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बच्चों के लिए मोबाइल फोन के हानिकारक प्रभाव

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nikhil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 28/06/2021

    बच्चों के लिए मोबाइल फोन के हानिकारक प्रभाव

    क्या आपको अपना बचपन याद है? यह भी याद है कि बचपन के वे दिन कितने सुहाने थे? जब मोबाइल, स्मार्टफोन, टैब और कंप्यूटर जैसी गैजेट का हमारे दिनचर्या पर नियंत्रण नहीं था। मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव (Mobile phone effects on kids) दूर-दूर तक नहीं था। स्कूल के बाद दोस्तों के साथ मिलकर खेलना, छुट्टियों में नाना-नानी के घर जा कर मौज लूटना, यह सब कितना वास्तविक था। बाल कहानियों की किताबें पढ़ना यह सब कुछ एक सुखद एहसास था। लेकिन जरा सोचिए, कि क्या यही बात आप अपने बच्चों से राजी करवा सकते हैं? यकीनन नहीं ; आज के बच्चों को इन सब के बदले एक मोबाइल और टैब दे दीजिए, अपनी जिंदगी वह इन्हीं में बना लेते हैं।

    किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. शैली अवस्थी, मोबाइल से होने वाली समस्याओं को समझाते हुए कहती हैं कि, “मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में सबसे ज्यादा मानसिक बीमारियों (Mental illness) की समस्या देखने को मिल रही हैं। जब बच्चे मोबाइल को आंखों के बहुत पास रखकर देखते हैं तो आंखों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इससे उनकी पास और दूर दोनों की दृष्टि कमजोर होती है। जिसके कारण छोटे बच्चों को चश्मे की जरूरत पड़ने लगती है। यह भी विडंबना है कि मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले अधिकतर बाहर खेलने नहीं जाते हैं, इससे मोटापा (Obesity) और हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां होने का खतरा भी बना रहता है। बच्चों में मोबाइल लत के बारे में अधिकतर पेरेंट्स गंभीर नहीं होते और यह खतरनाक होता चला जाता है। इस तरह से मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव बहुत ही घातक हो चला है।”

    यही वजह है कि दुनिया भर में कम उम्र के बच्चे मोबाइल और गैजेट के आदि बन रहे हैं। मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव के कारण बच्चे कई तरह की मानसिक परेशानियों से घिरते जा रहे हैं। इसका दर और तेजी से बढ़ रहा है।

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    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य (Mental health) विकार घोषित किया था। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ गेमिंग को लेकर बिगड़ा नियंत्रण है, जिसका अन्य दैनिक गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग और बच्चों में मोबाइल लत को कोकीन (Cocaine) और जुए जैसे चीजों की लत जैसी हो सकती है।

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    बच्चों में मोबाइल लत के लक्षण को कैसे पहचानें ?

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    मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव; भारत के आंकड़े हैं चिंताजनक :

    2017 में मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल द्वारा की गई स्टडी में यह सामने आई, कि करीब 50 प्रतिशत भारतीय बच्चों जो मोबाइल के बिना नहीं रह पाते हैं, वे रीढ़ की हड्डी में समस्या से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं, बच्चों को कार्टून देखना बहुत पसंद होता है। इसी दौरान एक कार्टून चैनल की अध्ययन के मुताबिक देश में तकरीबन 96% बच्चे ऐसे घरों में रह रहे हैं, जहां स्मार्टफोन/मोबाइल का इस्तेमाल हो रहा है। इनमें से 73% रोज मोबाइल फोन का इस्तेमाल (Use of mobile phone) कर रहे हैं।

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    नेशनल सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रूअल्टी टू चिल्ड्रन (NSPCC ) की एक रिपोर्ट आई थी, जिसके अनुसार

