कहते हैं किसी भी बीमारी को दूर करने के लिए डॉक्टर द्वारा किये जाने वाले ट्रीटमेंट की खास भूमिका होती है। ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर ड्रग्स के साथ-साथ पेशेंट की सही देखभाल की भी सलाह देते हैं। इसलिए आज इस आर्टिकल में ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) के बारे में समझने की कोशिश करेंगे।
ड्रग डिपेंडेंसी क्या है?
ड्रग डिपेंडेंसी और ड्रग एडिक्शन में अंतर क्या है?
ड्रग डिपेंडेंसी के लक्षण को कैसे समझें?
ड्रग एब्यूज कैसे ड्रग डिपेंडेंसी में कैसे बदल सकता है?
किस तरह के ड्रग्स धीर-धीरे डिपेंडेंसी का कारण बन सकते हैं?
चलिए अब ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) से जुड़े इन सवालों का जवाब जानते हैं।
ड्रग डिपेंडेंसी को अन्य मेडिकल टर्म में फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) भी कहा जाता है। अब अगर इसे आसान शब्दों में समझें तो जब किसी व्यक्ति को एक या एक से अधिक ड्रग्स पर फंक्शन करने के लिए निर्भर होना पड़ता है, तो ऐसी स्थिति ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) या फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) कहलाती है। अगर सेवन किये जा रहे ड्रग्स को बिना मेडिकल एक्सपर्ट के कन्फर्मेशन से बंद किया जाए तो ऐसी स्थिति व्यक्ति या पेशेंट के लिए घातक भी हो सकती है। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि ड्रग डिपेंडेंसी और ड्रग एडिक्शन में अंतर क्या हो सकता है, तो चलिए इसे भी आगे समझने की कोशिश करते हैं।
ड्रग डिपेंडेंसी और ड्रग एडिक्शन में अंतर क्या है? (Difference between Drug dependence and Drug Addiction)
ड्रग डिपेंडेंसी और ड्रग एडिक्शन में अंतर इस प्रकार समझे जा सकते हैं। जैसे:
ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence)
ड्रग डिपेंडेंसी कुछ विशेष शारीरिक स्थितियों में देखी जा सकती है। जैसे व्यक्ति को हाय ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) की समस्या हो, डायबिटीज (Diabetes) की तकलीफ हो या फिर ग्लूकोमा (Glaucoma) की समस्या हो। वहीं ड्रग डिपेंडेंसी की स्थिति बदल भी सकती है हाय ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, ग्लूकोमा या किसी अन्य बीमारी के होने पर डोज में बदलाव देखा जा सके।
ड्रग एडिक्शन (Drug Addiction)
ड्रग एडिक्शन की समस्या ड्रग डिपेंडेंसी के बिना हो सकती है। अब अगर कोई शारीरिक परेशानी ना हो और दवाओं या ड्रग्स का सेवन किया जा रहा हो। कुछ लोगों की आदत होती है की प्रिस्क्राइब्ड डोज से ज्यादा ड्रग्स का सेवन करना। ऐसी स्थिति ड्रग एडिक्शन (Drug Addiction) की ओर इशारा करती है।
ये लक्षण ड्रग डिपेंडेंसी के लक्षण की ओर इशारा करती हैं। इसलिए पेशेंट एवं केयर टेकर को इस ओर ध्यान रखना चाहिए कि अगर डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब्ड डोज की अवधि पूरी हो गई है तो उसका सेवन ज्यादा ना करें या डॉक्टर से सलाह अनुसार ही करें। वहीं अगर यहां ऊपर बताये लक्षण देखे जा रहें हैं तो सतर्क हो जायें और इसे इग्नोर ना करें।
ड्रग एब्यूज कैसे ड्रग डिपेंडेंसी में कैसे बदल सकता है? (How drug abuse can lead to dependence)
नैशनल इंस्टिट्यूट ऑन ड्रग एब्यूज (National Institute on Drug Abuse) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार कुछ लोग किसी मेडिकल कंडिशन या फिर दर्द से जुड़ी समस्याओं के लिए प्रिस्क्राइब्ड मेडिसिन का सेवन करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे पेन किलर या अन्य हेल्थ कंडिशन के लिए ड्रग्स का सेवन करते हैं और इन्हीं ड्रग्स की धीरे-धीरे आदत पड़ जाती है, जो ड्रग डिपेंडेंसी की स्थिति में बदल जाती है। इसलिए निम्नलिखित स्थितियों में ध्यान रखना बेहद जरूरी है या इन्हें इग्नोर नहीं करना चाहिए। जैसे:
