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ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण बच्चे का रंग पड़ जाता है नीला, जानिए क्यों?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 12/02/2021

    ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण बच्चे का रंग पड़ जाता है नीला, जानिए क्यों?

    प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खानपान, हेल्थ कंडीशन या फिर ली जाने वाली दवाइयों का असर बच्चों की सेहत पर पड़ता है। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जो बच्चे को अनुवांशिक रूप से मिलती हैं। कई बार वातावरण के तत्व भी बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्क असर डालते हैं। ब्लू बेबी सिंड्रोम एक कंडीशन है, जो नवजात बच्चों में पाई जाती है। ब्लू बेबी सिंड्रोम रेयर डिसऑर्डर है, जिसके कई कारण हो सकते हैं। इस सिंड्रोम के कारण बच्चों की त्वचा का रंग नीला पड़ने लगता है। बच्चों की त्वचा बहुत पतली होती है, इसलिए उनके होंठ, ईयरलोब्स नेल बेड्स नीले रंग के नजर आने लगते हैं। ऐसा हार्ट डिफेक्ट्स या फिर जेनेटिक फैक्टर के कारण हो सकता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको ब्लू बेबी सिंड्रोम के बारे में अहम जानकारी देंगे। जानिए  ब्लू बेबी सिंड्रोम की समस्या होने पर क्या दिखते हैं लक्षण?

    ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue Baby Syndrome) के क्या होते हैं लक्षण

    ब्लू बेबी सिंड्रोम होने पर बेबी का रंग नील होने के साथ ही अन्य लक्षण भी नजर आते हैं। ब्लू बेबी सिंड्रोंम की समस्या बच्चे को जन्म से हो सकती है। अगर बच्चे के रंग में परिवर्तन के साथ ही निम्नलिखित लक्षण नजर आएं, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

  • चिड़चिड़ापन (irritability)
  • सुस्ती (lethargy)
  • दूध पिलाने में समस्या (feeding issues)
  • बच्चे का वजन बढ़ने में समस्या (inability to gain weight)
  • डेवलपमेंट संबंधी समस्याएं ( developmental issues)
  • हार्टबीट या ब्रीथिंग तेज होना (rapid heartbeat or breathing)
  • हाथ और पैर की फिंगर गोल होना
  • ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण (Blue baby syndrome causes)

    ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारणों को समझने से पहले आपको इस कंडीशन के बारे में समझना होगा। ब्लड हार्ट के माध्यम से लंग्स में पंप होता है और वहां से ऑक्सीजन को लेकर पूरे शरीर में पहुंचाने का काम करता है। जब हार्ट, ब्लड या लंग्स में किसी प्रकार की समस्या हो जाती है, तो ब्लड प्रॉपर ऑक्सीजनेटेड (oxygenated) नहीं हो पाता है। रेड ब्लड वैसल्स में उपस्थित हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है। हीमोग्लोबिन ब्लड में मौजूद प्रोटीन होता है। ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण हीमोग्लोबिन मीथीमोग्लोबिनेमिया में कंवर्ट होने लगता है। ऑक्सीजन की कमी के कई कारण हो सकते हैं।

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    फैलोट की टेट्रालॉजी (Tetralogy of Fallot) के कारण

    रेयर कॉग्नीशियल हार्ट डिफेक्ट ब्लू बेबी सिंड्रोम का प्रारंभिक कारण हो सकता है। ये फोर हार्ट डिफेक्ट्स का कॉम्बिनेशन है, जो ब्लड फ्लो को कम करने का काम करता है। इस कारण से ब्लड में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। टीओएफ की कंडीशन में हार्ट वॉल में छेद होने जैसी स्थितियां शामिल होती हैं।

    मीथीमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia)

    नाइट्रेट पॉइजनिंग के कारण ये स्थिति पैदा हो सकती है। जिन बच्चों को फॉर्मुला मिल्क में कुएं (well) का पानी मिलाकर दिया जाता है या फिर घर के खान में नाइट्रेट रिच फूड जैसे कि पालक या बीट दिया जाता है, उन्हें मीथीमोग्लोबिनेमिया की समस्या होती है। छह माह से कम उम्र में बच्चे को सिर्फ मां का दूध दिया जाता है। इस उम्र में बच्चों का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रेक्ट (gastrointestinal tracts) कमजोर या अनडेवलप होता है। जब बच्चे को छह माह से कम उम्र में पालक, ब्रोकली या बीटरूट खाने के लिए दिया जाता है, तो नाइट्रेट, नाइट्राइट में बदल जाता है। नाइट्राइट पूरे शरीर में फैलता है और मीथीमोग्लोबिन (methemoglobin) प्रोड्यूज करता है। मीथीमोग्लोबिन ऑक्सीजन रिच होता है लेकिन ये ब्लड में ऑक्सीजन रिलीज नहीं होने देता है। इस कारण से बच्चे का रंग नीला पड़ने लगता है। मीथीमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia) की स्थिति जन्मजात हो, ऐसा रेयर होता है।

