बच्चों का बचपन खेलते हुए ही अच्छा लगता है। लेकिन बहुत से ऐसे बच्चे होते हैं, जिनका बचपन पेरेंट्स के सामने अंधरे छाव की तरह निकलता है। हम बात कर रहे हैं ऑटिस्टिक बच्चों की। जिनका मानसिक विकास नॉर्मल बच्चों की तरह नहीं हो पाता है। यह चुनौती केवल बच्चे के लिए ही नहीं, बल्कि पेरेंट्स के लिए भी संघर्ष भरी होती है। इस बार के वर्ल्ड ऑटिज्म डे (world autism day) पर हमनें बात किया एक ऐसे ही ऑटिज्म के शिकार बच्चे के पेरेंट्स से, जो कि दिल्ली में रहने वाले हैं और इनका 7 साल का बेटा, रियांश को ऑटिज्म की समस्या का शिकार है। रियांश की मां ने हमारे साथ बातचीत में शयर किया कि उन्हें कब उसकी इस बीमारी के बारे मे पता चला और क्या-क्या चुनौतिया आती हैं, उनके सामने। इसी के साथ ही वो कैसे इसे संभालती हैं। इस इंटरव्यू को शुरू करने से पहले हम थोड़ा से यह जान लेते हैं कि ऑटिज्म (Autism) है क्या।
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ऑटिज्म क्या है (what is Autism)?
ऑटिज्म (Autism) को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism spectrum disorder, ASD) भी कहते हैं और यह एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। जो व्यक्ति की मानसिक विकास और क्षमता को प्रभावित होता है। इसके शिकार व्यक्ति को अपने विचार और भवनाओं को व्यक्त करने में दिक्कत होती है। एक तरह से कह सकते हैं कि इसके शिकार व्यक्ति से आपकी बातों का रिसपान्स मिलना मश्किल होता है। ऐसे कंडिशन में ऑटिस्टिक व्यक्ति को समाज या सभी जगह सामान्य व्यवहार करने में काफी दिक्कत होती है। वो सामान्य व्यवहार नहीं कर पाते हैं। ऑटिज्म एक तरह का डिसऑर्डर है, इसके शिकार मरीज को एक्टिवटीज भी बहुत कम करते हैं। वो किसी एक काम को कही लगातार करते रहते हैं। वो किसी कार्य में भी हिस्सा बहुत कम लेते हैं। इसका पता व्यक्ति में एर्ली स्टेज यानी कि बचपन में ही लग जाता है।
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जानें इस इंटरव्यू में कि ऑटिस्टिक बच्चे की पेरेंट्स में क्या-क्या चैलेंजस होते हैं
आपके बेटे का नाम (Name) और उम्र क्या है?
मेरे बेटे का नाम रियांश है और उसकी उम्र 7 साल की है।
आपको उसकी ऑटिज्म (Autism) बीमारी के बारे में कब पता चला?
मैं इसे अपनी जीवन की सबसे बड़ी गलती मानती हूं कि सही उम्र में, मैं उसकी इस बीमारी काे समझ नहीं सकी। वैसे तो इस बीमारी का पता बच्चे में 18 महीने की उम्र में ही पता चल जाता है। जब वो उसके नामको बुलाने पर वो कोई रिसपॉन्स नहीं देता है। लेकिन मुझे इसका पता उसके 3 साल की उम्र में पता चला। मेरे घर वाले बोलते थें कि उसके नाम को बुलाने पर वो कोई रिसपॉन्स नहीं देता है, पर मैं ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। क्योंकि जब भी मैं उसे चॉकलेट दिखाती, तो वो मेरे पास लेने के लिए आ जाता था। तो मुझे लगा कि वो भी दूसरे बच्चे की तरह नाॅर्मल है। लकिन असल में वो केवल अपनी जरूरत की चीजों पर ही रिसपॉन्स कर रहा था। फिर धीरे-धीरे उसकी बहुत सारी दिक्कतें सामने आने लगी।
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आपके बेटे को किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
पहले तो उसकी लाइफ कठिन थी, वो बोल अभी भी नहीं पता है, लेकिन काफी हद तक वो अपनी चीजों एक्सप्रेस कर पाता है। शुरूआत में अगर उसे टायलेट लगती थी, तो बता नहीं पाता था, जहां होता था, वहीं कर देता है। इसी तरह भूंख लगने पर भी वो रोता रहता है और कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन अब वो ट्रेनिंग के माध्यम से वो अपनी बात बता लेता है। जब भूंख लगती है, तो किचन में आकर पॅाइंट्स के माध्यम से बता देता है कि उसे भूंख लगी है। इन सबके अलावा शुरूआती दाैर में बहुत से समस्याएं आयी।
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आप उसे कैसे संभालती है और आपके लिए क्या चैंलेंस हैं (How to manage)?