ड्रग एडिक्शन की फेमली हिस्ट्री (Family history of addiction) होना।
इन ऊपर बताई गई स्थितियों के अलावा मेंटल हेल्थ कंडिशन (Mental health conditions) भी ड्रग एब्यूज और ड्रग डिपेंडेंसी की स्थिति को पैदा करने का काम कर सकती है।
किस तरह के ड्रग्स धीर-धीरे डिपेंडेंसी का कारण बन सकते हैं? (Causes of Drug dependence)
निम्नलिखित ड्रग्स धीर-धीरे डिपेंडेंसी की स्थिति पैदा का सकती है। जैसे:
ऑपिऑइड्स (Opioids)
ऑपिऑइड्स दर्द की समस्याओं को दूर करने के लिए डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब की जाती हैं। अगर इन दवाओं का सेवन जरूरत से ज्यादा वक्त तक किया जाए या डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब्ड डोज से ज्यादा सेवन किया जाए तो यह ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) यानी फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) का कारण बन सकती है।
एंटीडिप्रेसन्ट (Antidepressants)
एंटीडिप्रेसन्ट ड्रग्स एंग्जाइटी, लो मूड या फिर सुसाइडल थॉट्स को दूर करने के लिए डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब की जाती है। वैसे तो डॉक्टर एंटीडिप्रेसन्ट ड्रग्स की डोज डिसाइड करते हैं, लेकिन अगर पेशेंट इसका सेवन अपनी मर्जी के अनुसार करते हैं या डॉक्टर द्वारा बताये अनुसार नहीं करते हैं, तो ऐसी स्थिति भी फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) का कारण बन सकती है।
बेंजोडायजेपाइन (Benzodiazepines)
बेंजोडायजेपाइन, नर्वस सिस्टम डिप्रेसेंट (Nervous system depressants) ग्रुप की दवा है। इन ग्रुप्स की दवाओं का सेवन नींद से जुड़ी समस्या या एंग्जाइटी की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है। इन दवाओं का सेवन कम समय के लिए या एक सिमित अवधि के लिए ही प्रिस्क्राइब की जाती है, लेकिन अगर डॉक्टर द्वारा द्वारा प्रिस्क्राइब्ड डोज से ज्यादा सेवन किया जाए तो यह ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) यानी फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) का कारण बन सकती है।
नोट: ऐसी ही कई अन्य ड्रग्स भी हैं, जिसका सेवन अगर डॉक्टर द्वारा बताये अनुसार अगर ना किया जाए तो ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) का कारण बन सकती है। इसलिए अपनी मर्जी से किसी भी दवाओं का सेवन ना करें।
उम्मीद करते हैं कि आपको इस आर्टिकल की जानकारी पसंद आई होगी और आपको ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) यानी फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अगर आपके मन में ड्रग डिपेंडेंसी (Drug dependence) या फिजिकल डिपेंडेंसी (Physical dependence) से जुड़े अन्य कोई सवाल हैं, तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। आप अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में विजिट करें।
शारीरिक बीमारी हो या मानसिक परेशानी दोनों से ही दूर रहें। इस बदलते वक्त में तनाव की वजह से कई शारीरिक समस्या अपने आप मनुष्य को शरीर को अपना आशियाना बना लेती है। जबकि इन स्थिति से अपने आपको बचाये रखें। जानिए मेंटल हेल्थ को हेल्दी रखने के लिए मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल दिल्ली के मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट के डायरेक्टर एवं हेड डॉ. समीर मल्होत्रा की क्या है राय इस नीचे 👇 दिए लिंक में।
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