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    जन्मजात हार्ट डिफेक्ट के कारण

    आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स जन्मजात हार्ट डिफेक्ट का कारण बन सकती है। डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा हुए बच्चों को अक्सर दिल की समस्या होती है। कुछ कारण जैसे कि मैटरनल हेल्थ यानी मां को टाइप टू डायबिटीज की समस्या बच्चे में हार्ट डिफेक्ट का कारण बन सकता है। कुछ हार्ट डिफेक्ट ऐसे भी होते हैं, जो बिना किसा कारण पैदा हो जाते हैं। कुछ हार्ट डिफेक्ट साइनोसिस (cyanosis) का कारण बनते हैं।

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    इंफेन्ट मीथीमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia) या ब्लू बेबी सिंड्रोम को कैसे करते हैं डायग्नोज?

    डॉक्टर बेबी का फिजिकल एक्जाम करने के साथ ही पेरेंट्स से मेडिकल हिस्ट्री पूछ सकते हैं। इसके बाद डॉक्टर बेबी के कुछ टेस्ट कर सकते हैं। डॉक्टर ब्लड टेस्ट के साथ ही चेस्ट एक्स-रे भी कर सकते हैं। चेस्ट एक्स-रे के माध्यम से लंग्स और हार्ट के साइज की जांच की जाती है। वहीं ईकोकर्डियोग्राम (echocardiogram) की हेल्प से हार्ट ऐनाटॉमी चेक की जाती है। कार्डिएक कैथीटेराइजेशन (cardiac catheterization) की मदद से हार्ट आर्टरी के बारे में जानकारी मिलती है। ब्लड में ऑक्सीन की मात्रा को जांचने के लिए डॉक्टर ऑक्सीजन सेचुरेशन टेस्ट (oxygen saturation test) करते हैं। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैं।

    ब्लू बेबी सिंड्रोम का ट्रीटमेंट

    ब्लू बेबी सिंड्रोम का ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे को कंडीशन किन कारणों से हुई है। अगर बीमारी जन्मजात है, तो कई परिस्थितियों में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। साथ ही डॉक्टर कुछ मेडिकेशन की सलाह भी दे सकते हैं। मेथेमोग्लोबिनेमिया की स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए मेथिलीन ब्लू (methylene blue) दवा दी जाती है। इस दवा को नसों के माध्यम से शरीर में पहुंचाया जाता है। डॉक्टर नवजात बच्चे की सर्जरी के लिए मना कर सकते हैं। डॉक्टर हो सकता है कि आपको एक या दो साल का समय दें और उसके बाद सर्जरी करें। ये सभी बातें बच्चे की हेल्थ कंडीशन पर निर्भर करती हैं।

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    बेबी को कैसे बचा सकते हैं ब्लू बेबी सिंड्रोम से?

    बच्चे को ब्लू बेबी सिंड्रोम से बचाने के लिए आपको प्रेग्नेंसी से पहले ही सावधानी रखने की आवश्यकता है। अगर आपको डायबिटीज की समस्या है, तो बेहतर होगा कि आप ट्रीटमेंट कराएं और इसके बाद ही बेबी प्लान करें। बच्चे के लिए कभी भी फॉर्मुला मिल्क बनाने के दौरान कुएं (well) का पानी न इस्तेमाल करें। पानी को उबलाने से पानी का नाइट्रेट कम नहीं होता है। पानी में नाइट्रेट का स्तर 10 mg/L से अधिक नहीं होना चाहिए। आप चाहे तो इस बारे में लोकल हेल्थ डिपार्टमेंट से जानकारी ले सकते हैं। ब्रेस्टफीड कराते समय आपको खाने में नाइट्रेट रिच फूड का अधिक सेवन करने से बचना चाहिए। जब बच्चा छह माह या एक साल का हो जाए, तब आप उसे ब्रोकली, पालक, गाजर और बीटरूट जैसे नाइट्रेट युक्त आहार दे सकते हैं। इसके साथ ही आपको प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग, एल्कोहॉल से दूर रहना चाहिए और बिना डॉक्टर की सलाह से दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए।

    अगर आप प्रेग्नेसी के पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ बातों पर ध्यान देंगे, तो  ब्लू बेबी सिंड्रोम की संभावना को कम किया जा सकता है। बच्चों को आहार देने से पहले डॉक्टर से एक बार सलाह जरूर कर लें। बच्चे को छह माह तक केवल मां का ही दूध दें। अगर बच्चा सही से दूध नहीं पी रहा है या आपको उसके व्यवहार में अंतर नजर आ रहा है, तो बेहतर होगा कि तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। बच्चे आपको अपनी समस्या के बारे में बता नहीं सकते हैं, इसलिए आपको ही बच्चे की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी। आप ब्लू बेबी सिंड्रोम के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैं। उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।

    डिस्क्लेमर

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