विकास और व्यवहार
शिशु का विकास कैसा होना चाहिए ?
शिशु का विकास कैसा होना चाहिए ?
39 सप्ताह के शिशु में काफी डेवलपमेंट हो चुका होता है और वे कई चीजों को करने में सक्षम भी हो जाता है, जैसे कि—
जैसा कि शिशु 39 सप्ताह का हो चुका है और वह आपकी कही हुई बातों का मतलब भी समझने लगा होगा, कि आप नाराज हैं और कुछ गुस्से में बोल रहे हैं, आप खुश हैं या उनकी तारीफ कर रह हैं। इसलिए जितना ज्यादा हो आप बच्चे से बात करें, उतना ज्यादा ही वह भी सिखेगा।
इसके अलावा, कई बच्चे नहीं शब्द का अर्थ तो समझने लगते हैं लेकिन, उसे मानते नहीं हैं, उदाहरण के तौर जब आप उसे किसी काम के लिए मना करेंगे, तो वे उसे ही करने के लिए भागेगा। इसलिए आप कोशिश करें बच्चे को बार—बार किसी चीज को करने के लिए मना न करें, बल्कि वे सामान ही वहां से हटा दें। इससे उस समान की तरफ उसका ध्यान कम जाएगा।
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इस सप्ताह में डॉक्टर शिशु के कुछ शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं, जैसे कि उसका विकास और अन्य टेस्ट आदि। शिशु का टीकाकरण हुआ है कि नहीं, कौन सा टीका बाकी रह गया है और पहले दिए गए इम्यूनाइजेशन से शिशु को किसी प्रकार का रिएक्शन तो नहीं हुआ था, इस विषय पर डॉक्टर आप से बात कर सकते हैं। इसके अलावा, वे हिमोग्लोबिन और हेमाटोक्रिट टेस्ट करेंगे, ये चेक करने के लिए कहीं बच्चे को एनीमिया तो नहीं है।
कभी—कभी शिशु का गला खराब या खराश जैसी समस्या हो सकती है। उसे ये समस्या कई कारणों से हो सकती है। यदि घर में किसी व्यक्ति या दूसरे बच्चे को गले का इंफेक्शन है, तो शिशु को आप उनसे दूर रखें। यदि शिशु के गले में आपको सफेदी के साथ लाल रंग के उबरे व सूजे हुए टॉन्सिल्स नजर आ रहे हैं और वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस होने पर भी शिशु को सर्दी लग रही है तथा जबड़े के नीचे सूजे हुए लिंफ गलैंड्स हैं, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
अगरआपके बच्चे का टॉन्सिल्स का टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो डॉक्टर उसकी इलाज के लिए एंटी-बायोटिक्स देगा ध्यान रखिए एंटीबायोटिक्स का पूरा कोर्स बच्चे को देना चाहिए ,चाहे कुछ दिन दवाई देने के बाद ही बच्चा अच्छा फील करने लगे ,तबभी, अगर आप दवाई देना बीच में ही रोक देंगे तो यह बच्चे को और भी सीरियस कॉम्प्लिकेशंस की तरफ ले जा सकता है.
