4. मानसिक तनाव का कारण : आंखों के लिए हानिकारक है !
मोबाइल फोन का इस्तेमाल कई बार आंखों के तनाव का कारण भी हो सकता है। इसके इन डिवास का इस्तेमाल थोड़ा दूर से करना चाहिए। चूंकि, टैबलेट कंप्यूटर, स्मार्टफ़ोन और अन्य हाथ से पकड़े जाने वाले डिवाइसों को नज़दीकी रेंज में पढ़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
दि विजन काउंसिल के अनुसार जैसे-जैसे डिजिटल डिवाइस का उपयोग बढ़ता है, वैसे-वैसे दृष्टि संबंधी समस्याएं भी होती हैं, जिसमें आंखों का खिंचाव भी शामिल है। आंखों के तनाव के लक्षणों में आंखों की लालिमा या जलन, सूखी आंखें, धुंधली दृष्टि, पीठ दर्द, गर्दन में दर्द और सिरदर्द शामिल हैं।
5. एक्सीडेंट के खतरे बढ़ जाते हैं !
हम सभी जानते हैं कि फोन में ध्यान लगाकर चलना खतरनाक हो सकता है, और ऐसे अध्ययन हैं जो इस बिंदु को रेखांकित करते हैं। ट्रैफिक एंड ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग जर्नल के किए गए अध्ययनों की समीक्षा के अनुसार, फोन का अधिक उपयोग करने वाले लोग रोड पर चलते समय बाएं और दाएं कम देखते थें और जिससे वाहन की चपेट में आने और एक्सीडेंट के खतरे बढ़ जाते हैं।
क्या कहते हैं शोध?
वैज्ञानिक शोध निष्कर्षों में पाया गया है कि मोबाइल फोन और सेल टावर का आजकल अत्यधिक उपयोग हो रहा है। बेहतर रिसेप्शन के लिए सेल टावर की गिनती भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह सेल टावर और मोबाइल फोन हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हैं। सेल टावर और मोबाइल फोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन होता है। यह रेडिएशन शरीर के लिए हानिकारक नहीं होती पर इनसे उत्पन्न गर्मी में इतनी क्षमता होती है कि हमारे स्वास्थ्य को धीरे-धीरे प्रभावित करती है और इसका ज्यादा उपयोग हानिकारक हो सकता है। न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी अन्य बीमारियों के रूप में सामने आती हैं जिससे उनके मूल कारण का पता लगाना मुश्किल हो सकता है।
एक ब्रिटिश मेडिकल मैगजीन द लांसेट के अनुसार सेलफोन विकिरण सीधे सेल फंक्शन को बदल सकते हैं और रक्तचाप में वृद्धि का कारण बन सकते हैं। कुछ मामलों में रक्तचाप की बढ़ोत्तरी व्यक्ति में स्ट्रोक या दिल के दौरे को ट्रिगर करने का कारण बन सकती है।
स्वीडन के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन वर्किंग लाइफ (National Institute for Working Life Sweden) के अध्ययन में एक सम्भावना दर्शाई है कि मोबाइल फोन के मात्र दो मिनट के प्रयोग के बाद से ही त्वचा पर थकान, सिरदर्द और जलती हुई उत्तेजना शुरू हो सकती है। यूके के राष्ट्रीय रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड के अनुसार, मोबाइल फोन उपयोगकर्ता माइक्रोवेव ऊर्जा की एक महत्त्वपूर्ण दर को अवशोषित करते हैं जिससे उनकी आँखों, मस्तिष्क, नाक, जीभ और आस-पास की मांसपेशियों को हानि पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाती है।
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भारत में मोबाइल फोन रिहैब केन्द्र
मोबाइल फोन की लत बहुत ही भयानक स्थिति में आ गई है। स्थिति इतनी गम्भीर हो गई है कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड साइंसेज (National Institute of Mental Health and Sciences) द्वारा बंगलुरु में भारत का पहला इंटरनेट डि-एडिक्शन सेंटर खोला गया। इसके अन्तर्गत सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (Service for Healthy Use of Technology – Shut) चिकित्सालय द्वारा इस विषय पर अध्ययन और उपचार किया जाता है।
एक एनजीओ ‘उदय फाउंडेशन’ (Uday Foundation) द्वारा दिल्ली में पहला इंटरनेट डि-एडिक्शन सेंटर बनाया गया। सेंटर फॉर चिल्ड्रेन इन इंटरनेट एंड टेक्नोलॉजी डिस्ट्रेस (Center for Children in Internet and Technology Distress – CCITD) दिल्ली नाम का यह केन्द्र दक्षिण दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में चलाया जा रहा है।
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