बच्चों की बॉडी में किसी भी बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता (Immunity) विकसित करने के लिए टीकाकरण किया जाता है। टीकाकरण (Vaccination) मौखिक और इंजेक्शन के रूप में किया जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे वैक्सीन कहते हैं। बच्चों में संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे ज्यादा प्रभावी एवं किफायती तरीका माना जाता है। इस आर्टिकल में हम टीकाकरण या बेबी वैक्सिनेशन (Baby vaccination) के बारे में आपको बताएंगे।
हमने पुणे के खराडी में स्थित मदरहूड हॉस्पिटल के डॉक्टर सचिन भिसे से बेबी वैक्सिनेशन (Baby vaccination) के बारे में खास बातचीत की। डॉक्टर भिसे डीएनबी (पीडियट्रिक्स), फैलोशिप (निओनेटोलॉजी एंड पीडियाट्रिक्स क्रिटिकल केयर) पीडियाट्रीशियन एंड निओनेटोलॉजिस्ट हैं। डॉक्टर भिसे ने कहा, ‘भारत एक विकासशील देश है। यहां पर कुपोषण बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से बच्चों में संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। ऐसे में देश के हर बच्चे का वैक्सिनेशन जरूरी है। उनके मुताबिक, ऐसी अनेकों बीमारियां है, जिनके संपर्क में आने से पहले ही बच्चे को वैक्सीन देकर उन्हें सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।’
वैक्सिनेशन के साइड इफेक्ट्स के सवाल पर डॉक्टर भिसे ने कहा, ‘वैक्सिनेशन के साइड इफेक्ट्स मामूली होते हैं। अभी तक वैक्सिनेशन के साइड इफेक्ट्स के गंभीर मामले सामने नहीं आए हैं। बच्चों के लिए वैक्सिनेशन सुरक्षित है।’ उन्होंने कहा कि 99 प्रतिशत मामलों में वैक्सिनेशन के साइड इफेक्ट्स अपने आप ठीक हो जाते हैं।
उन्होंने बताया, ‘उदाहरण के लिए डीपीटी के वैक्सीन में बच्चों को हल्के दर्द का अहसास हो सकता है। बुखार भी आ सकता है लेकिन, बुखार की दवा देने पर यह ठीक हो जाता है।’
वैक्सीन की कीमत के सवाल पर डॉक्टर सचिन भिसे ने कहा, ‘विभिन्न बीमारियों के इलाज की कीमत के मुकाबले इनके वैक्सीन की कीमत काफी कम है। ऐसे में इनकी रोकथाम सबसे आसान तरीका है।’
उन्होंने यह भी कहा कि हर हाल में सभी बच्चों का वैक्सिनेशन किया जाना चाहिए। डॉक्टर भिसे ने बताया कि वैक्सीन बॉडी में जाकर एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी बना लेती हैं, जो रोगों के संक्रमण को बॉडी में विकसित होने से पहले ही नष्ट कर देती हैं।
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बेबी वैक्सिनेशन: बच्चों को दिए जाने वाले कुछ जरूरी वैक्सीन
टीका (वैक्सीन) क्या होता है?
टीके एंटीजेनिक (antigenic) पदार्थ होते हैं। टीके के रूप में दी जाने वाली दवा या तो बीमारी के कारक जीवित बैक्टीरिया को मार देती है या उन्हें अप्रभावी करती है। इसके अलावा, टीका किसी पदार्थ का शुद्ध रूप जैसे – प्रोटीन आदि हो सकता है। सबसे पहले चेचक का टीका आजमाया गया था।
बेबी वैक्सिनेशन: वेरिसेला (चिकनपॉक्स) वैक्सीन
शिशुओं को चिकनपॉक्स से बचाने के लिए उन्हें वेरिसेला वैक्सीन (चिकनपॉक्स वैक्सीन) दिया जाता है। स्कूल और बाहरी माहौल में यह वैक्सीन शिशु के चिकनपॉक्स के संपर्क में आने से उसकी रक्षा करता है।
कब दिया जाता है चिकनपॉक्स वैक्सीन?
