backup og meta

इन टिप्स की मदद से पेरेंट्स, टीनेजर्स को दें इमोशनल सपोर्ट !

इन टिप्स की मदद से पेरेंट्स, टीनेजर्स को दें इमोशनल सपोर्ट !

बच्चों की उम्र ही ऐसी होती है कि कब कौन सी बात उनके दिल में लग जाए, कहा नहीं जा सकता है। बड़ों के मुकाबले  बच्चे बहुत ज्यादा इमोशनल होते हैं। दस से चौदह साल की अवधि बच्चों की उम्र का एक ऐसा पड़ाव है, जहां बच्चों के अंदर कई भावनात्मक और मानसिक बदलाव देखने को मिलते हैं। इस उम्र में बच्चों को परेंट्स के सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। कई बार बच्चे अपने पेरेंट्स को अपनी बात बताने में हिचकिचाहट महूसस करने हैं। इस उम्र में बच्चे को इमोशनल सपोर्ट (Emotional Support in child) मिलना बहुत जरूरी है। जब ऐसा नहीं हो पाता है, बच्चे खुद को जब इमोशनल हर्ट महसूस करने लगते हैं, तो वो थोड़ा सा अलग-थलग रहने लगते हैं। जिसकी वजह से पेरेंट्स और बच्चों के बीच दूरियां बढ़ती चली जाती हैं। बच्चे को इमोशनल सपोर्ट (Emotional Support in child) करने के लिए पेरेंट्स अपनाएं ये टिप्स:

और पढ़ें: चाइल्ड स्लीप और मेंटल हेल्थ : जानिए बच्चे की उम्र के अनुसार कितनी नींद है जरूरी

बच्चे को इमोशनल सपोर्ट देने के लिए पेरेंट्स अपनाएं ये टिप्स (Tips for Parents)

बच्चे को इमोशनल सपोर्ट की बात करें, तो बच्चों को पेरेंट्स से मिलने वाले इमोशनल सपोर्ट की भी बहुत जरूरत होती है। इस बात का पेरेंट्स को बहुत ध्यान रखना जरूरी है। बच्चे को इमोशनली सपोर्ट करने के लिए पेरेंट्स इन बातों का ध्यान रखें, जिनमें शामिल है:

बच्चे के साथ बात शेयरिंग करने की आदत डालें (Make a habit of sharing conversations with the child)

च्चे को इमोशनल सपोर्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है, कम्यूनिकेशन। जी हां, बच्चे के साथ पेरेंट्स की बातचीज बहुत जरूरी है। इसके लिए पेरेंट्स कोशिश करें कि बच्चे में ऐसी आदत डालें और थोड़ा-थोड़ा दोस्ताना व्यवहार भी करें ताकि बच्चा आपसे अपने मन की सभी बात शेयर कर सके। इसके लिए आपको भी बच्चे के साथ हर तरह की बातों को लेकर डिस्कशन करना होगा। कुछ फेसलों में उसकी राय भी लें। उसके स्कूल, कॉलेज और फ्रेंड्स से जुड़े मुद्दों की बातें करें। हालांकि बच्चे स्कूल और फ्रेंड्स की बातें आसनी से अपने पेरेंट्स या बड़ों के साथ शेयर नहीं करते हैं।लेकिन यह सब रूटीन बेस पर करने से बच्चे को धीरे-धीरे आपसे जुड़ी बातें और फीलिंगस जानने को मिल सकती है।

और पढ़ें: स्किनी बच्चा किन कारणों से पैदा होता है, क्या पतले बच्चे को लेकर आप भी हैं परेशान?

