पेरेंट्स हमेशा टीनएजर्स से कम्युनिकेशन के लिए “ओपन विंडो” मॉडल ही फॉलो करें। इस अवस्था में टीनएजर्स में कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। उनके अंदर ज्यादातर जिज्ञासाएं इन्हीं बदलावों के कारण होती हैं, जिसे वे महसूस करते हैं। उनके सवालों से बचने के लिए यदि आप ये प्रतिक्षा करते हैं कि कुछ समय बाद वे सवालों को भूल जाएगें और तब तक के लिए आप टाल दें, तो ये गलत होगा। आपको उनकी भावनाओं को समझते हुए, उनके सवालों को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि, देर हो जाने पर चीजों को नियंत्रण में रखना बहुत कठिन होगा।
टीनएजर्स के सवालों का जवाब देने के लिए हमेशा तैयार रहें
बतौर पेरेंट्स बेशक बच्चे से आपके पास कहने के लिए बहुत कुछ होगा, लेकिन, कभी—कभी आपको बच्चे की बातों को भी सुनना चाहिए। टीनएजर्स के सवालों से आप उनके मानसिक विकास के मूल जड़ तक पहुंच पाएंगे। उनकी बातों को काउंटर करने से बेहतर है कि आप उनकी बातों को सुनें। इस बारे में दिल्ली की पेरेंटिंग काउंसलर रीता वासवानी हेलो स्वास्थय को बताती हैं,”बच्चों को जवाब देने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप उनसे बात करें और उनके सवालों को जवाब देते हुए उन्हेंं सही और गलत का फर्क बताएं।”
जो बच्चों को बताते हैं उसे खुद भी अभ्यास करें
अपने बच्चे में जिस व्यवहार को देखने की आप आशा करते हैं, उसे अपने व्यवहार में भी शामिल करें। किशोर के अजीब सवाल सुन कर आप शॉक होने के बजाए, उससे उस विषय पर बात करें और समझाएं।माता-पिता अपने किशोर के लिए रोल मॉडल के रूप में होते हैं, न्यूयॉर्क के मनोचिकित्सक लिज मॉरिसन कहते हैं कि “ऐसा करना टीनएजर्स के लिए पॉजिटिव रहता है, जहां माता-पिता बच्चे के सभी विषयों पर खुलकर बात करते हैं, वे टीनएजर्स की जिज्ञासा जल्दी शांत होने के साथ उनकी पेरेंट्स के साथ बॉन्डिंग भी अच्छी रहती है।
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