सेंटर डीजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक, 12 महीने से लेकर 18 वर्ष की आयु तक बच्चों को चिकनपॉक्स वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। सीडीसी के मुताबिक, चिकनपॉक्स वैक्सीन का पहला डोज 12 और 15 महीने के बीच दिया जाना चाहिए। इसका दूसरा डोज चार और छह वर्ष के बीच में दिया जाना चाहिए।
चिकनपॉक्स वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट्स
अध्ययनों में इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि ज्यादातर बच्चों के लिए वेरिसेला (चिकनपॉक्स) वैक्सीन सुरक्षित होता है लेकिन, इसके कुछ हल्के दुष्प्रभाव भी होते हैं। इनके बारे में नीचे बताया गया है।
- सूजन और इंजेक्शन वाले हिस्से के आसपास लालिमा पड़ना
- बुखार
- रैशेज
बेबी वैक्सिनेशन: रोटावायरस वैक्सीन (आरवी)
रोटावायरस सबसे ज्यादा संक्रामक वायरस होता है। इससे शिशुओं और बच्चों में गंभीर डायरिया होता है। इस वायरस के संपर्क में आने से उल्टी और बुखार हो सकता है। यदि इसका इलाज ना किया जाए तो इससे डीहाइड्रेशन और मृत्यु तक हो सकती है। पाथ नामक अंतरराष्ट्रीय और गैर लाभकारी संगठन के मुताबिक, हर वर्ष दुनियाभर में डायरियल डिजीज से पांच लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इसमें से एक तिहाई मौतें रोटावायरस की वजह से होती हैं। रोटावायरस के संपर्क में आने से लाखों बच्चों को हर वर्ष अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
कब दिया जाता है रोटावायरस वैक्सीन?
रोटावायरस वैक्सीन 6, 10, 14 हफ्ते में तीन बार जाता है। इसमें बेबी को 5 ड्रॉप ओरली दी जाती हैं। हालांकि, एलर्जी के कुछ मामलों में शिशुओं को रोटावायरस वैक्सीन नहीं मिल पाता है।
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रोटावायरस के साइड इफेक्ट्स
अन्य वैक्सीन की तरह रोटावायरस वैक्सीन के कुछ हल्के साइड इफेक्ट्स होते हैं।
- टेम्प्रेरी डायरिया या उल्टी होना
- बुखार
- ऐप्टेटाइट का कम होना
- चिड़चिड़ापन
बेबी वैक्सिनेशन: हेपेटाइटिस ए वैक्सीन
हेपेटाइटिस ए लिवर की एक एक्यूट बीमारी है। यह हेपेटाइटिस ए वायरस से फैलती है। इसके लक्षण एक हफ्ते से लेकर कई महीनों तक रह सकते हैं। शिशुओं के लिए यह कई मामलों में खतरनाक होती है।
कब दिया जाता है हेपेटाइटिस ए का वैक्सीन?
सीडीसी के मुताबिक, हेपेटाइटिस का पहला डोज एक साल पूरा होने पर दिया जाना चाहिए। इसका दूसरा डोज इसके छह या एक वर्ष बाद दिया जाना चाहिए।
हेपेटाइटिस ए वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स
- इंजेक्शन वाले हिस्से के आसपास सोरनेस।
- सिर दर्द
- थकान
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मेनिंगोकोकल वैक्सीन (एमसीवी)
मेनिंगोकोकल एक खतरनाक बैक्टीरियल बीमारी है। मेनिंगोकोकल से मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के चारों तरफ मौजूद सुरक्षा घेरे में इंफ्लमेशन और ब्लडस्ट्रीम में संक्रमण होता है।। इस बीमारी से बचाव करने के लिए मेनिंगोकोकल वैक्सीन दिया जाता है।
कब दिया जाता है मेनिंगोकोकल वैक्सीन?
11 से 12 और 16 वर्ष तक मेनिंगोकोकल वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। इस वैक्सीन को मेनाक्ट्रा भी कहा जाता है।
हेपेटाइटिस बी
हेपेटाइटिस बी में बच्चों का लिवर खराब हो जाता है। हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी वैक्सीन दिया जाता है। इसके तीन से चार डोज दिए जाते हें।
कब दिया जाता है हेपेटाइटिस बी का वैक्सीन?