शिशु में पैरों का सपाट होना बहुत ही साधारण बात है और इसके बहुत से कारण होते हैं, जिनमें सबसे पहला है छोटे बच्चा का कम चलना, जिसके कारण उनकी पैरों की मस्सल्स की बहुत ज्यादा एक्सरसाइज नहीं हो पाती है जिस कारण पैरों में घुमावदार आकार पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता, दूसरा कारण फ़ैट का एक पैड तलवे के आर्क के उस आकार को भर देता है,और गोल मटोल स्वस्थ बच्चों में ये कटाव जल्दी दिखाई नहीं देता,लेकिन जब बच्चे चलना शुरू कर देते हैं और पैरों पर खडे होकर शरीर का संतुलन बनाना सीख लेते हैं तब पैरों पर सही भार पड़ने के कारण सपाट पैर की परेशानी खत्म हो जाती है और शिशु का पैर अपनी परफेक्ट शेप में आ जाता है।
शिशु के जल्दी खड़े होने और जल्दी चलने के कारण उनमें पैरों के धनुशाकार होने की या कई दूसरी शारीरिक बीमारियां होती है, बल्कि यह बहुत ही लाभदायक होता है क्यूँकि उनके चलने से और खड़े होने से होने वाले व्यायाम के कारण उनकी बहुत सारी मस्सल्स को मजबूत बनती हैं, जोकि बिना सहारे अकेले चलने के लिए जरूरी होती हैं, अगर शिशु नंगे पैर चलते है तो वे अपने पैरों को और भी ताकतवर बना सकते हैं, लेकिन अगर कोई बच्चा जो इस अवस्था में चलना नहीं चाहता उसको जबरदस्ती नहीं चलाना चाहिए।
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नौवें महीने के तीसरे सप्ताह में आपको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि—
इस सप्ताह में डॉक्टर शिशु के कुछ शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं, जैसे कि उसका विकास और अन्य टेस्ट आदि। शिशु का टीकाकरण हुआ है कि नहीं, कौन सा टीका बाकी रह गया है और पहले दिए गए इम्यूनाइजेशन से शिशु को किसी प्रकार का रिएक्शन तो नहीं हुआ था, इस विषय पर डॉक्टर आप से बात कर सकते हैं। इसके अलावा, वे हिमोग्लोबिन और हेमाटोक्रिट टेस्ट करेंगे, ये चेक करने के लिए कहीं बच्चे को एनीमिया तो नहीं है।
वैसे इस उम्र में बच्चा अपने माता पिता को ज्यादा पहचांनता है। छह महीने के बच्चे के व्यवहार में आपको कई तरह के विकास देखने को मिलेंगे। वे वयस्कों या अजनबियों के मिलने पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देगा, लेकिन उन्हें ये अच्छी तरह से पता होता है कि कौन उनकी जरूरतों का ध्यान और देखभाल ठीक से कर सकता है, यानी वे सिर्फ माता पिता पर ही विश्वास करता है। जब बच्चा आठ या नौ महीने का होता है समझने लग जाता है कि उनका शुभ-चिंतक कौन है? माता पिता के वे बहुत करीब होता है और खुद को अपने माता पिता से अलग नहीं करना चाहता और अगर कोई ऐसा करना चाहता है, तो वे अपनी पूर्ण असहमति जताता है। यहा तक कि इस समय शिशु को बहुत ज्यादा प्यार करने वाले उसके दादी—दादा आदि को भी बच्चा पास आने से मना कर देता है क्योंकि, वे माता—पिता से दूर नहीं रहना चाहता है।
कुछ सालों के पश्चात बच्चों का,अजनबियों से सावधान रहना पूरी तरह से खत्म हो जाता है, लेकिन दस में से दो बच्चों में ऐसा नहीं होता है। इसलिए अगर आपके बच्चे अजनबियों से मिलना नहीं चाहते हैं, तो जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए, वे स्वयं धीरे—धीरे सामान्य हो जाएंगे। इसके अलावा, आपको अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को एकदम से गोदी में न उठाएं। पहले उससे बात करने की कोशिश करें, उसके साथ खेलें और उसकी हरकतों पर मुस्कराएं। इससे बच्चा आपके साथ कम्फर्टेबल हो जाएगा, फिर उसे गोद लें।
अगर आप बच्चे को बेबी सीटर के पास छोड़कर जाते हैं, तो आप ये भी ध्यान रखें कि बच्चा उसके साथ कम्फर्ट महसूस करें। कोशिश करें कि शुरूआत के एक या दो दिन साथ में रहें ताकि आपके सामने ही बच्चा उसे पहचानने लगे। इसी के साथ आप बेबी सीटर को कहें कि वे बच्चे को प्यार से रखें।
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