बच्चें को अपने मन की बात बोलने दें (Freedom to Speak)

कई पेरेंट्स इतने स्ट्रिक्ट होते हैं कि बच्चे डर के कारण उनके सामने अपनी बात बोल भी नहीं पाते हैं। पर बच्चों के साथ इतना स्ट्रिक्ट होना सही नहीं है। केवल पेरेंट्स को ही नहीं, बल्कि रिलेटिव्स और टीचर्स को भी चाहिए कि वह बच्चों के साथ बस उतना ही स्ट्रिक्ट हों कि बच्चे अपने मन की बात बोल भी सकें। इतना ही नहीं आप सभी को चाहिए कि आप बच्चे की बात ठीक से सुने भी, ताकि बच्चे को इमोशनल सपोर्ट फील हो। उसे लगे कि कोई ऐसा है, जो सुबकुछ संभाल लेगा। बच्चे को अपनी बात शेयर करने के बाद अच्छे से प्रतिक्रिया न मिलने पर बच्चे का विश्वास कमजोर पड़ने लगता है। इसलिए पेरेंट्स ऐसी गलती बिल्कुल न करें। बच्चे की हर बात को सुने और उसे सही गलत-परिणाम के बारे में समझाएं।

और पढ़ें: बच्चे के लिए आर्ट थेरिपी : बच्चों में बढ़ रहे तनाव को दूर करने का उपाय!

योग और एक्सरसाइज के लिए प्रोत्साहित करें (Exercise)

योग और कसरत करने से हमारे शरीर के अंदर एक एंडोरफिंस नाम का हॉर्मोन निलकता है। जिसको हैप्पी हारमोन भी कहते हैं। यह हारमोन टीनएजर्स  में स्ट्रेस को कम करता है। बच्चों में पॉजिटिव थिंकिंग के लिए योगासन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चे की अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए योगासन और एक्सरसाइज बहुत जरूरी होती है। पेरेंट्स कोशिश करें कि वो बच्चे के साथ कुछ भी एक्सरसाइज करें। स्कूल, कॉलेज और सामजिक मुद्दों से जुड़ी बाते करें। हालांकि बच्चे आसानी से अपनी बातें पेरेंट्स या बड़ों के साथ शेयर नहीं करते। लेकिन आप यह सब यह अगर रुटीन बेस पर करती हैं तो बच्चा धीरे-धीरे आपसे जुड़ता चला जाता है। समय-समय पर अपने टीनएज के किस्से भी शेयर करती रहें। इससे वह आपसे ऐसी बातें सुनकर आपसे भी अपनी फीलिंग्स शेयर करेगा।

और पढ़ें: अच्छी ग्रोथ के लिए छह साल के बच्चे की डायट में शामिल करें ये चीजें!

क्या नकारात्मक विचार (Negative Thought) बुरे हैं?

कोई “बुरी” भावनाएं नहीं हैं। सब विचार और भावनाएं मान्य हैं। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के विचार और भावनाएं हमारे आस-पास की दुनिया को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, उदासी हमें कठिन समय का सामना करने में मदद कर सकती है। अगर हम शर्म या अपराधबोध महसूस नहीं करते हैं तो हमारे पास नैतिकता जैसी भावनाओं की कमी हो सकती है। इसके अतिरिक्त, हर समय खुश रहने की कोशिश हमें हमारी असली भावनाओं से दूर कर देती है, जो कि स्वस्थ नहीं है। वास्तव में, हाल के मनोवैज्ञानिक शोध से संकेत मिलता है कि अपनी असली भावनाओं को दबाना या उन्हें स्वीकार नहीं कर पाना, कई मनोवैज्ञानिक मुद्दों के मुख्य कारणों में से एक है। इन कारणों से, नकारात्मक भावनाओं से बचने या खारिज करने के लिए बच्चों पर दबाव डालने की आवश्यकता नहीं है।

और पढ़ें: स्किनी बच्चा किन कारणों से पैदा होता है, क्या पतले बच्चे को लेकर आप भी हैं परेशान?

[embed-health-tool-bmi]

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Current Version

06/10/2021

Niharika Jaiswal द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड मोनिका शर्मा

Updated by: डॉ. हेमाक्षी जत्तानी


संबंधित पोस्ट

अच्छी ग्रोथ के लिए छह साल के बच्चे की डायट में शामिल करें ये चीजें!

बच्चे के लिए सॉलिड डायट कब शुरू करना चाहिए, जानिए एक्सपर्ट की राय..


के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

मोनिका शर्मा

मेंटल हेल्थ काउंसलिंग · Practice by Monika Sharma


Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 06/10/2021

ad iconadvertisement

Was this article helpful?

ad iconadvertisement
ad iconadvertisement