इसका पहला डोज शिशु के जन्म के बाद दिया जाता है। दूसरा डोज एक से दो महीना पूर्ण होने पर दिया जाता है। जरूरत पड़ने पर इसका तीसरा डोज चौथे महीने में दिया जाता है और आखिरी छह से 18 महीनों पर दिया जाता है।
बेबी वैक्सिनेशन: डिप्थीरिया, टेटनस और व्हूपिंग कफ (परटुससिस, डीटीएपी)
बच्चों को DTaP वैक्सीन के तीन डोज दिए जाते हैं। 6, 10 और 14वें हफ्ते में कम्रश: ये डोज दिए जाते हैं।
बेबी वैक्सिनेशन: हेमोफिलस इनफ्लेंजा टाइप बी (Hib) वैक्सीन
Hib वैक्सीन 3-4 डोज में दिया जाता है। हालांकि, यह इसके ब्रांड पर भी निर्भर करता है कि बच्चे को कितने डोज दिए जाएं। इसका पहला डोज 2 महीने, दूसरा चार महीने पर और जरूरत पड़ने पर तीसरा डोज छह महीने पर दिया जाता है। इसका आखिरी डोज 12-15 महीनों के बीच दिया जाता है।
बेबी वैक्सिनेशन: इन्फ्लूएंजा(Flu)
प्रत्येक बच्चे को इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के छह महीने पर दिया जाता है। वहीं, नौ वर्ष से छोटे बच्चों को इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के दो डोज की जरूरत होती है। यदि आपके बच्चे को भी एक से अधिक डोज की जरूरत हो तो एक बार डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
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बेबी वैक्सिनेशन: खसरे का टीका (mumps)
यह वैक्सीन बच्चों को खसरे की बीमारी से बचाता है। बच्चों को एमएमआर (खसरे) वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। पहला डोज 12-15 महीने पर और दूसरा डोज 4-6 वर्ष की उम्र के बीच दिया जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में खसरा एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरा है।
बेबी वैक्सिनेशन: न्यूमोकोकल वैक्सीन
न्यूमोकोकल बीमारी एक प्रकार का संक्रमण होता है, जो स्टेरेप्टेकोकोकस न्यूमोनिया बैक्टीरिया से होता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे निमोनिया के नाम से जाना जाता है। इससे कान में संक्रमण और मेनिनगिटिस जैसी समस्या हो सकती है। इस बीमारी से बचाव के लिए बच्चों को प्रेनव्नार (पीसीवी) के चार डोज दिए जाते हैं। इसका पहला डोज दो महीने, दूसरा चार महीने और तीसरा डोज छह महीने पर दिया जाता है। इसका चौथा डोज 12-15 महीनों पर दिया जाता है।
वहीं, कुछ बच्चों को न्यूमोवेक्स (पीपीएसवी) के एक डोज की जरूरत होती है। न्यूमोकोकल बीमारी से अतिरिक्त सुरक्षा के लिए यदि आपके बच्चे को एक्सट्रा डोज की जरूरत पड़ती है तो अपने डॉक्टर से बात करें।
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पोलिया (IPV) वैक्सीन
पोलिया एक ऐसी घातक बीमारी है, जिससे शिशुओं की बॉडी में लकवा मार जाता है। इससे बचाव के लिए बच्चों को पोलियो वैक्सीन (IPV) के चार डोज की जरूरत होती है। इसका पहला डोज दो महीने और दूसरा डोज चार महीने पर दिया जाता है। पोलियो वैक्सीन का तीसरा डोज 6-18 महीने और चौथा डोज 4-6 वर्ष की उम्र में दिया जाता है।
अंत में हम यही कहेंगे बच्चे का टीकाकरण (वैक्सिनेशन) सबसे ज्यादा जरूरी है। जानलेवा संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए अपने बच्चों को सही समय पर टीके अवश्य लगवाएं। हर मां को अपने बच्चे का टीकाकरण कराना चाहिए। टीकाकरण बच्चों को जीवन भर हेल्दी रखने में मददगार साबित होता है।
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