्मेदारियों के तले दबकर रह गई हैं जहां उन्हें खुद के लिए न तो वक्त मिलता है और न ही खुश रहने की कोई चाह होती है। घर और परिवार को खुश रखने के लिए वह खुद की खुशी का कोई ख्याल नहीं रख पातीं जिससे उनकी सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
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ऐसे करें बचाव
अगर आपको उदासी है तो अपने प्रियजनों के बीच खुलकर अपनी बात रखें। हो सकता है कि कुछ दिन बाद अच्छा महसूस होने लगे लेकिन आप किसी दुख को मन में ही दबाए रखेंगे तो ये डिप्रेशन का कारण बन सकता है।
हमारी ज्यादातर समस्याओं का इलाज परिवार के सदस्यों के पास ही होता है। अगर आप परिवार के सदस्यों पर भरोसा करते हैं तो उनसे अपना दुख जरूर बांटें। दुख और सुख कुछ समय के मेहमान होते हैं, उन्हें लेकर ज्यादा विचार या फिर नकारात्मक विचारों को मन में न लाएं। अगर फिर भी अपकी समस्या का समाधान न निकल रहा हो तो एक बार डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।