शुरुआती दौर में मेरी लिए बहुत चैलेंजेस थें और आज भी है। पहले तो समझ नहीं आ रहा था कि कैसे सब हैंडल करूंगी। पर समय के साथ, उसे थेरिपिस्ट के माध्यम से ट्रेंन किया। आप समझ सकते हैं, जो बच्चा अपनी भावनाएं तक नहीं जता पाए कि उसे भूख लगी है। वो कैसी लाइफ होगी। मैं समझ ही नहीं पाती थी कि उसे हैंडल कंरू कैसे। उसके ट्रीटमेंट और ट्रेनिग के बाद उसमें काफी सुधार आया। घर पर तो सब चल जाता है, लेकिन ऐसे बच्चों के लिए मुश्किल वहां से शुरू होती है। जहां से उनकी सोशल लाइफ शुरू होती है और एक बच्चे की सोशल लाइफ उसके स्कूल से शुरू होती है। अब वो भी दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाता है। बस उसके भविष्य की चिंता रहती है।
उसका डे सेड्यूल और लाइफस्टाइल (Lifestyle & schedule) क्या है?
उसकी लाइफस्टाइल भी दूसरे बच्चों की तरह है। वाे भी स्कूल जाता है। अपनी पसंद की चीजें खाता है। दिन में सोना, शाम को टयूशन पढ़ना और टीवी देखना। रात को उसे अब सोने में कोई दिक्कत भी महसूस नहीं होती है। हां लेकिन वो दूसरे बच्चों के साथ खेलता कम है। वो अकेले खेलना या ड्राइंग करना ज्यादा पसंद करता है।
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आप उसे ट्रवलिंग के दौरान कैसे हैंड्ल करती है?
हम उसे ज्यादा लॉन्ग ट्रैवलिंग में अभी तक लेकर नहीं गए हैं। पर हम जब भी बाहर घूमने जाते हैं, तो मैं और मेरे हसबैंड दोनों ही संभालते हैं। वो हमें परेशान नहीं करता है। हम लोग साथ में शॉपिंग करते हैं। फिर उसकी पसंद का डिनर कर के वॉपस आ जाते हैं।
क्या उसका मेडिकल ट्रीटमेंट (Medical Treatment) चल रहा है और अभी उसमें कोई सुधार आया?
जैसे ही मुझे इसकी बीमारी के बारे में पता चला, मैं ने तुरंत डाॅक्टर से बात किया। अभी डॉक्टर एंड थेरिपिस्ट के अंडर इसका ट्रीटमेंट चल रहा है। अब इसमें काफी सुधार भी आ चुका है।
आपके बच्चे में ऑटिज्म के क्या-क्या लक्षण हैं?
ऑटिज्म के शिकार बच्चे में बहुत सारे लक्षण होते हैं। अगर मैं अपने बेटे में लक्षणों की बात करूं तो वो अपनी लाइफ स्किल्स के बारे में बता नहीं पाता था। दूसरे बच्चों के साथ उसे खेलेने में दिक्कत होती है। उसके दिमाग में जो एक काम चढ़ जाता था। वो उसे ही करता रहता था। जिस काम को दूसरे बच्चे करने में थक जाते। वही वो इस काम को बिन थके घंटो तक करता। किसी के बातों का रिसपॉन्स नहीं करना आदि, ऐसी बहुत सी आदते थी।
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आप दूसरे पेरेंट्स काे क्या संदेश देना चाहती हैं?
मैं सभी पेरेंट्स को यह बोलना चाहूंगी कि ऑटिज्म के शिकार बच्चे में शुरुआती दौर से ही बहुत से लक्षण नजर आने लगते हैं। छोटे-छोटे लक्षणों को उन्हें इग्नोर नहीं करना चाहिए। एक बार डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि जिनती जल्दी वो इस बात को स्वीकार लेंगे। उतनी जल्दी ट्रीटमेंट द्वारा बच्चे को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से बहार निकाला जा सकता है। अगर आप अपने बच्चे की इस कमी को अपनाएंगे, तभी समाज भी उसे स्वीकारेगा।
तो आपने जाना कि ऑटिज्म के शिकार बच्चे को पेरेंट्स को किस-किस तरह के परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसका समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। क्योंकि कहा जाता है कि बच्चे का विकास 5 साल की उम्र तक ज्यादा होता है। तो ऐसे में इलाज जल्दी शुरु होगा, बच्चे के लिए उतना ही अच्छा होगा। ऐसे लक्षण नजर आने पर डाॅक्टर से तुरंत बात करनी चाहिए।
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