    • 11 से 16 साल के 53% बच्चों ने ऑनलाइन पोर्नोग्राफी में सक्रिय रहे। इनमें 94% बच्चों की उम्र 14 साल की थी।
    • 15-16 साल के 65% बच्चों ने और 11-12 साल के 28% बच्चों ने ऑनलाइन पोर्न देखा है।
    • रिपोर्ट से यह भी पता चला कि 28% बच्चों के सामने ये अश्लील सामग्री पॉपअप विज्ञापनों के माध्यम से पहुंची।
    • 53% लड़कों और 39% लड़कियों ने सेक्स (Sex) का वीडियो देखा था।
    • 13-14 साल के 39% बच्चों को इन्हीं तस्वीरों के माध्यम से ही सेक्स की जानकारी मिली।
    • जबकि 15-16 साल के बच्चों पर मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव ऐसा था कि वे 42% बच्चों का कहना था कि वो तस्वीरों में देखे गए व्यवहार की नकल करना चाहते थे.
    • 14% बच्चों का मानना था कि उन्होंने खुद की नग्न और अर्धनग्न तस्वीरें खींचीं, और इनमें से 7% ने उन्हें शेयर भी किया।

    डॉ शैली अवस्थी कहती हैं कि बच्चों में मोबाइल लत को मेडिकल टर्म में “इसे हम लोग प्रैग्मेटिकक डिसऑर्डर कहते हैं। इसमें ज्यादा समय मोबाइल या टीवी पर बिताने वाले बच्चों को लाइफस्टाइल डिसऑर्डर हो जाता है। मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव के रूप में मोटापा बढ़ना, भूख कम लगना, चिड़चिड़ा होना आदि देखे जाते हैं।”

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    क्या है डॉक्टर की सलाह

    मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव किस तरह पड़ रहा है? उससे बच्चे को बचाने के लिए ये टिप्स अपनाएं-

    • डॉक्टर अवस्थी पेरेंट्स को हिदायती तौर पर चेतावनी देती हैं कि तीन साल तक के बच्चे को टीवी-मोबाइल से दूर रखें।
    • मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव मानसिक तौर पर कैसा पड़ रहा है? इसके लिए उनकी स्क्रीन हिस्ट्री चेक करते रहें।
    • मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव न पड़ सके इसके लिए कोशिश करें कि जितना अधिक हो, बच्चे के साथ वक्त बिताएं, ताकि उससे मोबाइल पर समय न बिताना पड़े। साथ ही बच्चों को आउटडोर गेम (Outdoor game) खेलने के लिए प्रेरित करें।
    • बच्चों को समझाएं कि मोबाइल उनके लिए नुकसानदायक है। इसके अलावा बच्चों को उनकी हॉबी के हिसाब से डांस, पेंटिंग, म्यूजिक आदि में इन्वॉल्व करें।
    • पेरेंट्स को बच्चों के सामने जितना हो सके मोबाइल का उपयोग कम करना चाहिए। इससे बच्चे में मोबाइल के प्रति रुझान और उसे पाने की इच्छा खत्म होगी।
    • मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव कम पड़े इसके लिए पेरेंट्स (Parents) कोशिश करें कि बच्चों को सीधे मोबाइल हाथ में न दें। यदि उन्हें कुछ खास (गाना या कुछ और) सुनाना चाहते हैं, तो हेडफोन का इस्तेमाल करें। साथ ही इसका इस्तेमाल कम आवाज के साथ करें।

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    हालांकि, मोबाइल आज सबकी लाइफ की एक ऐसी जरूरत है, लेकिन मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव बुरा पड़ता है इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ज्यादा इस्तेमाल से मोबाइल का बच्चों पर प्रभाव इतना ज्यादा पड़ता है कि उनमें तंत्रिका विकार, अनिद्रा की समस्या, मानसिक समस्या तक की हेल्थ प्रॉब्लम्स दिखने लगती हैं। बच्चों को मोबाइलफोन की लत न लगे इसके लिए ऊपर बताए गए आसान उपाय पेरेंट्स को अपनाने चाहिए।

    मोबाइल फोन धीरे-धीरे जीवन का एक खास हिस्सा बन चुका है। कुछ मामलों में तो ये बेहद जरूरी भी है, क्योंकि अगर आप ऑफिस में हैं या आप अपने बच्चे से दूर हैं, तो एक यही सबसे सही तरीका है उनसे संपर्क करने का, लेकिन बच्चे को समझाना बेहद जरूरी है कि इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। इसलिए आवश्यकता अनुसार ही इसका इस्तेमाल करना लाभकारी हो सकता है।

    डिस्क्लेमर

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